सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फांसी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर एवं न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अभिनव रामकृष्णा की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि उन्हें अपील करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि किसी आपराधिक मामले में दोषी के अलावा कैसे कोई अन्य व्यक्ति सजा से राहत पाने के लिए शीर्ष न्यायालय में अपील कर सकता है।
न्यायालय ने कहा कि चूंकि सरकार राजोआना की फांसी के क्रियान्वयन पर पहले ही रोक लगा चुकी है इसलिए इस मुद्दे पर जल्दीबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि राजोआना चाहता है कि उसकी फांसी पर रोक लगे। उसने दोषी करार दिए जाने और फांसी की सजा को चुनौती नहीं देने का निर्णय लिया है। नरसिम्हा ने न्यायालय से कहा कि यदि राजोआना ने दोषी करार दिए जाने और फांसी की सजा के खिलाफ अपील नहीं की है, तब यह सरकार का दायित्व नहीं है कि वह उसे निर्दोष साबित करने की सभी सम्भावनाओं की तलाश करे या राजोआना को फांसी दिए जाने से पूर्व मामले की गम्भीरता कम करने के उपाय पर विचार करे।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अधिवक्ता अधिकार में आरोपी की इच्छा पर गौर करने का प्रावधान है लेकिन सरकार का दायित्व आरोपी के मामले को वैधानिक और समुचित तरीके से अदालत के समक्ष पेश करना है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में मांग की है कि संविधान के अनुच्छेद 21 एवं नीति निर्धारक सिद्धांत के तहत सरकार को नियम का पालन करने का निर्देश दिया। नियम के मुताबिक "सरकार तथा न्यायिक प्रणाली का दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि मृत्युदंड तभी दिया जाएगा जब बचाव के सभी उपाय कर लिए जाएंगे।"
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