हर घर नल का जल योजना के लिए ढ़ांचा विकसित नहीं कर पायी सरकार : सीएजी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 मार्च 2017

हर घर नल का जल योजना के लिए ढ़ांचा विकसित नहीं कर पायी सरकार : सीएजी

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पटना 27 मार्च, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चय के तहत पांच साल में ..हर घर नल का जल.. पहुंचाने की प्रतिबद्धता से संबंधित योजना के लिए ढ़ांचा विकसित नहीं किये जाने पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इसके कारण ही एक वर्ष के बाद भी यह योजना शुरू नहीं हुई है ।  बिहार के महालेखाकार (लेखापरीक्षक) धर्मेन्द्र कुमार ने विधानमंडल में आज भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का 31 मार्च 2016 को समाप्त हुए वर्ष का राज्य का वित्त ,राजस्व प्रक्षेत्र ,सामान्य, सामाजिक एवं आर्थिक प्रक्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पर प्रतिवेदन वित्तमंत्री अब्दुलबारी सिद्दिकी द्वारा पेश किये जाने के बाद संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मुख्यमंत्री के सात निश्चय के तहत पांच साल में ..हर घर नल का जल.. पहुंचाने की प्रतिबद्धता के लिए लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की ओर से ग्रामीण बसावटों में पाइप से जलापूर्ति योजना का ढ़ांचा नहीं विकसित किया गया । इसके कारण एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इस योजना के तहत कार्य प्रारंभ नहीं हो सका है । श्री कुमार ने कहा कि बिहार सरकार की ओर से प्रतिबद्ध समय के भीतर ग्रामीण क्षेत्र में पानी की जलापूर्ति के लिए हैंड पम्प (चापाकल) पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के लक्ष्य के साथ ही सरकार के सात निश्चयों की प्राप्ति के लिए कड़े कदम उठाये जाने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि मार्च 2016 तक बिहार में केवल छह प्रतिशत आबादी ही पाइप जलापूर्ति योजना से आच्छादित थी जबकि राष्ट्रीय औसत 41 प्रतिशत था । 
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श्री कुमार ने कहा कि आर्सेनिक ,फ्लोराइड एवं लौह संदूषण से प्रभावित जनसंख्या को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने में सरकार विफल रही है । उन्होंने कहा कि 609 करोड़ रूपये खर्च किये जाने के बावजूद 4.67 लाख आर्सेनिक , 16.51 लाख फ्लोराइड एवं 79.06 लाख लौह प्रभावित जनसंख्या सुरक्षित पेयजल से वंचित रही । महालेखाकार ने कहा कि मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के लेखापरीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2012-13 के बाद इस योजना में पात्र नये गांवों को स्वीकृत नहीं किया गया था । उन्होंने कहा कि संवेदकों द्वारा कार्यों को छोड़ देने एवं सड़क कार्यों की अपूर्णता के कारण वर्ष 2011-16 के दौरान 1398.16 करोड़ रूपये खर्च किये जाने के बावजूद पहले से चयनित 183 पात्र गांवों को मार्च 2016 तक सड़कों से संपर्क नहीं किया जा सका । श्री कुमार ने कहा कि निधि की उपलब्धता के बावजूद 2014-15 तक निर्मित सड़कों में अनुरक्षण का कार्य 78 प्रतिशत नहीं किया गया था । मधेपुरा जिला में पुरानी डुमरैल चौक से मकदमपुर तक वर्ष 2008-09 में निर्मित सड़क का अनुरक्षण 2013-14 तक करना था जो नहीं हो पाया । उन्होंने कहा कि इसी तरह रोहतास जिले के चंडी में गोरारी- निरंजनपुर सड़क के पास पुल से किराहीन तक नवम्बर 2012 में कार्य पूर्ण किया गया था लेकिन नवम्बर 2017 तक अनुरक्षण नहीं किया जा सका । इन दोनों सड़कों को क्षतिग्रस्त अवस्था में पाया गया । 
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महालेखाकार ने कहा कि मध्याह्न भोजन योजना के संचालन के लेखा परीक्षण से यह पता चलता है कि बिहार में वर्ष 2011-16 के दौरान 77 प्रतिशत इस योजना के लिये आवंटित राशि का उपयोग नहीं किया जा सका । उन्होंने कहा कि योजना के तहत कम बच्चों के नामांकन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जिससे 33 से 57 प्रतिशत नामांकित बच्चे मध्याह्न भोजन योजना से वंचित रह गये थे । श्री कुमार ने कहा कि कई मामलों में आवंटित खाद्यान्न का उठाव जिला स्तर पर राज्य से नहीं किया गया था । इसके कारण नमूने के तौर पर जांच किये गये विद्यालयों में मध्याह्न भोजन को अनिवार्य दिनों की अपेक्षा कम दिनों तक वितरित किया गया था । उन्होंने कहा कि उचित रसोईघर या शेड के अभाव में मध्याह्न भोजन ,विद्यालयों के वर्ग कक्षों एवं गलियारों में तैयार किये जाते थे । महालेखाकार ने कहा कि बच्चों को वितरित किये जाने वाले भोजन की गुणवत्ता सुनिचित करने के लिए राज्य में खाद्यान्न की जांच के लिए कोई संस्थान उपलब्ध नहीं था । उन्होंने कहा कि जांच के दौरान यह बात सामने आयी कि औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा स्थित सिमरा मध्य विद्यालय में सीढ़ियों के नीचे भोजन तैयार किया जा रहा था । 

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