देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रमानुजम का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को तमिलनाडु के इरोड शहर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था.परिवार में किसी को गणित से दूर दूर तक नाता नहीं था. रमानुजम सन 1897 में 10 वर्ष की उम्र में जिले में अव्वल आये. अपर प्राइमरी परीक्षा में रामानुजम ने अंकगणित(Arithmatic) में 45 अंक में से 42 अंक प्राप्त किया. सन 1903 में रामानुजम ने दसवीं की परीक्षा पास की और इसी वर्ष घन(cube) और चतुर्घात समीकरण (quartic eqation) के हल करने का सूत्र निकाला. रामानुजम अपने समय का उपयोग गणित के जटिल प्रश्नों को हल करने में बिताते थे. बारहवीं में गणित को छोड़ सभी विषयों में फेल होने पर उन्होंने पढाई छोड़ दी.
नौकरी की तलाश में रामानुजम मद्रास आये . उनके गणित में रूचि को देख प्रो.शेष नैयर उनसे प्रभावित हुए और और वहां के कलेक्टर के पास भेज दिया . कलेक्टर ने उन्हें शोध के लिए आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित किया.
सन 1911 में रामानुजम का प्रथम शोध पत्र जनरल ऑफ बारनालिज नम्बर्स शीर्षक से जर्नल ऑफ मैथमेटिक्स सोसाइटी में प्रकाशित हुआ. मद्रास के प्रो. सीएलओ ग्रिफिक्स ने रामानुजम के शोध पत्र गणित के विद्वानों को भिजवाया. और 1913 में रामानुजम का प्रमेय सूत्र शामिल हुआ. प्रो। हरदी इतने प्रभावित हुए की उन्होंने रामानुजम को कैंब्रिज आने का न्योता दिया. इसप्रकार रामानुजम को ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश मिला और मार्च 1916 में उन्हें उनके शोध पत्र के आधार पर ही स्नातक की डिग्री मिली. रामानुजम को गणित के क्षेत्र में किये गए कार्यों के लिए 28 फरवरी 1918 को रॉयल सोसाइटी का फेलो मनोनीत किया गया. रामानुज दूसरे भारतीय थे जिन्हें फेलो मनोनीत किया गया . मार्च 1919 में रामानुजम स्वदेश लौट आये. मद्रास विश्वविद्यालय में रामानुजम के लिए गणित प्राचार्य का पद स्थापित किया गया. रामानुजम ज्यादा दिनों तक उस पद पर कार्य नहीं कर पाए और क्षय रोग के कारण 26 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गयी.
गणित के क्षेत्र में रामानुजम के योगदान और उनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखकर 22 दिसंबर को उनकी 125वीं जयंती के अवसर पर उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में साथ ही वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष के रूप में मनाने घोषणा प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने की है.
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