भोपाल, 21 जनवरी, 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा बुलंद करने वाली मध्यप्रदेश की सरकार के लिए ये खबर निश्चित ही बेहद खराब है। पिछले दिनों नई दिल्ली में विमोचित 11वीं एन्युअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में वर्ष 2016 में 11 से 14 वर्ष की किशोरियों के स्कूल छोड़ने के मामलों में वर्ष 2014 की तुलना में लगभग 2.3 फीसदी का इजाफा हुआ है। वर्ष 2014 में ऐसी किशोरियों का प्रतिशत 6.2 था, जो 2016 में बढ़कर 8.5 हो गया है। इनमें उन किशोरियों की संख्या भी शामिल है, जो आज तक कभी स्कूल ही नहीं गईं। एएसईआर वर्ष 2008 में प्रथम नेटवर्क के तहत स्थापित एक स्वायत्तशासी सर्वे एवं आंकलन शोध इकाई है, जो देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सरोकारों जैसे स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षा को लेकर शोध करता है। 'प्रथम' की मध्यप्रदेश इकाई के प्रमुख सज्जन शेखावत ने यूनीवार्ता को बताया कि 2016 की रिपोर्ट में देश के कई प्रदेशों में 'स्कूल से बाहर लड़कियों' का प्रतिशत आठ फीसदी से ज्यादा रहा है। इन प्रदेशों में उत्तरप्रदेश (9.9), राजस्थान (9.7) और मध्यप्रदेश (8.5) फीसदी के साथ सबसे ऊपर हैं। मध्यप्रदेश इसी वर्ष इन प्रदेशों की सूची में शामिल हुआ है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक कई राज्यों में दो साल में स्कूल नहीं जाने वाले छह से 14 साल के बच्चों के प्रतिशत में भी इजाफा हुआ है। मध्यप्रदेश भी उनमें शामिल है। प्रदेश में इस बार ऐसे बच्चों की संख्या 4.4 फीसदी हो गई है, जो 2014 में 3.4 फीसदी थी। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर पिछले दो साल में सभी अायु वर्ग के बच्चों के स्कूल में नामांकनों की संख्या बढ़ी है। एएसईआर हर वर्ष ग्रामीण भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या, उनके सरल पाठ पढ़ सकने और बुनियादी गणितीय क्षमता आंकता है। वर्ष 2015 में ये सर्वे नहीं हो पाया था, जिसके चलते इस बारे के आंकड़ों की तुलना 2014 से की गई है।
शनिवार, 21 जनवरी 2017
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स्कूल छोड़ने वाली किशोरियों के मामले में देश के आला तीन प्रदेशों में शामिल हुआ मध्यप्रदेश
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