गृह मंत्रालय झारखंड को लेकर चिन्तित. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 29 जनवरी 2012

गृह मंत्रालय झारखंड को लेकर चिन्तित.


माओवादियों की पार्टी कांग्रेस के आयोजन में उन्हें कड़ी मुश्किल पेश आने को लेकर आश्वस्त सरकार अब झारखंड में उनके नये सिरे से ताकत हासिल करने से चौकन्नी हो गयी है, क्योंकि इससे भाकपा-माओवादी को एक बार फिर पार्टी की नीति निर्णायक शीर्ष इकाई की बैठक करने में सफलता हासिल हो सकती है।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय झारखंड के हालात को लेकर खासा चिन्तित हैं क्योंकि उसका मानना है कि भाकपा-माओवादी वहां फिर से मजबूत हो रही है। सूत्रों ने आरोप लगाया कि स्थानीय नेता, पुलिस और प्रशासन इस संबंध में भेजे गए विभिन्न परामर्शों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि अब तक गृह मंत्रालय को विश्वास था कि भाकपा-माओवादी को पार्टी कांग्रेस का आयोजन करने में खासी मुश्किलें पेश आएंगी, लेकिन अब उसे चिन्ता है कि झारखंड में माओवादियों के फिर से ताकतवर होने से उन्हें संभवत: पार्टी कांग्रेस सफलतापूर्वक कराने में मदद मिल सकती है।

सूत्रों के मुताबिक लोकसभा सदस्य इंदरसिंह नामधारी के काफिले पर हुए हमले के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखकर राज्य की स्थिति को लेकर उन्हें आगाह किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि वह प्रशासन और पुलिस की खिंचाई करें और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के उपाय सुनिश्चित करें। सूत्रों का मानना है कि हाल ही में एक बारूदी सुरंग में विस्फोट में राज्य के 13 पुलिसकर्मियों का मारा जाना सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को साफ दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हम नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस प्रशासन से लगातार कहते रहे हैं कि वे कार्रवाई के मानक नियमों का पालन करें लेकिन स्पष्ट है कि ऐसा नहीं किया गया। मारे गये पुलिसकर्मी पैदल चलने की बजाय वाहन में जा रहे थे।

भाकपा-माओवादी की पोलितब्यूरो के तीन प्रमुख सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशनदा, मिसिर बेसरा और अरविन्दजी पार्टी में नये सिरे से ताकतवर होने की कोशिश में हैं। पुलिस और प्रशासन के स्तर पर प्रभावशाली कदम नहीं उठाये जाने से इन नेताओं को अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिल रही है। नक्सल प्रभावित नौ राज्यों में झारखंड की स्थिति सबसे खराब है। यहां तक कि उसने छत्तीसगढ़ को भी पीछे छोड़ दिया है। भाकपा-माओवादी पिछले साल झारखंड में 78 जन अदालतें लगाने में कामयाब रही जो अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में कुल मिलाकर होने वाली जन अदालतों की संख्या से अधिक है।

माओवादियों की पार्टी कांग्रेस नीति निर्णायक शीर्ष इकाई है, जिसकी बैठक हर पांच साल में एक बार होती है। बैठक में नेताओं का चयन होता है और राज्य इकाईयों के नेतृत्व को भी चुना जाता है। बैठक में पोलितब्यूरो और केन्द्रीय कमेटी के सदस्यों का भी चयन किया जाता है। बताया जाता है कि किशनजी और आजाद के मारे जाने के बाद से माओवादियों में नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी जोर पकड़ रही है।

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