विशेष : भृष्टाचार का युद्ध अब जनता लड़ेगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 15 जनवरी 2017

विशेष : भृष्टाचार का युद्ध अब जनता लड़ेगी

वर्ष 2016 की निकासी के साथ डिमाॅनिटाईजेशन दिनांक 08 नवम्बर के बाद से देश में वातावरण भृष्टाचार से लड़ाई का बन चुका है। इस मुहिम की अगुवाई भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं की है तो जाहिर है कि देश की आम जनता और राष्ट्र की सेवा में समर्पित ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी भी कमर कसकर मोदी के साथ हो गये हैं। भृष्टाचार के अप्रत्यक्ष समर्थकों ने आम जनता की परेशानियों व बैंक और ए.टी.एम. की कतारों को अपनी दम लगाकर उजागर किया था, लेकिन लाख परेशानियों के बावजूद भी अन्ततः हर जगह जनता ने डिमाॅनिटाईजेशन एवं मोदी के इस कदम की तारीफ ही की है। भृष्टाचार को जड़ मूल से नष्ट करने के लिये अब भारत की जनता किसी भी स्तर तक परेशान होने का मन बना बैठी है। जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने अनेकों बार आतंकवाद के विषय पर ’’बेड टेररिज्म’’ एवं ’’गुड टेररिज्म’’ का अन्तर करना गैरवाजिब माना है और पाकिस्तान पर निशाना साधते हुये कहा था कि टेररिज्म तो सिर्फ टेररिज्म ही होता है। इसमें अच्छा और बुरा का अन्तर नहीं देखा जाना चाहिये। मेरे लिये ’गुड’ और आपके लिये ’बेड’ कहकर इसमें फर्क नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार मैं यह कहूंगा कि ’’गुड करप्शन’’ और ’’बेड करप्शन’’ में भी हम कोई फर्क नहीं कर सकते हैं। भृष्टाचार तो भृष्टाचार ही है। चाहे वह सत्ताधीशों और सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों द्वारा किया जाये या सत्ताच्युत नेताओं के द्वारा किया गया हो। 

विषय है कटनी (म.प्र.) से स्थानांतरित पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी ने नोट-बन्दी के बाद से कालाधन जमाकर्ताओं और हवाला कारोबारियों के धर-पकड़ का अभियान कटनी में चलाया था। वह डिमाॅनिटाईजेशन की घोषणंा के बाद एक्सिज बैंक सहित अनेकों बैंकों में 500 करोड़ के हवाला लेनदेन वाले कई फर्जी खातों की जांच कर रहे थे। इस जांच के लिये उन्होंने 4 जनवरी को एस.आई.टी. बनाई थी जिसमें तथाकथित हवाला कारोबारी सरावगी ब्राॅदर्स फरार हैं और अनेकों रसूखदार, सांसद, मन्त्री या उनके परिवार-जन इस आर्थिक अपराध में लिप्त होना कहा गया है। बोगस कम्पनियों के नाम पर रुपया जमा करते हुये, उनके नौकर-चाकरों का सहयोग लेना पाया गया। एक्सिज बैंक के 100 फर्जी खातों की जांच आयकर विभाग भी कर रहा है। कटनी की जनता को यह आशंका हो गई कि इस भृष्टाचार की पकड आने पर जब पुलिस के हाथ रसूखदारों के गिरेबां तक पहुंचने लगे तो पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी का स्थानांतरण कटनी से छिंदवाड़ा कर दिया गया। यद्यपि इसकी जांच अब प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) से कराने का निर्णय राज्य-सरकार ने लिया है और मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह ने घोषणां की है कि गड़बड़ी करने वालों को बख्सा नही जायेगा। परन्तु पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के ट्रान्सफर से दुखी होकर कटनी की आम जनता ने तो मोर्चा संम्हाल ही लिया था और वहां के पुरुष, महिलायें, छात्र-छात्रायें, व्यापारी, छोटे दुकानदार, सभी का जन-सैलाब कटनी के सुभाष चैक पर एकत्रित होकर गौरव तिवारी के स्थानांतरण को निरस्त करने की मांग करने लगे थे। राज्य शासन और पुलिस प्रशासन के प्रदेश-मुखिया डी.जी. का यह कहना, कि गौरव तिवारी का ट्रान्सफर एक रुटीन प्रक्रिया के तहत है, बात कुछ हजम नहीं होती है। गौरव तिवारी को अभी छः माह पूर्व ही जुलाई 2016 में कटनी के पुलिस अधीक्षक पद पर पदस्थ किया गया था। तब फिर ऐसा क्या कुछ बिगड़ गया था, कि उन्हें वहां से हटा दिया गया ?

