मिथिला की संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिए 'चलू सौराठ सभा अभियान' - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 30 मई 2017

मिथिला की संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिए 'चलू सौराठ सभा अभियान'

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'मिथिलालोक फाउंडेशन' मिथिलांचल की संस्कृति व वैभव के संरक्षण एवं विकास के लिए हमेशा से प्रयासरत रहा है। अपने 'पाग बचाओ अभियान' की सफलता की तरह फाउंडेशन ने इस बार 'चलू सौराठ सभा अभियान' की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य सौराठ सभा के माध्यम से मिथिलावासियों को न केवल अपनी जड़ों से जोड़ना है बल्कि मिथिला में प्रचलित विचार-विमर्श की प्राचीन परम्परा को भी पुनर्जीवित करना है। इस अभियान के जरिए मिथिला में विवाह की प्राचीन के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा-परिचर्चा करना भी है। उल्लेखनीय है कि विश्व का यह प्रथम और प्रसिद्ध स्थल है. जहां सदियों से दूल्हे का मेला लगता है. सभा गाछी  में वर पक्ष के लोग दूल्हे को शादी के लिए यहां पूरी तैयारी के साथ लेकर आते है. दूल्हे सजधज कर तैयार अपने वासा पर बुजुर्ग परिजनों के साथ बैठे  रहते है जहां कन्या पक्ष के लोग आकर अपने अनुकूल वर की तलाश करते है और लंबी पूछताछ के बाद संतुष्ट होने पर ही लेन-देन की बात होती है फिर यहीं से वर  का हाथ उठाकर कन्या वाले बरात के साथ अपने घर ले जाते है. और वर कन्या की  शादी होती है.


सौराठ सभा का उद्देश्य वैवाहिक संबंधों के समुचित समाधान हेतू विवाह-योग्य वर-वधू को मिलाना, संबंधों की सामाजिक शुचिता को बनाए रखने के लिए समगोत्री विवाह को रोकना, दहेज़-प्रथा का उन्मूलन तथा वर-वधू के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए वैवाहिक सबंधों को आसान बनाना और उसे स्वीकृति देना रहा है। इस परंपरा का सकारात्मक पक्ष यह है कि मिथिला में विवाह संस्था हमेशा से ही मज़बूत स्थिति में रही है और जिसके फलस्वरूप यहाँ सामाजिक सबंधों में प्रगाढ़ता बनी रही। सौराठ सभा में विवाह की यह प्रक्रिया लगभग 700 वर्ष पुरानी है। लेकिन दुर्भाग्यवश, पिछले कुछ वर्षों से इस सभा का अस्तित्व खतरे में है क्योंकि अब मिथिलांचलवासी ही इसके प्रति लगभग उदासीन से हो गए हैं। प्रशासनिक उदासीनता के कारण यहां की अधिकांश भूमि अब अतिक्रमण का शिकार है. जहाँ कभी सौराठ सभा में लाखों की भीड़ जुट जाती थी वहीँ पिछले कई दशक से यहां जुटने वाली भीड़ के लिए सुविधाओं की समुचित व्यवस्था न होने के कारण लोगों ने बहुत हद तक यहां आने से मुंहफेर लिया है। अब यहां मेले की बस औपचारिकता ही रह गई है। हालांकि कई सामाजिक संस्थाएं सौराठ सभा की गरिमा को फिर से वापस लौटाने को लेकर प्रयास भी कर रही हैं और इसी का परिणाम है कि हर साल लोग जुटे या ना जुटें लेकिन मेले का आयोजन जरूर किया जाता है।  

डाॅ. झा ने मिथिला की सांस्कृतिक एवं सामाजिक संरचना में इस वैवाहिक संस्था की भूमिका व महत्व को स्वीकारते हुए इसके पुनर्निर्माण पर जोर देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि इसे एक सामाजिक आंदोलन की तरह आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि न केवल प्राचीन परम्परा को बचाया जा सके बल्कि वर्तमान पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराते हुए आधुनिक युग में विवाह से संबंधित समस्याओं से भी निजात पायी जा सके।  इस अभियान के कुछ मुख्य मुद्दे हैं जिस से मिथिला के डीह सौराठ का उन्नयन और सांस्कृतिक हब बनने के लिए आधारभूत संरचना स्थापित हो सकती है, डॉ झा के अनुसार सौराठ सभा को वर्तमान की अपेक्षाओं के अनुरूप पुनर्जीवित करना, सौराठ में एक कला केंद्र की स्थापना, सौराठ में एक बहु-उद्देशीय सामुदायिक भवन का निर्माण,  सौराठ सभा को एक संस्कृति एवं विरासत स्थल के रूप में विकसित करना, सौराठ सभा में सपन्न होने वाले विवाहों का डिजिटीकरण व वंशावली अभिलेख तैयार करना, दहेज़मुक्त विवाह के प्रति जागरूकता व समर्थन देना,  सौराठ सभा के क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना, सौराठ सभा को एक बौद्धिक विमर्श के केंद्र के रूप में विकसित करना, मिथिलांचल से मिथिलावासियों के पलायन को रोकना इस अभियान का मुख्य उदेश्य है!


डाॅ. झा ने मिथिला-मैथिल के उत्थान हेतू ‘‘चलू सौराठ सभा’’ को सफल बनाने एवं अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने के लिए विविध प्रकार की योजनाओं पर कार्य करने पर भी जोर दिया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसमें सरकार और मिथिलावासी दोनों की सक्रियता जरुरी है तभी हम इसे जीवित रख सकते हैं। इसके प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से ही उन्होंने 25 जून को ‘चलू सौराठ सभा’’ नामक अभियान में सभी मिथिलावासियों से शामिल होने की अपील की है. चलू सौराठ सभा अभियान के सफलता हेतु आयोजित प्रेस कांफ्रेंस मे डॉ बीरबल झा सहित श्री ज्योति रमा झा बाबा ,श्री प्रफुल्ल चंद्र झा, श्री मनोज मिश्र, सुशील कुमार झा चुन्नू और आशीष कुमार मिश्र "गोरे" भी उपस्थित थे 

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