ईश्वर ने हमें इस धरा पर भेजा ही इसलिए है कि हम स्व उत्थान और जगत कल्याण के काम करते हुए अपनी पहचान बनाएं और मनुष्य होने को इस प्रकार सार्थक करें कि हमारे नहीं रहने पर भी शेष बचे हुओं को हमारी स्मृति बनी रहे। जो लोग अपनी पहचान बनाने के लिए अच्छे कर्मों और आदर्शों का सहारा लेते हुए आगे बढ़ते हैं वे पा लेते हुए अपने मनुष्य होने का लक्ष्य और जमाने के लिए बन जाते हैं मार्गदर्शी और प्रेरणा स्रोत। आदमी अपनी पहचान बनाने के लिए दो तरह के रास्तों पर चलने की कोशिश करते हैं। एक वे हैं जो अपने जीवन को दूसरे लोगों के भरोसे छोड़ कर उनके सहारे आगे बढ़ने के प्रयासों में जुटे रहते हैं लेकिन यह पहचान न स्थायी होती है, न कालजयी और न ही प्रेरणा जगाने लायक बल्कि यह अधोगामी पहचान में रूपान्तरित हो जाती है।
दूसरों के नाम पर पहचान बनाने वाले लोग कभी सफलताओं के शिखर पर नहीं पहुंच सकते, वे हर शब्द को प्रतिध्वनित करने वाले गलियारों में पेण्डुलम की तरह चक्कर काटते हुए शोर का पर्याय बने रहते हैं। जबकि दूसरी तरह के लोग अपनी मौलिक प्रतिभाओं और मेहनत के बल पर खुद की पहचान बनाने में समर्पित भाव से जुटे रहते हैं। ऐसे लोगों का हर कर्म प्रेरणा स्रोत और यादगार उदाहरण बन जाता है तथा कालजयी पहचान बनाने में कामयाबी का युगीन सफर ही पूरा आदर्श हो जाता है। ये लोग जन-मन और लोक हृदय पर राज करते हैं और इनका समग्र जीवन ऊर्ध्वगामी भावों का साक्षात कराता है।
आजकल लोग छद्म नामों का इस्तेमाल कर अपनी कारगुजारियों को अंजाम देने में ज्यादा रस लेते हैं। फेसबुक, ऑर्कुट और इस जैसी तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर ऐसे अनगिनत लोग हैं जो अपनी पहचान छुपाए बैठे हैं। इन साइ्ट्स पर इनके फोटो या विवरण तक उपलब्ध नहीं हैं अथवा जो फोटो दर्शाये गए हैं वे उनके न होकर किसी नेता या अभिनेता, मॉडल्स, क्षेत्र और ऐसे-ऐसे स्थलों और व्यक्तियों के हैं जिनसे इनकी पहचान नहीं हो पाती। जबकि सोशल नेटवर्किग से जुड़ी तमाम साईटें अपनी पहचान बताने और जमाने को अपने बारे में बताने के लिए है।
लेकिन खुद की पहचान कायम करने के लिए इन साईटों पर आने वाले लोग अपने फोटो तक को सार्वजनिक करने में हिचकिचाते हैं। पहचान बनाना भी चाहते हैं और फोटो दूसरों के चस्पा करते हैं, यह परस्पर विरोधाभासी कार्य व्यक्ति के छद्म चरित्र को ही दर्शाते हैं। भगवान ने भेजा है पहचान बनाने के लिए और ये हैं कि अपनी पहचान छुपाने के आदी हो गए हैं। ऐसे व्यक्तियों के बारे में विधाता को शायद यही लगता होगा कि अब ये ऐसे शरीर के लायक नहीं हैं जिनसे छवि का निर्माण होता है।
दुनिया में ऐसे सभी लोग अपनी कोई ख़ास पहचान नहीं बना पाते हैं जो पहचान छुपाने के आदी हैं या दूसरों के बूते पहचान बनाने के जतन करते रहते हैं वे ही लोग सफलता के शिखरों का स्पर्श करते हैं जो पहचान बनाने के लिए औरों पर निर्भर रहने या छद्म कर्मों की बजाय ऐसे कर्मयोग का सहारा लेते हैं जिनमें जो कुछ होता है और किया जाता है वह वास्तविक धरातल पर होता है। जब आदमी खुद को बुलंद करने खुद का ही उपयोग पूरी पवित्रता के साथ करता है तब उसके लिए ईश्वर भी सबसे बड़ा मददगार होता है। जो भी कर्म करें वे वास्तविक हों, सही हों और उनका लक्ष्य पवित्र हो, तभी सफलता पाने की रफ्तार अपने आप तेज होने लगती है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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