विशेष : राजनीतिक का ‘शुद्धिकरण’ जरूरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 15 जनवरी 2017

विशेष : राजनीतिक का ‘शुद्धिकरण’ जरूरी

political-purify-needed
आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी हम अपने आचरण, चरित्र, नैतिकता और काबिलीयत को एक स्तर तक भी नहीं उठा सके। हमारी आबादी सत्तर वर्षों मंे करीब चार गुना हो गई पर हम देश में 500 सुयोग्य और साफ छवि के राजनेता आगे नहीं ला सके, यह देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ-साथ विडम्बनापूर्ण भी है। आज भी हमारे अनुभव बचकाने हैं। जमीन आजाद हुई है, जमीर तो आज भी कहीं, किसी के पास गिरवी रखा हुआ है। लोकतंत्र की कुर्सी  का सम्मान करना हर नागरिक का आत्मधर्म और राष्ट्रधर्म है। क्योंकि इस कुर्सी पर व्यक्ति नहीं, चरित्र बैठता है। लेकिन हमारे लोकतंत्र की त्रासदी ही कही जायेगी कि इस पर स्वार्थता, महत्वाकांक्षा, बेईमानी, भ्रष्टाचारिता आकर बैठती रही है। लोकतंत्र की टूटती संासों को जीत की उम्मीदें देना जरूरी है और इसके लिये साफ-सुथरी छवि के राजनेताओं को आगे लाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। यह सत्य है कि नेता और नायक किसी कारखाने में पैदा करने की चीज नहीं हैं, इन्हें समाज में ही खोजना होता है। काबिलीयत और चरित्र वाले लोग बहुत हैं पर परिवारवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार व कालाधन उन्हें आगे नहीं आने देता।

सात दशकों में राजनीति के शुद्धिकरण को लेकर देश के भीतर बहस हो रही है परन्तु कभी भी राजनीतिक दलों ने इस दिशा में गंभीर पहल नहीं की। पहल की होती तो संसद और विभिन्न विधानसभाओं में दागी, अपराधी सांसदों और विधायकों की तादाद बढ़ती नहीं। यह अच्छी बात है कि देश में चुनाव सुधार की दिशा में सोचने का रुझान बढ़ रहा है। चुनाव एवं राजनीतिक शुद्धिकरण की यह स्वागतयोग्य पहल उस समय हो रही है जब चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा का चुनावी कार्यक्रम घोषित हो गया है। यही नहीं, देश की दो अहम संवैधानिक संस्थाओं ने एक ही दिन दो अलग-अलग सार्थक पहल कीं, जो स्वागत-योग्य हैं। गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव सुधार के एक बहुत अहम मसले पर विचार करने के लिए अपनी सहमति दे दी। गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए या नहीं, और चुने गए प्रतिनिधि को कब यानी किस सूरत में अयोग्य घोषित किया जा सकता है, आदि सवालों पर विचार करने के लिए न्यायालय पांच जजों के संविधान पीठ का गठन करेगा। दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि प्रत्याशियों के लिए अपने आय के स्रोत का खुलासा करना भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। यह पहल भी काफी महत्त्वपूर्ण है।

political-purify-needed
 लोकतंत्र की मजबूती एवं राजनीतिक शुद्धिकरण की दिशा में जब-जब प्रयास हुआ है, जनता ने अपना पूरा समर्थन दिया, सहयोग किया है। पूरा देश इसका गवाह है कि दो-ढाई साल पहले इस देश में प्रभावी लोकपाल बिल की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन चला, जिसमें अण्णा हजारे, स्वामी रामदेव, संतोष हेगड़े, अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण से लेकर किरण बेदी जैसे चेहरे शामिल हुए। इस कानून की मांग ने इसलिए जोर पकड़ा ताकि जनसेवकों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। देश विदेश की अनेक संस्थाएं यह कह चुकी हैं कि भारत दुनिया के ऐसे देशों में शुमार है, जहां बिना लिए-दिए कुछ नहीं होता। जनप्रतिनिधियों की संपत्ति कई सौ गुणा बढ़ रही है। भले ही एक सार्थक शुरुआत का परिणाम सिफर रहा है, वातावरण में भ्रष्टाचार, कालेधन एवं राजनीतिक अपराधीकरण के विरूद्ध नारे उछालने वाले ही धीरे-धीरे उनमें लिप्त पाये गये हो। 

समय की दीर्घा जुल्मों को नये पंख देती है। यही कारण है कि राजनीति का अपराधीकरण और इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार लोकतंत्र को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। एक आम आदमी यदि चाहे कि वह चुनाव लड़कर संसद अथवा विधानसभा में पहुंचकर देश की ईमानदारी से सेवा करे तो यह आज की तारीख में संभव ही नहीं है। सम्पूर्ण तालाब में जहर घुला है, यही कारण है कि कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है, जिसके टिकट पर कोई दागी चुनाव नहीं लड़ रहा हो। यह अपने आप में आश्चर्य का विषय है कि किसी भी राजनीतिक दल का कोई नेता अपने भाषणों में इस पर विचार तक जाहिर करना मुनासिब नहीं समझता। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पांच सौ और एक हजार रुपए के बड़े नोट बन्द करने का ऐलान किया था जिसका सम्बन्ध देश में फैले भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक अपराधीकरण से है। यह फैसला इसी वजह से साहसिक और ऐतिहासिक था क्योंकि इसके माध्यम से श्री मोदी ने सीधे राजनीति के क्षेत्र में व्याप्त आर्थिक अनियमितताओं पर प्रहार किया और यही प्रभावी कदम राजनीति के पवित्र एवं पारदर्शी बनाने की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा।

