देश में राजनीतिक विकल्प के प्रणेता थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 9 अक्तूबर 2016

देश में राजनीतिक विकल्प के प्रणेता थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय

नयी दिल्ली 09अक्टूबर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनसंघ विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को देश में राजनीतिक विकल्प का प्रणेता बताते हुए आज कहा कि उनकी दूर दृष्टि और कर्मठता का ही फल था कि देश की राजनीति में जनसंघ के रूप में कांग्रेस का एक मजबूत विकल्प तैयार हो सका। 

श्री मोदी पंडित दीनदयालय उपाध्याय के जन्मशति वर्ष के उपल्क्ष्य में उनके जीवन दर्शन को समर्पित ‘वांग्मय’ का आज यहां विमोचन करने के अवसर पर बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि यह वांग्मय एक महान युग दृष्टा की विचार यात्रा ,विकल्प यात्रा और संकल्प यात्रा की त्रिवेणी है। पन्द्रह खंडों वाले इस वांग्मय में उनके एकात्मकता वाद के विचार दर्शन , उनके जीवन काल की यात्रा , भारतीय जनसंघ की स्थापना ,भारत पाक युद्ध ,गोवा की स्वतंत्रता और ताशकंत समझौते से जुडे घटनाक्रमों को संकलित किया गया है।

 प्रधानमंत्री ने कहा कि 1962 से लेकर 1967 के बीच देश की राजनीति में एक बड़ खालीपन आ चुका था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के बाद कौन यह सवाल सबकी जुबान पर था। ऐसे मौके पर देश में कांग्रेस से इतर एक नयी राजनीतिक विचारधार को पनपने का असवर देना पंडित जी के प्रयासों से ही संभव हो सका। जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक संगठन आधारित राजनीतिक दल को खड़ा करने में पंडित जी की भूमिका अहम रही। उन्होंने जो बीज बोए उसका फल आज तक मिल रहा है। उनके प्रयासों से देश की राजनीति में आज ऐसा मजबूत राजनीतिक विकल्प अस्तित्व में आ चुका है जो संगठन आधारित है और जो संगठन राष्ट्र के प्रति समर्पित है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पडिंत दीन दयाल उपाध्याय ने निर्धनता मुक्त,भेदभाव मुक्त और शेाषण मुक्त समाज की कल्पना की थी। 

उनका विशाल राजनीतिक चिंतन गरीबों पर केन्द्रित था इसलिए उनके जन्मशति वर्ष को गरीब कल्याण वर्ष के रूप में मनाने का निश्चय किया गया है। इस दौरान सरकार का हर विभाग अपनी नीतियों और कार्यक्रम तय करते समय गरीबों के कल्याण को प्रमुखता देगा। उन्हाेंने कहा कि पंडित उपाध्याय का जीवन काल बड़ा नहीं था लेकिन जो वैचारिक अधिष्ठान वह देकर गए हैं वह बहुत बड़ा है। श्री मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्यान ने अपनी परंपराओं और जड़ों से जुड़े रहने के बावजूद समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी नवीन विचारों का सदैव स्वागत किया। वे वेद से विवेकानंद तक और सुदर्शन मोहन से चर्खा कातने वाले मोहन तक सब पर आस्था रखते थे । उनका कहना था कि भारत की जड़ों से जुड़ी राजनीति,अर्थनीति और समाज नीति ही देश के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखती है। काेई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नही कर सका है। “आज कि दिन उस महानविभूति को याद करते हुए आइये हम सभी मिलकर देश के विकास के संकल्प के साथ अपनी नयी यात्रा शुरु करें।”

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