मुख्यमंत्री के नजदीकी एक विधायक के लिए उत्तराखण्ड राज्य में भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखण्ड विकास परिषद को बनाने की तैयारी की जा रही है। सचिवालय ने उत्तरप्रदेश विकास परिषद का प्रारूप मंगाने के लिए लखनऊ से संपर्क किया है। उत्तराखण्ड की बहुगुणा सरकार के लिए मुख्यमंत्री बनने के बाद ही दुश्वारियों का दौर शुरू हो गया था। पहले तो मुख्यमंत्री बनाने के लिए कद्दावर नेताओं की पैरवी। राम-राम करते 10 जनपथ से नाम ऐलान हुआ तो अकेले शपथ लेने की मजबूरी। किसी तरह अपने दल और सहयोगियों से बात बनी, तो कैबिनेट में नाम शामिल करने को लेेकर हुई सिर-फुटव्वल। यहां तक कि निर्दलीय दिनेश धनै के समर्थकों का प्रदेश प्रभारी से अभ्रदता और फिर दिनेश का टिहरी में जम जाना। कहते हैं अब अपनी मर्जी से ही देहरादून आएंगे, मुख्यमंत्री के साथ। मंत्रियों की संवैधानिक बाध्यता के कारण हर किसी के अरमान पूरे न करने की विवशता। 10 को शपथ दिलाई तो अब अपने-पराए सब लट्ठ लेकर खड़े हो गए, 11वें मंत्री के लिए। पर राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए लग रहा है 11वें मंत्री डा. हरक सिंह रावत होंगे। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के लिए अपने लोगों को एडजस्ट करना खासा चुनौतीपूर्ण कार्य होने जा रहा हे। एक तो छह माह के अन्दर विधानसभा में चुनकर आने की चुनौती ऊपर से कठिन वक्त में अपनों ने जो झण्डा बुलंद रखा, उनको भी दायित्व से नवाजा जाना। अभी तक यह माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री अपने लिए सुरक्षित सीट के लिहाज से उत्तरकाशी से चुनाव लडे़ेंगे, किन्तु अब भाजपा के किसी विधायक से संपर्क करने की सूचना के बाद विधानसभा अध्यक्ष, विश्वासमत और राज्यसभा चुनाव कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए ही अहम हैं।
जिसनें भी इन चुनौतियों से पार पा लिया अगले पांच साल उसने इस प्रदेश में राज करना है। संख्याबल, निर्दलीय, बसपा और यूकेडी समर्थन के बूते कांग्रेेस के लिए यह आसान लगता है, किन्तु अपने ही कुनबे में बढ़ती नाराजगी क्या गुल खिलाएगी, यह अगले सप्ताह साफ हो जाएगा। भाजपा ने तो टूट-फूट की आशंका के चलते ही विधायकों को इंदौर में भेज दिया। पार्टी में विभिन्न गुटों के दबाव के कारण बहुगुणा अपने किसी समर्थक विधायक को मंत्री बनाने में असफल रहे, जबकि सतपाल महाराज अपनी पत्नी अमृता रावत को मंत्रीमण्डल में शामिल कराने में कामयाब रहे। हालांकि सतपाल कैंप में भी हरीश रावत को ज्यादा मंत्रीपद देने के कारण नाराजगी है। बहुगुणा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने सबसे बड़े सिपहेसलार को किसी सम्मानजनक पद पर आसीन करने की है। बहुगुणा कैंप में शामिल रहे यह विधायक इलाहाबाद से ही हेमवती नंदन बहुगुणा से जुड़े रहे हैं और उनके बहुगुणा परिवार से सबसे निकट के संबंध हैं। बहुगुणा की ताजपोशी के लिए व उसके बाद के संकट में भी उनकी संकटमोचन की भूमिका रही है। इसी निकटता के लिए विधायक के लिए जब सम्मानजनक ओहदे की तलाश की जा रही थी, तो मुख्यमंत्री की इच्छा को भांप उनके निकट के अधिकारियों ने किसी ऐसी कुर्सी की तलाश की, जिसमें पूरे प्रदेश की विकास योजनाएं समाहित हों। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के पूर्व मुख्यमंत्रीत्व काल में उत्तर प्रदेश विकास परिषद बनाकर उसके अध्यक्ष पद पर अमर सिंह को बैठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। अमर सिंह उस वक्त मुलायम के सबसे नजदीकी होते थे। उसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड में भी मुख्यमंत्री के सबसे नजदीकी विधायक के लिए उत्तराखण्ड विकास परिषद बनाने की तैयारी चल रही है। सूत्र बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश विकास परिषद के प्रारूप के लिए लखनऊ से भी संपर्क साधा जा गया है। विधानसभा सत्र की औपचारिकता के साथ राज्यसभा चुनाव के बाद इस विभाग को अमलीजामा पहनाया जाएगा।
(राजेन्द्र जोशी)
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