अपेक्षाओं से रहें मुक्त उपेक्षा नहीं होगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 24 जून 2012

अपेक्षाओं से रहें मुक्त उपेक्षा नहीं होगी


अनचाहे का होना और मनचाहे का न होना ही जीवन का वह सबसे बड़ा मुख्य कारण है जिसकी वजह से व्यक्ति को दुःख तथा कष्ट का अहसास होता है। इस पीड़ा के पीछे जो सबसे बड़ा कारण हमारे सामने है वह है अपेक्षाओं का भरा-पूरा संसार। हमारा पूरा जीवन आशाओं और आकांक्षाओं से भरा रहे तो ताज़िन्दगी उल्लास और उत्साह बना रहेगा लेकिन इनकी बजाय जीवन भर अपेक्षाओं का ही दामन थामे रहेंगे तो निश्चय है कि जीवन भर दुःख, मानसिक अवसाद और पीड़ाओं का वातावरण हमें सामने मिलता रहेगा। यह अपेक्षाओं का संसार ही हमें पग-पग पर उपेक्षाओं के दंश से साक्षात् कराता रहता है। अपेक्षाओं के जन्म लेते ही उपेक्षाएं भी स्वतः पैदा होने लगती हैं और जो लोग अपेक्षाओं को जीवन में स्थान दे देते हैं उनके लिए पूरी जिन्दगी अपेक्षा और उपेक्षा के बीच पेण्डुलम सी हो जाती है। इस स्थिति में और कोई चारा ही नहीं रहता इस व्यामोह से निकलने का। फिर अपेक्षा और उपेक्षा अपने साथ कई सखियों व साथियों को लेकर आती है इनमें अवसाद, ईष्र्या-द्वेष, घृणा, तनाव और रोग ये सारे अपने आप जमा होने लगते हैं। सिर्फ अपेक्षा की खूँटी के गड़ जाने मात्र से ही इन सारी समस्याओं का तबेला अपने आप डेरा जमा लेता है।

अपेक्षा रखना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिससे कोई भी व्यक्ति या समुदाय बच नहीं सकता। ये अपेक्षाएं विभिन्न तरह की हुआ करती हैं इनमें सात्ति्वक, राजसी एवं तामसी प्रकारों के साथ ही वैयक्तिक, कौटुम्बिक एवं सामुदायिक अपेक्षाएं मुख्य हैं जिनकी पूत्रि्त हो जाने पर लोग प्रसन्न हो उठते हैं और न होने पर दुःखी व कुण्ठित। अपेक्षाओं के मामले में हम कई बार अपने भोलेपन, सहजता और सरलता से सोचते हुए आशान्वित हो जाते हैं जबकि हकीकत यह है कि हम जिन लोगों से अपेक्षा रखा करते हैं असल में वे इसके योग्य हो हीं, यह निश्चित नहीं हुआ करता। कई बार हम भी सामने वाले के व्यक्तित्व की पूरी थाह पाने में गच्चा खा जाते हैं और सही-सही मूल्यांकन नहीं कर पाते। कई बार हम अंधे मोह, बाहरी व्यक्तित्व और लल्लो-चप्पों भरी बातों में आकर सामने वाले से प्रभावित होकर अपेक्षाएं रखनी शुरू कर देते हैं जबकि आजकल बहुत से लोगों की हकीकत यह है कि ये लोग जैसे दिखते हैं, बोलते हैं और कहते हैं वैसे होते नहीं बल्कि इनके जीवन की हर घटना अभिनय और कुटिलता से कहीं ज्यादा नहीं हुआ करती। इन बहुरुपियों की वजह से ही सामाजिक विश्वास का माहौल बुरी तरह डगमगाने लगा है।

कई बार जिन लोगों से हमें अपेक्षाएँ हुआ करती हैं वे चाहते हुए भी अपनी मदद नहीं कर पाते हैं। लेकिन ऎसे लोगों की संख्या नगण्य हुआ करती है। बहुसंख्य लोग ऎसे हैं जो सारा सामथ्र्य होने के बावजूद लोगों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते और इनका एकमेव मकसद झूठ और फरेब के सहारे लोगों को भरमाना और टाईमपास करना ही रह जाता है। इस किस्म के धूत्र्तों की संख्या अपने क्षेत्र से लेकर पूरी दुनिया तक फैली हुई है। अपेक्षाओं का पूरा होना या नहीं होना उन लोगों की मनोवृत्ति और मन की शुचिता पर निर्भर है जिनमें अपेक्षाओं को पूरी करने और इन पर खरा उतरने का सामथ्र्य है। कभी यह न मानें कि हर सामथ्र्यशाली आपकी अपेक्षाएं पूरी कर ही देगा क्योंकि जिनमें सामथ्र्य है उनमें से अधिसंख्य में उन गुणों का सर्वथा अभाव होता है जो उन्हें सेवा और परोपकार से जोड़े रखते हैं। आजकल हमारी अपेक्षाएँ उन लोगों से कुछ ज्यादा ही होती जा रही हैं जिन लोगों में मनुष्यता से जुड़ी संवेदनाएँ, सच्चाई और पारदर्शिता का नितान्त अभाव है और ऎसे लोगों में खूब ऎसे हैं जो मनुष्य तक कहलाने लायक नहीं हैं और उनके जीवन का कोई गुण मनुष्य से मेल नहीं खाता। ऎसे लोगों से अपेक्षाएं रखना हमेशा उपेक्षाएँ देने वाला होता है।

जीवन की मस्ती का सच तो यह है कि अपेक्षाएँ किसी से न रखें बल्कि अपेक्षाओं से मुक्त जीवन जीयें। जिस दिन से हम अपेक्षाओं से मुक्त जिन्दगी जीना आरंभ कर देते हैं, हमारा पूरा जीवन उल्लास और आनंद से भर उठता है और जीवन पर्यन्त ताजगी बनी रहती है। अपेक्षाओं से मुक्ति ही वास्तविक जीवन्मुक्ति है और जो इसे अपना लेता है वह उपेक्षा के दंश से दूर रहता है। जीवन में उपेक्षा के दंश से बचना चाहें तो अपेक्षाओं से मुक्त रहें। अपेक्षाएं रखनी ही पड़ें तो सामने वालों को अच्छी तरह परख लें और उसके बाद ही उनसे अपेक्षा के भाव रखें। उन लोगों से कोई अपेक्षा कभी न करें जिनमें इंसानियत का अभाव है क्योंकि उनके जीवन की हर घटना और वाक्य हकीकत न होकर अभिनय से ज्यादा नहीं हुआ करता। अपेक्षाएं जब व्यक्ति की बजाय विचारधाराओं, आदर्शों और ईश्वर से होती हैं तब ये निरन्तर पूरी होती रहती हैं और कहीं भी हमें उपेक्षा का अहसास नहीं होता बल्कि हममें वह सामथ्र्य आ जाता है कि हम बिना कुछ लिये-दिए या लाग-लपेट के पूरी शुचिता दिखाते हुए दूसरोें की अपेक्षाओं को भी बेहतर ढंग से पूर्ण करने का सामथ्र्य पा जाते हैं।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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