पश्चिमी सभ्यता शाप या अभिशाप - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 29 मार्च 2012

पश्चिमी सभ्यता शाप या अभिशाप


सदियों पुरानी एक कहावत है दूर  के  ढोल सुहावने यानि जो चीज़ आपके पास नही होती आपसे दूर  होती है वो चीज़ आपको ज्यादा पसंद आती है| इसी कहावत का रंग आजकल हमारी  युवा पीढ़ी को चढ़ा हुआ है,उनके हर काम में पश्चमी सभ्यता का रंग छाया   हुआ है चाहे उनके कपड़े देख लो,बोलने,खाने-पीने,चलने-फिरने सब में पश्चमी सभ्यता का रंग देखने को मिलता है| दूर से पश्चमी सभ्यता आकर्षित करती है पर अगर इसके करीब जाकर देखा जाये तो ये सभ्यता खोखली है,बाहर  से बहुत आकर्षक परन्तु अंदर से बहुत ही खिनोनी है,बडो का आदर,इज्जत शर्म हया जैसे शब्द भी नही मालूम | मैं मानती हू आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक  दुनिया में हर चीज का ज्ञान होना,बाहर की  दुनिया की  समझ होना बहुत जरूरी है परंतु भारतीय संस्कारो की  देहलीज लाँघ कर सफलता हासिल करना उचित नही है| मेरे इस कथन से बहुत से लोग सहमत नही होगे और हर चीज़ के कुछ अच्छे  कुछ बुरे प्रभाव होते है| इसी बात को ध्यान में रखकर अगर  मान लिया जाये कि पश्चमी सभ्यता अच्छी भी है तो इसका मतलब कही न कही कमी हम लोगो में है,हम दुसरो की  खामिया ढूढने  में लगे रहते है जबकि वही खामिया हमारे अन्दर भी होती है| 

हम दूसरो के अवगुण ही क्यों अपनाते है,अगर हम खाना-पीना ,पहनना सिख  सकते है तो उनकी तरह अपने देश को सुंदर व साफ़ रखना क्यों नही सिख सकते| पर्यावरण का ख्याल क्यों नही रखते,सडको पर गंदगी क्यों फैंलाते है\ इन बातो का ख्याल,इन नियमो को हम उनके देश में जाकर अपनाते है तो अपने देश में क्यों नही अपना सकते? अगर हम अपने देश में पश्चमी खान-पिन,पहनावा अपना सकते है तो देश को सुंदर व साफ़ रखने वाले नियम क्यों नही अपना सकते? इसका मतलब कमी हम में ही है| हर एक चीज एक हद तक ही ठीक  लगती है, पश्चमी सभ्यता  को भी अगर  एक हद तक,एक सीमा तक अपनाया जाये तो कोई बुराई नही है||हमे अपनी सीमा का उलंघन नही करना चाहिए,हमे पश्चमी  सभ्यता को अपने भारतीय संस्कारो पर हावी नही होने देना चाहिए| कोई भी चीज़ अगर अपनी सीमा पार कर  ले तो वो विनाश का कारण बनती है,ऐसा ही कुछ हमारे देश के साथ घटित हो रहा है,आज की युवा पीढ़ी पर पश्चमी सभ्यता का रंग इतना चढ  गया है कि वो अपने संस्कारो को भूल रही है,और अगर येही हाल रहा तो वो दिन दूर नही जब संतान अपने माँ-बाप को सच में दुसरे रिश्तेदारों की तरह केवल शादी का न्योता भेजा करेगी| आईये और आकर आशीर्वाद दे जाईये| पश्चमी सभ्यता से हम केवल प्रतिस्पर्धात्मक की दौड़ में शामिल होना सिख पाए है| इसके 90% दुष्प्रभाव है,केवल 10% ही इसके अच्छे प्रभाव  है| जैसा की मैंने पहले भी कहा मेरे इस विचार से काफी लोग सहमत नही होगे,इसीलिए मैं इसके दुष्प्रभाव और अच्छे प्रभाव की अलग से सूचि बना रही हु,और मैं चाहती हु आप उस सूचि के आधार  पर अपना विचार प्रकट करे|

पश्चमी सभ्यता के अच्छे प्रभाव:

1)   पश्चमी सभ्यता से हम  प्रतिस्पर्धात्मक  दुनिया में कदम रख पाए है| अब भातीय भी बिना संकोच किये आगे बढ रहे है| 
2 )आज औरत भी अपने विचार प्रकट कर सकती है,और घर की चारदीवारी से बाहर निकल पाई है|
3) ................
ये स्थान खाली इसलिए है क्युकि मुझे पश्चमी सभ्यता के 2 के इलावा और  अच्छे प्रभाव नज़र नही आते|

अब एक नज़र पश्चमी सभ्यता के दुष्प्रभावो पर :

