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रविवार, 30 सितंबर 2012

स्थान विशेष भी ला देता है.....


आदमी के कद में उतार-चढ़ाव !!


आदमी जैसा आया है, जो है वैसा ही रहता है। निरंतर कठोर परिश्रम से प्राप्त उपलब्धियों वाले आदमी जहाँ रहते हैं वहीं स्वर्ग बना लेते हैं। उनके लिए स्थान का कोई ख़ास महत्त्व नहीं होता। इनके लिए उनका अपना निश्छल कर्मयोग प्रत्येक स्थान पर भारी रहता है और इसकी गंध बरसों बाद तक महसूस की जाती रहती है। सच्चे कर्मवीर देश, काल व परिस्थितियों से ऊपर उठकर काम करते हैं। इनके पास मौलिक हुनर के साथ ईश्वरीय कृपा भी अटूट होती है। फिर इनके लोकमंगलकारी कायार्ें व सद्भावी व्यक्तित्व की वजह से सभी की दुआएँ भी खूब मिलती रहती हैं। असल मे ये ही इनकी पूंजी होती है। इन बहुआयामी ऊर्जाओं के ही फलस्वरूप ऎसे लोगाें के लिए अनवरत रचनात्मक कर्म करते रहना ही जीवन का लक्ष्य बना रहता है। इन दृढ़ संकल्पों के बीच न स्थान विशेष इन्हें प्रभावित कर पाता है, न समय। और न ही स्थान विशेष। ये जहाँ रहते हैं वहाँ हर परिस्थिति में खुद ढल जाते हैं व प्रसन्नता के साथ तमाम कठिनाइयों को चुनौती के रूप में स्वीकार भी कर लेते हैं। इन सभी प्रकार की परिस्थितियों में समन्वय बनाये रखने वाले लोग समता भाव, सहिष्णुता, धैर्य, परहित की भावनाओं के साथ निरंहकारी रहते हैं। ये लोग बड़े ओहदों पर होने के बावजूद छोटी जगह पर रहें अथवा छोटे ओहदों को धारण करते हुए बड़ी जगह पर रहेंं, ये स्थान विशेष की हवाओं की नेकचलनी या बदचलनी से अप्रभावित रहते हैं क्योंकि इन्हें अपनी मर्यादाओं की परिधि का भान हमेशा बना रहता है।

यह असीम आत्मतुष्टि ही इन्हें हमेशा आनन्ददायी और स्फूर्तिमान बनाये रखती है। इसके विपरीत काफी संख्या में ऎसे-ऎसे लोग पैदा हो गए हैं जो अधजल गगरी बने हुए जहाँ-तहाँ छलकते रहकर अपने होने का प्रमाण दर्शाते  रहते हैं। इनके जीवन में न मर्यादा रहती है न समत्व या दूसरों के प्रति संवेदनशीलता या परोपकार का भाव। ऎसे लोग अपनी उच्चाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इनमे बड़े ओहदेधारी किसी छोटे स्थान पर लगा दिए जाएं तो इनका हर दिन असंतोष के साथ उगता है। ऎसे में ये न खुद के काम ढंग से कर पाते हैं न औरों के। किसी छोटे स्थान विशेष में समृद्धि या आकर्षण का कोई केन्द्र हो तब अपवाद कहा जा सकता है वरना ये रोजाना कुढ़ते रहकर दिन काटते हैं। दूसरी अवस्था में इस किस्म के आदमी अपनी हैसियत से ज्यादा ओहदा पा जाएं अथवा किसी बड़े स्थान विशेष में लगा दिए जाएं तब इनकी असलियत कुछ और ही हो जाती है। बड़े स्थलों पर पहुंचकर ये लोग अपने आपको बड़ा आदमी या बड़ा साहब महसूस करने लग जाते हैं और अपने चारों तरफ हमेशा इस इन्द्रजाल का आभामण्डल बुनते रहते हैं।

बड़े स्थान विशेष पर होने वाले ये लोग फिर उन पर भी हुकूमत करने की कोशिश करने लगते हैं जो छोटे स्थलाें पर तैनात हैं लेकिन ओहदों में उनसे भी बड़े हैंं। बडे़ स्थलों में पहुंचकर अचानक बड़े हो जाने वाले ये लोग अपने कई-कई किरदारों में जीने लगते हैं। कभी ये संरक्षक या भाई-बहन का सम्बंध बनाकर नसीहत देने लगते हैं, कभी महानतम विशेषज्ञ और चिंतक के रूप में उपदेश झाड़ने लग जाते हैं, और कभी बॉस की भूमिका में डाँटने-डपटने या घुट्टी पिलाने। आमतौर पर होता यही आया है कि भौगोलिक लिहाज से बडे़ व अपेक्षाकृत विकसित स्थल विशेष पर पहुंचे या रह रहे बहुसंख्य ऎसे लोग अपने से निम्न क्षेत्रों के लोगों को अपने से कम ही आँकते हैं व व्यवहार भी उसी अनुरूप करते हैं भले ही सामने वाला उनसे इन बड़ों को अपने कर्मस्थलों पर भी बडप्पन दिखाते देखा जा सकता है। बडे़पन को अंगीकार करने वाले आदमियों की फितरत कहें या बड़े शहरों या महानगरों की हवाओं की असर, कुछ बिरलों को छोड़ दिया जाए तो  बहुसंख्य आदमी वो नहीं रहा करते जैसे देहात या अपने इलाकों से आए होते हैं।

बड़प्पन का यह अहंकार उन सभी लोगों को हो सकता है जिन्हें बड़े स्थान में रहते हुए ये स्थल रास आ जाते हैं।  फिर चाहे ये लोग कितने ही बड़े विद्वान, बड़े ओहदेदार या धीर गंभीर क्यों न हों। हम में खूब ऎसे हैं जो उन लोगों को जानते हैं जिन्हें बड़े शहरों के सारे रोग लग गए हैं ओर ये अपने आपको अब इतना बड़ा समझने लगे हैं कि अगले जनम में खजूर बन कर ही रहेंगे। बड़े स्थान पर अपने आपको बड़ा मानकर चलने वाले ये छोटे लोग शोषण और अन्याय की पराकाष्ठा भी पार कर देते हैं। इसे यों समझा जा सकता है कि राजधानियों में राज्य मुख्यालयों में काम करने वाले कर्मचारी और अधिकारी जिलों में बैठे अपने ही विभाग के नुमाइन्दों के साथ कैसा सामंती व्यवहार करते हैं यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।  इन शोषक मनोवृत्ति वाले लोगों के सारे भ्रम स्थान बदलते ही टूट कर बिखर जाते हैं। इसके साथ ही बड़े स्थल पर कर्मशीलता के दौर में पनप गए सारे हवाई किले ध्वस्त हो जाते हैं और इन्हें ज्ञात होता है जिन्दगी का अहम सच, जिसके बगैर वे अंधेरे में ही तीर चला रहे थे।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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