एक ताज़ा शोध में ये पाया गया है कि कपड़ा धोने से निकलने वाला प्लास्टिक का सूक्ष्म-कचरा समुद्री तटों पर जमा होकर एक ख़तरा बनता जा रहा है और ख़तरा है कि धीरे-धीरे ये खाद्य श्रृंखला का हिस्सा भी बन सकता है.
शोधकर्ताओं को इन सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों का पता सिंथेटिक कपड़ों से चला है जो हर धुलाई में कम से कम 1900 सूक्ष्म रेशे पानी में छोड़ते हैं. पहले के शोध में ये पाया गया था कि एक मिली मीटर से भी छोटे प्लास्टिक के रेशों को आमतौर पर जानवर खा लेते हैं जिससे वो उनकी खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बन जाता था. ये जानकारी 'इनवायरनमेंटल साइंस और टेक्नॉलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित हुई है. इस शोधपत्र के सहलेखक मार्क ब्राउन के अनुसार,''हमारे पहले के शोधकार्य में ये पाया गया था कि हमारे वातावरण में जितने भी सूक्ष्म कण पाये जाते हैं उनमें से 80 प्रतिशत प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं.'' वे कहते हैं, ''इस खोज ने हमें ये पता लगाने को प्रेरित किया कि आख़िर ये प्लास्टिक के सूक्ष्म कण किस तरह के हैं और कहां से आते हैं.''
डॉ ब्राउन के मुताबिक प्लास्टिक के ये सूक्ष्ण कण चिंता का एक विषय थे क्योंकि प्रमाणों से पता चल रहा था कि प्लास्टिक का ये कचरा हमारी फ़ूड चेन यानी खाद्य श्रृंखला में शामिल हो रहा है. ब्राउन कहते हैं कि,''जब एक बार ये प्लास्टिक का ये कचरा खाने के साथ जानवरों के पेट में पहुंचता है तो वो उनके पूरे शरीर में फैलकर रक्त कोशिकाओं में जमा हो जाता है.''
समुद्री तटों पर सूक्ष्म प्लास्टिक का ये कचरा किस हद फैला हुआ है इसका पता लगाने के लिए ब्रिटेन, भारत और सिंगापुर के कई समुद्री तटों से पानी का नमूना लिया गया. उनका कहना है कि पानी के इन नमूनों के अध्ययन के बाद पाया गया कि पूरी दुनिया से इकट्ठा किए गए पानी के इन नमूनों में से एक भी ऐसा नहीं था जिसमें प्लास्टिक का कचरा न हो. इनमें से सबसे ज्य़ादा नुकसान इन रेशों के सबसे छोटे टुकड़े कर सकते हैं.
ब्राउन के अनुसार पाए गए अधिकतर प्लास्टिक रेशेदार थे.
पाए गए इन प्लास्टिक के कचरों के अध्ययन के बाद ये पता चला कि ये रेशें ज़्यादातर पॉलिस्टिर, एक्रिलिक और नायलॉन के थे. इन आंकड़ों में ये भी ज़ाहिर हुआ है कि सूक्ष्म प्लास्टिक का ये कचरा शहरी इलाकों में ज़्यादा पाया गया है. इन प्लास्टिक के कचरों के स्रोत का पता लगाने के लिए इस टीम ने ऑस्ट्रलिया के साउथ वेल्स प्रांत में एक प्राधिकरण के साथ मिलकर काम किया और वहां के घरों से निकाले गए गंदे पानी में उन्हें ठीक-ठीक उसी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा मिला. जिसके बाद ब्राउन और उनके सहयोगी रिचर्ड थॉम्पसन ये पता लगाने में लग गए कि वॉशिंग मशीन से फेंके गए पानी में किस तरह का कचरा मिला था. उन्हें पता चला कि धुले हुए कुछ पॉलिस्टर के कपड़ों से कभी-कभी तो 1900 से भी ज़्यादा प्लास्टिक के रेशें छूटते हैं.
हो सकता है कि ये सुनने में बहुत डरावना न लगता हो लेकिन ज़रा सोचिए कि अगर एक कपड़ा इतने रेशें छोड़ता है तो जितने कपड़े धुलते हैं उससे किस अनुपात में ये कचरा जमा रहा है. ये खोज हमें ये भी बताता है कि,''हमारे वातावरण में जिस बड़े अनुपात में हमें रेशों का कचरा मिल रहा है, उसका सबसे बड़ा प्रमाण हमें गंदे नाले के पानी से मिला है जो यहां सीधे-सीधे वॉशिंग मशीन से पानी आता है.''
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