नेता प्रतिपक्ष बन सकते हैं अजय भट्ट
अपनी राजनैतिक जमीन न हारने वाले भाजपा के दिग्गज नेता को विधानसभा के भीतर हार का मुंह देखना पड़ा। इस घटना ने साबित कर दिया कि भाजपा के भीतर राजनैतिक जमीन को ठिकाने लगाने का खेल अभी भी खेला जाता है। विधानसभा अध्यक्ष के पद पर हसबंस कपूर को भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनावी समर में उतारा गया था और इसके पीछे उनका नेता प्रतिपक्ष के पद पर लाईन में लगा होना सामने आया था। एक रणनीति के तहत उन्हें विधानसभा अध्यक्ष के पद पर नामांकन कराने के बाद चुनाव में इसलिए उतारा गया ताकि वह नेता प्रतिपक्ष की दौड़ से बाहर हो जाएं। राजनीति में हार का मुंह न देखने वाले भाजपा नेता को विधानसभा के भीतर जिस तरह से हार का मुंह दिखाया गया है, उसकी राजनीति के गलियारों में खासी चर्चा शुरू हो गई है।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी के रूप में हरबंस कपूर को हराने के लिए काफी जोड-तोड की गई थी, लेकिन उनके राजनैतिक किले को विरोधी नहीं ढ़हा सके थे, लेकिन विधानसभा के भीतर संख्या बल कम होने के बाद भी जिस तरह उन्हें विधानसभा अध्यक्ष के पद पर चुनाव लड़ाया गया वह भाजपा की आपसी खींच-तान को उजागर करता है। क्योंकि विधानसभा के भीतर संख्याबल न होने के बाद भी इस पद पर भाजपा को अपना प्रत्याशी नहीं उतारा जाना चाहिए था। भाजपा नेता अजय भट्ट का इस बारे में कहना है कि विपक्ष को एकजुट रखने के लिए इस रणनीति को अंजाम दिया गया, जिससे विपक्ष मजबूती के साथ एकजुट रहते हुए सरकार के खिलाफ हर मोर्चे पर खड़ा रह सके। वहीं उन्होंने कहा कि सरकार को इस बात का आभास हो जाए कि विपक्ष कमजोर स्थिति में नहीं है और उसके सभी विधायक एकजुटता के साथ एक मंच पर खड़े हैं।
राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा की यह रणनीति पहले पायदान पर ही धराशाही हो गई है और अब 29 मार्च होने वाला बहुमत विधानसभा के भीतर कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बनता हुआ नजर नहीं आ रहा। पूर्व में संभावनाएं जताई जा रही थी कि कांग्रेस विधानसभा के भीतर विश्वास मत हासिल नहीं कर पाएगी, लेकिन अब इस तरह की चर्चाओं पर पूरी तरह विराम लग गया है। कांग्रेस के पास संख्या बल 40 के करीब मौजूद है, जबकि भाजपा 31 सदस्यों के सहारे विपक्ष में बैठने को तैयार होती दिख रही है। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भाजपा ने उत्तराखण्ड में शुरू की गई परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया है, क्योंकि अब तक उत्तराखण्ड में सत्तापक्ष का ही विधायक विधानसभा अध्यक्ष के पद पर विराजमान होता था और इसके लिए किसी प्रकार का मतदान नहीं किया जाता था, लेकिन भाजपा ने उत्तराखण्ड में पहली बार मतदान शुरू कर पुरानी सभी परंपराओं को तोड़ डाला है और इसके साथ ही विधानसभा के भीतर हार के चलते मुंह की खाई है। राजनैतिक सूत्र यह भी बता रहे हैं कि नेता प्रतिपक्ष के पद पर हरबंस कपूर का पत्ता कट जाने के बाद अब इस पद पर रानीखेत के विधायक अजय भट्ट का चुना जाना तय माना जा रहा है।
(राजेन्द्र जोशी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें