यूपी में 3,68,07,135 वोटर फर्जी, कहीं मतदान में कमी की बड़ी वजह फर्जी मत तो ही नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 27 नवंबर 2014

यूपी में 3,68,07,135 वोटर फर्जी, कहीं मतदान में कमी की बड़ी वजह फर्जी मत तो ही नहीं

पूर्वांचल के जौनपुर में 10 लाख 68 हजार 807 फर्जी वोट मिले हैं। जबकि यह आंकड़ा मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में 9 लाख 70 हजार 690 व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्षेत्र वाराणसी में 6 लाख 47 हजार 85 हैं 

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चुनाव चाहे लोकसभा हो, विधानसभा हो या फिर शहरीय-ग्रामीण शत-प्रतिशत मतदान कभी नहीं हो पाता। भला हो भी कैसे, जब बूथ लिस्ट में अंकित नाम वाले है ही नहीं। मतलब साफ है, पुर्ननिरीक्षण अभियान भले ही दिखावे के तौर पर जोर-शोर से चलाएं जाते है, लेकिन सच तो यह है कि बीएलओ यानी बूथ लेबल आफिसर घर-घर जाकर निरीक्षण के बजाएं इसकी सारी औपचारिकताएं घर बैठे ही निपटा लेते है। फिर तो जाहिर सी बात है जिनका नाम वोटर लिस्ट में है जब वह मौके पर है ही नहीं तो वोट डालेंगे कैसे। लोकसभा चुनाव की बात छोड़ दे तो 40-45 प्रतिशत से अधिक वोटिंग बीते दो दशकों में नहीं हो पाता था। कहा जा सकता है कि संबंधित आफिसर यानी चुनाव आयोग को अभी और कड़े कदम उठाने होंगे खासकर मतदाता पुर्नरीक्षण कार्य में लगे बीएलओं पर नकेल कसनी ही होगी। बगैर मतदाता सूची को दुरुस्त किए मतदान प्रतिशत का सही आंकड़ा निकाल पाना संभव नहीं है। काशी के वरिष्ठ पत्रकार युगल किशोर जालान ही अकेले ऐसे मतदाता नहीं है जो बीते लोकसभा चुनाव में चाहकर भी अपना वोट नहीं दे सकें। जालान जैसे सैकड़ों-हजारों ऐसे मतदाता है, जिन्हें बूथ से वापस लौटना पड़ा। कई जगह पूरी सोसायटी या कालोनी या मुहल्लों के लोगों के नाम गायब मिले। प्रशासनिक आंकड़ों की मानें तो तकरीबन हर बूथ पर सौ से डेढ़ सौ तक ऐसे मतदाता बूथों पर मिले जो वोट देने तो पहुंचे लेकिन उनके नाम लिस्ट से गायब रहे और सूची में तकरीबन 4-5 सौ ऐसे मतदाताओं के नाम अंकित रहे जो वोट देने पहुंचे ही नहीं। 

काशी में फर्जी वोटरों की संख्या मिलना तो एक बानगीभर है अगर सही-सही निरीक्षण कार्य कराएं जाएं तो तकरीबन हर जनपद में लाखों की संख्या में फर्जी वोटर मतदाता सूची में दर्ज है। हालांकि अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी रमाकांत पांडेय ने खामियों को स्वीकार करते हुए कहा है कि 5 जनवरी तक मतदाता सूची में दर्ज नामों की पड़ताल चलेगी। जांच पूरी होने के बाद ही यह तय होगा की कितने नाम फर्जी हैं। जांच पूरी होने के बाद फर्जी नामों को मतदाता सूची से हटाया जाएगा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि लाखों की तादाद में मिले फर्जी वोटरों का खुलासा तब हुआ है जब भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर यूपी के सभी जिलों में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान शुरू है। अभी तक के अभियान में केवल वाराणासी में ही 3,11,057 फर्जी वोटर मिलने की पुष्टि हो चुकी है। कहा जा रहा है कि अभी और फर्जी वोटरों के मिलने का अनुमान है। यह संख्या साढ़े 6 लाख से उपर तक जा सकती है। कुछ इसी तरह के आंकड़े अन्य जनपदों में भी देखने को मिल रहा है। जौनपुर में यह संख्या 10,68,807, आजमगढ में 9,70,690 गाजीपुर में 7,93,654 बलिया में 6,70,626 वाराणसी में 6,47085 मऊ में 4,34,640 मिर्जापुर में 4,02948 चंदौली में 3,43,695 भदोही में 2,80,866 सोनभद्र में 2,68,281 है। 

निर्वाचन आयोग की ओर से जारी सिर्फ उत्तर प्रदेश के आंकड़ों पर गौर करें तो फर्जी वोटरों की कुल संख्या 3 करोड़ 68 लाख 7 हजार 135 है, जो अब तक सामने आ चुके हैं। हालांकि आयोग अब तक की जांच में वाराणसी में मात्र 23 हजार, जौनपुर में 68 हजार और गाजीपुर में 8 हजार फर्जी वोटर की बात कह रही है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पहली जनवरी 2015 को 18 साल की उम्र पूरी करने वाले युवाओं का नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने व मतदाताओं के सत्यापन के दौरान जिन फर्जी वोटरों की अभी तक शिनाख्त की है, वे एक ही विधानसभा क्षेत्र की सूची में दो जगह अपना नाम दर्ज कराने वाले है। पुनरीक्षण अभियान के दौरान पकड़े गए इन वोटरों का नाम अब मतदाता सूची से काटा जाना है। 5 जनवरी 2015 को भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर नई वोटर लिस्ट का प्रकाशन होगा। बताया गया कि फर्जी वोटरों का नाम काटने के साथ नए मतदाताओं का नाम जोड़ने के लिए जिलों के सभी विधानसभा क्षेत्रों के पोलिंग सेंटरों के पोलिंग बूथों पर बूथ लेवल ऑफिसरों ने घर-घर जाकर वोटरों का सत्यापन किया है। लेकिन यह सच नहीं है। बड़ी संख्या में बीएलओं बूथों पर ही अपने कागज मेंटेन करते देखा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि फर्जी वोटरों की सही संख्या पता लग जाने से मतदान के आंकड़े और दुरुस्त हो जायेंगे। निश्चित रूप से चुनाव आयोग का यह कदम सराहनीय है। इस संस्था पर देश के प्रजातंत्र की जिम्मेदारी है। अब मतदाता सूची अपडेट हो जायेगी और हमें यह सही-सही पता चलेगा कि मतदान में कितने लोगों ने हिस्सेदारी की है। 

सवाल यह है कि क्या यह पुनरीक्षण के दौरान साधारण चूक का मामला है? मतदान से वंचित रह गए ये लोग कई चुनावों से वोट देते आ रहे थे। फिर, इनके नाम कैसे गायब हुए? आयोग को इसकी तह में जाना चाहिए कि मतदाता सूची से इतने बडे पैमाने पर नाम कैसे हटे, और इसके लिए कौन लोग जिम्मेवार हैं। पर यह दलील सच्चाई से आंख चुराने और बहाने गढने के अलावा कुछ नहीं है। जो लोग लगातार वोट देते आए हैं, उचित ही यह मान कर चलते हैं कि उनका नाम सूची में होगा। अगर नहीं है तो इसके लिए आयोग जिम्मेवार है। इसकी सजा मतदान से वंचित किए जाने के तौर पर मतदाता को क्यों दी जानी चाहिए? अगर किसी के पास मतदाता पहचान पत्र है, और सूची में नाम में नहीं है, तो वैसी सूरत में उसका मताधिकार सुनिश्चित करने का उपाय आयोग क्यों नहीं कर सकता, जबकि ऐसे मामले व्यापक रूप से न सही, छिटपुट तौर पर पहले भी सामने आए हैं। आखिर आयोग ने उन अनुभवों से क्या सीखा? यों निर्वाचन आयोग मतदान बढाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा है। मतदान को लोकतांत्रिक कर्तव्य बताते हुए लोगों को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित करने वाले संदेश भी उसकी ओर से प्रचारित किए जाते रहे हैं। ऐसे में इससे बडी विडंबना और क्या होगी कि खुद मतदाता सूची कई लोगों को वोट डालने से रोक दे। उजागर हुई गडबडियां मामूली नहीं मानी जा सकतीं, इसलिए आयोग को जरूर जांच करानी चाहिए। साथ ही उसे अधिकारियों को यह निर्देश देना चाहिए कि अगर किसी के पास मतदाता पहचान पत्र है, तो सूची में नाम न मिलने के बावजूद, उसका मताधिकार कैसे सुनिश्चित किया जाए। जिस वाराणासी संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी ने 371784 वोटों से जीत हासिल की है, वहां फर्जी वोटरों की संख्या 647085 है। 

निर्वाचन आयोग की गिनती देश की उन संवैधानिक संस्थाओं में होती है जिन्होंने अपनी साख बनाए रखी है बल्कि पिछले कई आम चुनावों से उसमें इजाफा ही किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी प्रतिष्ठा है और उसके अनुभवों और सुझावों से समय-समय पर कई अन्य देशों ने भी लाभ उठाया है। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से मतदाता सूची में गडबडी के ढेरों मामले उजागर हुए हैं उससे आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठे हैं। सोलहवीं लोकसभा चुनाव के बाद से ही देश के अनेक हिस्सों से मतदाता सूची के त्रुटिपूर्ण होने की शिकायतें मिली हैं यानी बहुत-से लोग अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सके। यह सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में हुआ, और उसमें भी मुंबई में। अनुमान है कि अकेले यूपी व मुंबई में कोई 15 लाख से भी अधिक लोग वोट देने से रह गए जब मतदान केंद्रों पर वे पहुंचे तो पाया कि उनके नाम मतदाता सूची से गायब थे। उनमें से कइयों ने लिखित शिकायत भी दर्ज कराई है। इन शिकायतों के तूल पकडने के बाद मतदाता सूची में गडबडी की बात स्वीकार करते हुए आयोग ने न सिर्फ माफी मांगी, बल्कि बड़े पैमाने पर जांच पड़ताल की तो नतीजा भी सामने है। 





(सुरेश गांधी)

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