अपशकुनी से बचें ये करते हैं हताश ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 जून 2012

अपशकुनी से बचें ये करते हैं हताश !


सृष्टि में शकुन और अपशकुनों का प्रभाव आरंभ से रहा है। इन्हीं का असर ये है कि मनुष्य समुदाय में भी ऐसे लोग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि अमुक का शकुन अच्छा है और अमुक अपशकुनी है। गणों, नक्षत्रों, करण, योग तथा घड़ी-पल और राशियों के प्रभाव से ही व्यक्ति का आभामण्डल शकुनी और अपशकुनी होता है। साफ दिल के लोगों का सान्निध्य हर मामले में सुकून देने वाला होता है क्योंकि ये जहाँ रहेंगे या काम करेंगे,  ईश्वरीय शक्तियों का आभामण्डल वहाँ मौजूद रहकर मंगलवृष्टि करता रहता है लेकिन मलीन मन वाले, भ्रष्ट और दुर्बुद्धि लोग जहाँ रहते हैं वहाँ संसाधन भले ही खूब आ जाएं मगर भीतर की शांति और आनंद वहाँ से निश्चय ही पलायन कर जाते हैं। संसार भर में अरबों-खरबों लोगों और जीव-जंतुओं में कितनी ही प्रजातियां और लोग ऐसे हैं जिनके बारे में यह जुमला सही बैठ जाता है कि ये अपशकुनी होते हैं और जहाँ इनकी मौजूदगी होती है अथवा इनकी छाया पड़ जाती है वहाँ कोई काम अच्छा और निरापद हो ही नहीं सकता। हमारे अपने इलाकों में भी ऐसे लोगों की तादाद कोई कम नहीं है जिनके बारे में लगभग ऐसा ही कुछ कहा और सुना जाता है।

कुछ लोग जन्म से ही ऐसे हैं तो कुछ बाद में मिलते गए ‘सत्संग’ की वजह से ऐसे हो गए हैं और कुछ तो अपशकुनी चरित्र में ऐसे सिद्ध हो गए हैं कि इनके बारे में कहना ही क्या?  वैसे देखा जाए तो इन लोगों की हरकतों,  दोहरे-तिहरे चरित्र और पाखण्डों भरे अभिनय से साफ भाँपा जा सकता है यदि जरा भी सूक्ष्मदृष्टि और मनोविज्ञान की जानकारी हो, मगर आम लोगों में ये अपना वजूद बनाने में कामयाब हो ही जाते हैं। कई लोगों के बारे में अक्सर ये सुना जाता है कि इन लोगों के पाँव जहाँ पड़ जाते हैं वहाँ दुर्भाग्य का साया अपने आप इस कदर पसरने लग जाता है कि थोड़े समय बाद इसका असर सामने आने लगता है और धीरे-धीरे इनके दुर्भाग्य से उन लोगों का भी पतन शुरू हो जाता है जिनके साथ ये लगे होते हैं।  थोड़ा गौर किया जाए तो इनके कारनामों की लम्बी सूची सामने आ सकती है जिनमें इन अपशकुनी लोगों की वजह से कितने ही लोग बरबाद हो गए हैं।

ये अपशकुनी लोग आम लोगों को पटाने और अपना बनाने की हर कला और करामात में माहिर होते हैं और यह इनके लिए बाँये हाथ का काम होता है। यही वजह है कि लोग इन विलक्षण चरित्र वाले लोगों की करतूतों को पहचान नहीं पाते और इन लोगों को महानता का खिताब देकर गुणगान करते रहते हैं। अपशकुनी लोगों की विशेषताओं में जो कारक सबसे अधिक प्रभाव छोड़ते हैं उनमें बेवजह पहल करने, डींगे हाँकने और खुद को महाबुद्धिमान समझने, खुदगर्जी, हर प्रकार के अभिनय का कौशल, अपने काम के लिए हर सीमा तक नीचे गिर जाने, बहाने बनाने और अपनी थालियों के माल को सुरक्षित रखते हुए दूसरों की थालियाँ उड़ा लेने, हर किसी के पत्तल साफ कर देने, पालकियाँ ढोने, कहार की भूमिका निभाने, दलाली करने और फटे में टाँग अड़ाने, दुनिया की हर गतिविधि के बारे में जानने की उत्सुकता, क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा रहने और बेवजह भौंकते रहने की आदतें प्रमुख हुआ करती हैं जो उनकी पूरी जिन्दगी भर साथ निभाती रहती हैं। इन अपशकुनी लोगों के बारे में साफ कहा जाता है कि ‘जहाँ-जहाँ पाँव पड़े .......।’

किसी को भी धराशायी करना हो, उसके लिए जरूरी नहीं कि किसी भी प्रकार के हथकण्डे अपनाए जाएं, इनके लिए हजार हथकण्डे एक तरफ और एकमात्र अपशकुनी शख़्स दूसरी तरफ, तब भी यह अकेले लोग हमेशा भारी पड़ेंगे। भगवान ने इन लोगों को मनुष्यों के लिए जरूरी सारे गुण दिये हों या नहीं, मगर मैले मन वाले इन लोगों का आभामण्डल ही ऐसा होता है कि जहाँ इनका पावन अस्तित्व और भूमिका जरा भी सक्रिय हो गई, फिर वो सब अपने आप होने लगता है जिसके लिए शिव को संहार का देवता माना गया है। इनकी मौजूदगी से ही लगता है जैसे वहाँ राक्षसी लोक की गंध पसर गई हो। कई स्थानों पर ये अपशकुनी लोग इस कदर निर्णायक भूमिका में आ जाते हैं कि अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग भी इन्हें भौमियाओं और पितरों की तरह पूजने लगते हैं। हालांकि इनके बारे में पैदा भरम ज्यादा दिन नहीं टिकता, मगर जितने दिन माया प्रभाव रहता है उतने दिन ये अपशकुनी लोग कुछ भी कर गुजरते हैं। ये लोग अपने पूरे जीवन में एकाध अच्छा काम भले न कर पाएँ मगर हजारों बुरे कामों में विजयश्री वरण करने का इनका उल्लास और उत्साह इन्हें मरते दम तक ऊर्जा का अहसास कराता रहता है।

अपशकुनी लोगों से बचते हुए जीवन में सफलता पाना चाहें तो ऐसे लोगों के श्वेत-श्याम इतिहास की जानकारी पहले पाएं और फिर इनकी निकटता को स्वीकारें तो कई खतरों से बचा जा सकता है। सब कुछ जानते बूझते हुए भी हम ऐसे अपशकुनी लोगों का सान्निध्य पाकर फूले नहीं समाएं तो इसमें दोष न भगवान का है, न भाग्य का और न किसी और का। ऐसे में हमें ही अपनी बुद्धि पर तरस खाना होगा।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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