प्रधानमन्त्री ने अपनी पार्टी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साफ कह दिया है कि राजनीतिक दलों को अपने चन्दे का पूरा हिसाब-किताब आम जनता को देना ही होगा। विपक्षी दलों में काफी सयाने लोग हैं। उन्हें नोटबन्दी के फैसले से खुद के ‘झुलसने’ की आशंका पैदा हो गई थी। इसीलिए तो बार-बार कभी चिदम्बरम से लेकर केजरीवाल और राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक शोर मचा रहे थे कि क्यों अचानक नोटबन्दी कर दी गई? बताओ कालाधन कहां है और कितना है? जरा कोई जवाब तो दे कि चुनावों में जो बेहिसाब धन बहाया जाता है उसमें कितना सफेद होता है? जब कालेधन के बूते पर जीतकर लोग संसद और विधानसभा में पहुंचेंगे तो क्या वे इसे रोकने के लिए कारगर कदम उठायेंगे? जाहिर है कि श्री मोदी का लक्ष्य राजनीतिक दलों के ‘शुद्धिकरण’ का भी है और इसमें उनकी अपनी पार्टी भी शामिल है। ऐसा फैसला तो कोई निस्वार्थी और साहसी राजनीतिज्ञ ही कर सकता है। चुनाव आयोग ने आय के स्रोत को जानना जरूरी माना है और इसे कानूनी बनाने का सुझाव दिया है। अगर आय का स्रोत पता न हो, तो जुटाई गई संपत्ति की पारदर्शिता के बारे में अनुमान लगाना कठिन होता है। फिर कई राजनीतिक अपने कारोबार परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से चलाते हैं। इसलिए आयोग ने अगर यह सुझाव मान लिया जाए तो पार्टियों पर उम्मीदवार चुनते समय ईमानदारी को प्रमुखता देने का दबाव बढ़ेगा। ऐसा नियम बने और लागू हो तो वह भी आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को चुनावी मैदान से बाहर करने में मददगार होगा। 

सर्वोच्च अदालत ने दागियों को विधायिका से बाहर रखने के तकाजे से जो पहल की है उसका लाभ पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तो नहीं मिल पाएगा, पर उम्मीद की जा सकती है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले जरूर कुछ ऐसी वैधानिक व्यवस्था बन पाएगी जिससे आपराधिक तत्त्व उम्मीदवार न हो सकें। एक समय था जब ऐसे किसी नियम-कानून की जरूरत महसूस नहीं की जाती थी, क्योंकि तब देश-सेवा और समाज-सेवा की भावना वाले लोग ही राजनीति में आते थे। पर अब हालत यह है कि हर चुनाव के साथ विधायिका में ऐसे लोगों की तादाद और बढ़ी हुई दिखती है जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हों। हमारे लोकतंत्र के लिए इससे अधिक शोचनीय बात और क्या हो सकती है! हर बार सभी राजनीति दल अपराधी तत्वों को टिकट न देने पर सैद्धान्तिक रूप में सहमति जताते है, पर टिकट देने के समय उनकी सारी दलीलें एवं आदर्श की बातें काफूर हो जाती है। एक-दूसरे के पैरों के नीचे से फट्टा खींचने का अभिनय तो सब करते हैं पर खींचता कोई भी नहीं। कोई भी जन-अदालत में जाने एवं जीत को सुनिश्चित करने के लिये जायज-नाजायज सभी तरीकें प्रयोग में लेने से नहीं हिचकता। रणनीति में सभी अपने को चाणक्य बताने का प्रयास करते हैं पर चन्द्रगुप्त किसी के पास नहीं है, आस-पास दिखाई नहीं देता। घोटालों और भ्रष्टाचार के लिए हल्ला उनके लिए राजनैतिक मुद्दा होता है, कोई नैतिक आग्रह नहीं। कारण अपने गिरेबार मंे तो सभी झांकते हैं।

गांधीजी ने एक मुट्टी नमक उठाया था, तब उसका वजन कुछ तोले ही नहीं था। उसने राष्ट्र के नमक को जगा दिया था। सुभाष ने जब दिल्ली चलो का घोष किया तो लाखों-करोड़ों पांवों में शक्ति का संचालन हो गया। नेहरू ने जब सतलज के किनारे सम्पूर्ण आजादी की मांग की तो सारी नदियों के किनारों पर इस घोष की प्रतिध्वनि सुनाई दी थी। पटेल ने जब रियासतों के एकीकरण के दृढ़ संकल्प की हुंकार भरी तो राजाओं के वे हाथ जो तलवार पकड़े रहते थे, हस्ताक्षरों के लिए कलम पर आ गये। आज वह तेज व आचरण नेतृत्व में लुप्त हो गया। आचरणहीनता कांच की तरह टूटती नहीं, उसे लोहे की तरह गलाना पड़ता है। विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान् नहीं। महान् उस दिन बनेंगे जिस दिन हमारी नैतिकता एवं चरित्र की शिलाएं गलना बन्द हो जायेगी और उसी दिन लोकतंत्र को शुद्ध सांसें मिलेंगी। 


liveaaryaavart dot com

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486 मोबाईल: 9811051133

कोई टिप्पणी नहीं: