मेरे विरोध का कारण राजनीतिक : रूश्दी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

मेरे विरोध का कारण राजनीतिक : रूश्दी


लिटरेचर फेस्टिवल में वीडियो चैट की अनुमति नहीं मिलने पर सलमान रुश्‍दी ने आखिरकार अपनी चुप्‍पी तोड़ दी है। वीडियो चैट रद्द होने कुछ घंटे बाद रुश्‍दी ने समाचार चैनल एनडीटीवी से बातचीत में कहा 'मुस्लिम कट्टरपंथियों ने बोलने की आजादी का आज गला घोंट दिया। लोकतंत्र में सबको बोलने का हक है। केवल धमकाने वालों को ही बोलने की आजादी नहीं।'

उन्होंने कहा कि, ‘मेरे भारत आने या न आने से देश के मुसलमानों के फर्क नहीं पड़ता। वो अपने रोजमर्रा के जीवन में व्यस्त हैं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि एक लेखक भारत आ रहा है और साहित्य सम्मेलन में अपनी बात करेगा। ये सिर्फ कट्टरपंथी मौलाना है जिन्हें मुझसे परेशानी है।' रूश्दी ने कहा कि उनके न आने के पीछे उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनाव भी हैं। जिस तरह से कांग्रेस पार्टी की सरकार और लोगों ने मेरे आने का विरोध किया उससे साफ था कि मेरे विरोध के कारण राजनीतिक है। 

भारत की सांप्रदायिकता पर टिप्पणी करते हुए रूश्दी ने कहा कि भारत में साप्रदायिक मूल्यों का पतन हो रहा है, कट्टरवाद बढ़ रहा है। रूश्दी ने कहा, भारत में कला पर लगातार गंभीर हमले होते रहे हैं। कभी हिंदू कट्टरवादी हमले करते हैं कभी मुस्लिम कट्टरवादी हमले करते हैं। स्वतंत्र विचारों के लिए भारत में माहौल कठोर होता जा रहा है, भारत के लोग इस बात पर अफसोस करेंगे। 

अपनी किताब के अंश को चार लेखकों द्वारा पढ़े जाने पर उपजे विवाद पर टिप्पणी करते हुए रूश्दी ने कहा, जिन लेखकों ने भी मेरी किताब पढ़कर समर्थन जाहिर किया मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं। भारत में मेरी किताब को कस्टम कानूनों के तहत प्रतिबंधित किया गया है। राजीव गांधी की सरकार के दौरान जब मेरी किताब को प्रतिबंधित किया गया था तब कहा गया था कि प्रतिबंध किताब में व्यक्त विचारों पर नहीं हैं। सिर्फ मेरी किताब को भारत में आयतित किए जाने पर प्रतिबंध है। मुझे नहीं लगता कि किताब के अंश पढ़कर भारत के किसी भी कानून को तोड़ा गया है। 

रूश्दी ने  कहा कि मेरी किताब से लिबिया, तुर्की जैसे कई मुस्लिम राष्ट्रों ने भी प्रतिबंध हटा लिया है। यह भारत को तय करना है कि वो विचारों को लेकर कितनी स्वतंत्रता अपने नागरिकों को देता है। यदि लीबिया या मिस्र जैसे देश मेरी किताब से प्रतिबंध हटा सकते हैं तो भारत क्यों नहीं। भारत में इस्लाम के अध्ययन की सर्वोच्च संस्था दारूल  उलूम पर तीखी टिप्पणी करते हुए रूश्दी ने कहा कि दारूल उलूम से ही तालिबानी सोच के लोग पैदा होते हैं, यहां से ही इमराना प्रकरण जैसे मामलों में शर्मनाक फतवे दिए जाते हैं। ये भारत के मुसलमानों को तय करना है कि उन्हें कट्टरपंथियों को अपना नेता चुनना है या खुले विचारे वाले लोगों को। 

अपनी सुरक्षा को लेकर उठे विवाद पर रूश्दी ने कहा, मुझे लगता है कि सुरक्षा कारणों का बहाना बनाकर पागल बनाया गया लेकिन मुझे यह भी लगता है कि यदि मैं जयपुर आता तो हिंसा भी हो सकती थी। मुझे साहित्य सम्मेलन के आयोजकों ने ईमेल किया जिसे राजस्थान सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को भी भेजा गया था। ईमेल में कहा गया  कि मेरी जान को खतरा है। 

मुझे सिर्फ यह बताया गया था कि मेरी हत्या करने के लिए किसी माफिया डॉन ने गुंडे भेजे है। जब मैंने यह जानना चाहा कि मुझे किससे खतरा है तो तीन लोगों के नाम बताए गए। इनमें एक प्रतिबंधित संगठन सिमी का सदस्य था और बाकी दो नाम जो थे उन्हें तो अंडरवर्ल्ड में कोई जानता भी नहीं है। मुझे लगता है कि यह सुनियोजित झूठ था। 

जयपुर साहित्य सम्मेलन में खुद के न पहुंच पाने पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए रूश्दी ने कहा कि जो आज हुआ वो काला स्वांग था। कुछ इस्लामिक कट्टरपंथियों और राजनेताओं ने साजिश रची जिसके तहत मुझे भारत नहीं आने दिया गया। भारतीय मूल का एक लेखक भारत में आकर अपनी बात कहना चाहता था लेकिन उसे नहीं आने दिया गया। 

भारत के हालात पर टिप्पणी करते हुए रूश्दी ने कहा कि आजादी के मामले में भारत के हालात तीस साल पहले से भी बदतर हैं। मैंने उस वक्त राजीव गांधी को पत्र लिखकर सवाल किया था कि तुम कैसा भारत चाहते हो। वो भारत जिसमें लोग सुरक्षाधिकारियों से डरे या वो भारत जिसमें लोग खुलकर अपनी बात कह सके। भारत में राजनीति में धर्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब न मुझे राजनीति में विश्वास है और न धर्म में। हालांकि रूश्दी ने यह भी कहा कि वो जल्द ही भारत आएंगे। 

1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बिलकुल सही कह रहें हैं रुश्दी..