 शत्-शत् बार कटनी की जनता का अभिनन्दन है, जिसने भृष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की, स्वप्रेरणा से बाजार, गलियों, मोहल्लों में दुकानें बन्द कर अपने प्रदर्शन से भृष्टाचार की चूलें हिला दी हैं। वहां के युवक, छात्र-छात्रांयें, छोटे-छोटे बच्चे बड़े बुजुर्ग एवं महिलाओं ने आन्दोलन करते हुये हजारों की संख्या में सुभाष चैक पर एकट्ठे होकर गौरव के स्थानांतरण निरस्त करने और अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे थे। प्रधानमन्त्री मोदी के संरक्षण मे अब भृष्टाचार के बिरूद्ध मुहिम छेड़ने का समय आ चुका है कि - बस, बहुत हो गया, अब नहीं सहेंगे, अब नहीं रुकेगें, अब भृष्टाचार के पोषकों को नहीं बख्सेंगे। सवाल गौरव तिवारी के ट्रान्सफर का नही है और न ही विषय यह है कि कौन एस.पी. हटे एवं कौन पदस्थ हो। प्रशंसनीय तो यह है कि आम-जनता ने भृष्टाचार के खिलाफ बिरोध दर्ज कराया है। जनता की मानसिकता यह रही है कि इस अपराध की धर-पकड़ गौरव तिवारी ने की है और वह एक अच्छे पुलिस अधिकारी हैं। जनता को आशंका हो गर्ह कि इसी वजह से ही उनका स्थानांतरण किया गया है। पुलिस आधीक्षक गौरव तिवारी के स्थानान्तरण का परिणाम जो भी हो, परन्तु इतना तो हुआ है कि    प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा भृष्टाचार के बिरुद्ध छेड़े गये आन्दोलन ने अब जनता को जागृत कर दिया है। इस देश की जनता को अब इन्तजार है उस समय का, कि जब भृष्टाचारियों की स्थिति खजेले कुत्तों की तरह होने वाली हो। 

देश के युवाओं को विषम परिस्थितियों मे मंजिल प्राप्त करने की प्रेरणा ऐसे ही प्रसंग से मिलती है कि बनारस के एक छोटे से गांव के निवासी लघु कृषक श्री अरुण तिवारी के पुत्र पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी ने 10वीं तक की पढ़ाई लिखाई अपने गांव में ही की थी। परिवार आर्थिक तंगी में था, किसी हाई प्रोफाईल स्कूल में पढ़ाई करना संभव नहीं था। गौरव ने लखनऊ से इण्टरमीडियेट करने के बाद स्काॅलरशिप की सहायता से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूर्ण की। मन में आई.पी.एस. होने का जज्बा बुलन्द था। अर्थाभाव के कारण गौरव ने टाटा कम्पनी में नौकरी कर ली थी और दो वर्ष तक नौकरी करने के बाद जब थोड़ा बहुत पैसा बचा लिया तो दिल्ली में आई.पी.एस. की कोचिंग ली और फिर पुलिस की सर्वोच्च कठिन परीक्षा में पास होकर देश को एक मजे हुये समर्पित आई.पी.एस. आॅफीसर के रुप में स्वयं को मध्य प्रदेश में प्रस्तुत कर दिया। 

देश की जनता और युवाओं को प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा है। इस कार्य में एक टीम बनाकर काम करने की आवश्यकता है। देश के ऐसे प्रशासनिक पुलिस अधिकारी और ब्यूरोक्रेट्स, जो ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, देश को समर्पित होकर काम करना चाहते हैं, उनके संगठित होने का वक्त आ गया है। यद्यपि ऐसी कार्य-शैली के आई.पी.एस. व ब्यूरोक्रेट्स संख्या मे बहुत कम हैं और उनमे एक-दूसरे से जुड़ाव व सम्पर्क भी नही है। मै स्वयं इस कार्य मे लगा हूं कि जो देश-भक्त और राष्ट्र को समर्पित कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं, उनकी एक सूची बना कर यथा-स्थान भारत के उच्च सत्ताधीश तक भेजूं, जिससे कि भारत के नव-निर्माण मे उनका सदुपयोग हो सके। आश्चर्य तो यह है कि इनकी संख्या अत्यन्त न्यून है। आई.ए.एस. अथवा आई.पी.एस. अधिकारी अपनी नौकरी के प्रारम्भ काल मे राष्ट्र की सेवा का शपथ लेता है। हम उन शासकीय-अधिकारियों की समस्याओं के सन्दर्भ मे कल्पना कर सकते है जो तहसील और जिला स्तर पर पदस्थ हैं और यदि वे तथा-कथित राजनेताओं की इच्छा-पूर्ति नही करते हैं, तो उनके स्थानान्तरण करा दिये जाते हैं। वस्तुतः राजनीतिक हस्तक्षेप हमेशा बेईमान, निष्क्रिय तथा निजी-स्वार्थ मे लिप्त अधिकारियों के संदर्भ मे ही होना चाहिये। लेकिन नौकरशाही का कौन सा चेहरा आज हमारे सामने है ? अधिकांश राजनेता एवं नौकरशाह आपस मे एक दूसरे के साथ निकटता से जुड़ते हुये उन्होने व्यापारिक सम्बन्ध निर्मित कर लिये हैं। यह कहा जाता है कि प्रजातंत्र मे राजनीति और राजनेता जनता की आवाज के परावर्तन हैं, परन्तु क्या कहीं कोई जनता की आवाज सुनाई पड़ती हैं ? कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति करता है जब उसके राजनेता चरित्रवान हों और चरित्रहीनता के कारण ही इसके ठीक विपरीत स्थिति निर्मित होती है।
 




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लेखक- राजेन्द्र तिवारी, 
फोन- 07522-238333, 9425116738
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नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों 
के समालोचक हैं। 

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