1)संयुक्त परिवार खत्म हो चुके है,सभी अलग रहना पसंद करते है| बच्चे अपने नजदीकी रिश्तेदारों तक को नही पहचानते| लोग रिश्तो के महत्व को भूलते जा रहे है| 
2) आज की युवा पीढ़ी केवल अपने बारे में सोचती है,वह बहुत स्वार्थी हो गयी है  |
3) आज की युवा पीढ़ी परिवार के साथ समय व्यतीत करके आनंद लेने के बजाये दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना अधिक पसंद करती है\ 
4) डिस्को,पब,शराब,सिगरेट आदि पीना जीवन शैली के अंग बन गये है|
5) नाबालिग लड़का,लडकी,यौन सम्बन्ध स्थापित  कर रहे है|
6) पैसो को रिश्तो से अधिक महत्व दिया जा रहा है|
7) जंक फ़ूड हमारे रोंज के खाने में शामिल हो गया है|
8) अंग प्रदर्शन सिनेमा से निकल आम लोगो की जिंदगी में शामिल हो गया है|
9) इन्टरनेट के प्रयोग से अशीलता बड गई है|
10) बच्चे अपने माता-पिता को बोझ समझने लगे है,और उन्हें वृदाश्र्म  में छोड़ना अधिक पसंद करते है|
11) प्रात: काल की सैर,व्यायाम,योग आदि दिनचर्या से खत्म हो गये है|

घर में दादा-दादी के ना होने के कारण बच्चो में संस्कारों  का अभाव है| उन्हें सही गलत में अंतर नही मालूम,अपने से बडो का आदर करना भूल रहे है| भारत वो देश है जहा गाय को भी गोउ माता कह कर पूजा जाता है,और उसी देश के वासी पूजनीय माता-पिता को वृदाश्र्म में छोड़ देने की सोच रखने लगे है| जंक फ़ूड का सेवन बहुत अधिक हो रहा है जो सेहत के लिए बहुत नुकशान दायक है,आजकल छोटे-छोटे बच्चे गंभीर रोगों से ग्रस्त हो रहे है| लोग व्यायाम व योग आदि को भूल गये है कोई भी बीमारी हो बस दवाईयों का प्रयोग करना अधिक अच्छा समझते है| जहा पहले ये कहा जाता था EARLY TO BED AND EARLY TO RISE MAKES A PERSON HEALTHY,WEALTHY AND WISE. लेकिन आज की युवा पीढ़ी ने ये कहावत ही बदल दी है अब अक्सर उन्हें ये कहते हुए सुना जाता है-LATE TO BED AND LATE TO RISE,MAKES A PERSON HEALTHY,WEALTHY AND WISE. अब ये पश्चमी सभ्यता नही है तो क्या है? इसी को अपना कर आज भारतीय भी ऐसे -ऐसे रोगों से घिर गये है जिन रोगों का नाम केवल पश्चिम देशो में ही सुना जाता था|  ये वोह  ही भारत देश है जहा पर लडकी बिना दुपट्टे के घर के आदमियों के सामने भी नही आती थी और अब पश्चमी सभ्यता का रंग इतना छाया हुआ है की खुले आम अंग प्रदर्शन कर रही है,टीवी पर उन चीजों (कॉन्डम,ब्रा,पैड)  की एड्स (advertisements )दिखाई जाती है जिन्हें पहले कहने में भी संकोच किया जाता था,और अब वो पूरा परिवार एक साथ बैठ कर देखता है| क्या ये हमारी संस्कृति है? बुरी संगती का येही असर होगा| 

अब  संयुक्त परिवार ना होने से बच्चे अपने आपको तन्हा  महसूस करते है और गलत आदतों का शिकार हो जाते है| घर पर दादा- दादी,अंकल-आंटी भी नही होते जो माँ-बाप की गैर हाजरी में उनपर नज़र रख सके| और बच्चे आज़ादी का गलत फायदा उठाते है,अकेलापन दूर करने क लिए नशे को अपना साथी चुनते है | अपना समय व्यतीत करने के लिए इन्टरनेट का अधिक प्रयोग करते है,जो केवल शारीरिक समस्याए उत्पन नही करता बल्की उसपे अश्लील तस्वीरे व फिल्में युवा पीढ़ी  के दिमाग एवं  मन पर भी बुरा प्रभाव डाल रही है| कम्प्यूटर हमेशा घर के उस कमरे में होना चाहिए जहा बच्चो के इलावा अन्य लोग भी स्क्रीन पर चल रहे प्रोग्राम को देख सके| ताकि इन्टरनेट का गलत प्रयोग ना किया जा सके||कहने का साफ़ तात्पर्य यह है की किसी भी सभ्यता से गुण व अवगुण सीखना हमारे अपने हाथ में है| अपने संस्कारो के साथ सभ्य व्यक्ति बनना कोई कठिन कार्य नही है, हम भारतीय चाहे तो हम स्वयम और अपनी आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कारो के साथ आज की  प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया का सामना करते हुए संस्कारी,सभ्य व सफल व्यक्ति बना सकते है|


नीतू अरोड़ा

नीतू अरोड़ा लेखों के अलावा कहानियां एवं कवितायें लिखती हैं। वह फिलहाल हिमाचल प्रदेश में कुल्लु में रहती हैं। उनसे संपर्क करने के लिये riya.lyricst@gmail.com पर ईमेल किया जा सकता है।

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