बेगूसराय : "राम" को ज़मीन का क्या काम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 30 मई 2017

बेगूसराय : "राम" को ज़मीन का क्या काम

land-and-poor
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय। अक्सर आप अखबारों में पढ़ते होंगे कि भूमि विवाद में भाई ने भाई को मौत के घाट उतारा,चाचा ने भतीजे की हत्या की,भू माफियाओं ने नर संघार किया.....वैगेरह।अगर आपको सस्ती लोक प्रियता हासिल करते हुए नेता बनना हो तो किसी ज़मीनी विवाद में टांग अड़ा दीजिये हो गए रातों रात नेता।देश में ज़मीनी विवादों को लेकर अक्सर आपको धरना प्रदर्शन बड़े पैमाने पर,दूरदर्शन पर देखने या अख़बारों में पढ़ने को मिलता होगा एक से एक दिल को छू लेने वाले श्लोगणों के साथ।कहीं सरकार विकास के नाम पर तो कहीं भूमाफियाओं के ख़ौफ़ से किसानों की ज़मीन उनके इच्छा के विरुद्ध छीनी जाती रही है और रोज़ एक नये विवाद को जन्म दिया जा रहा है।इसमें क़ानूनी प्रक्रिया क्या है या कानून किस हद तक विवादों के निपटारे में  असर कारक है ये विवादित शोध का विषय है, खैर।आपको 06 दिसंबर 1992 तो अवश्य याद होगा जब राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद को भाजपाइयों और विश्व हिंदू परिषद,महासभा के द्वारा तोड़ राम जन्म भूमि के रूप में स्थापित करने के लिए इस को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाकर देश में उछाल गया और समय दर समय उस पर गहरी राजनीति होती रही है।अतीत के पन्नों पर कट्टर पंथी धार्मिक आंदोलन में मारे गए बेकसूर के रक्त से वर्तमान के सीने पर अंकित "राम जन्म भूमि विवाद" शब्द को 25 वर्षों में वक़्त भी नहीं मिटा सका,यही है धार्मिक उन्माद की पराकाष्ठा।आज पूरे विश्व में आतंकवाद की जड़े भी इतनी मज़बूत इसीलिए है कि मरने-मारने वाले आतंकवादी भी उसी धार्मिक उन्माद के ज़हर को पी कर दीवानगी से मौत को गले लगाता है।आपको एक बात यहां स्पष्ट करना ज़रूरी समझता हूँ कि राम जन्मभूमि विवाद के ऊपर धर्म की आड़ में हो रहे घटिया राजनीति का ये खेल बंद इसीलिए होना चाहिये क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने इस तरह के काम को धर्म के नाम पर मरने-मारने वालों को नीति निषेध माना है।उन्होंने अधर्म के विरुद्ध युद्ध किया था, मानव धर्म को स्थापित करने के लिए युद्ध किया था,मानवजाति के अस्तित्व की रक्षा हेतु अस्त्र या शस्त्र उठाये थे,उन्होंने किसी की हत्या नहीं बल्कि वध किया था।उनकी बातों का गर अनुसरण कर लिया जाय तो शायद ऐसे धार्मिक विवाद जन्म ही ना लें।धर्ममान्धता की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि वो सिर्फ़ हमेशा अपने ही हित और हक़ में सोचती हुई कार्य करती है।सच जानिये तो धर्मान्धता निष्ठुर और निर्दयी ही होती है।ये विवादित ज़मीन का व्यूह रचना एक बहुत ही घटिया राजनीति की उपज है क्यूंकि "राम यानि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को ज़मीन का क्या काम है" जो आज उनके तथाकथित "एजेंट" उनके हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं।जिन्हें ज़मीन का सही मायने में काम है उनकी ज़मीन तो विभिन्न हथकंडे अपना कर हड़पे जा रहे हैं,रोज़ लोग कोर्ट-कचहरी,और थाने के चक्कर काट काट कर देश की व्यवस्था को कोसते रहते हैं,अनगिनत हत्याएं हो रही हैं।जिनका जीवन है ज़मीन उनके लिए तो आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं और जिन्हें ज़मीन की कोई ज़रूरत नहीं है उनके लिए आज आप धर्मयुद्ध कर मरने-मारने को तैयार हैं।क्या यही है अपने देश की शासकीय व्यवस्था?यह एक बड़ा सवाल खड़ा करेगा आने वाला वक़्त में क्योंकि देश की मानसिकता को देखकर ये सहज ही महसूस किया जा सकता है।आज अगर उस विवादित ज़मीन पर किसी अच्छे शिक्षण संस्थान का निर्माण कर दिया जाय तो उसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों के बच्चे पढ़ेंगें एवं राम जन्मभूमि,बाबरी मस्जिद को चाहने वाले कोई शायद इसका विरोध नहीं कर सकेगा।इतना ही नहीं देश के ऐसे हर विवादित मंदिर-मस्जिद को तोड़ कर कोई अच्छी तकनीकि,गैर तकनीकि शिक्षण संस्थान खुलवा देना चाहिये सरकार को,यही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की होगी सच्ची भक्ति।लेकिन जनाब ये "धर्म" की जड़ है।

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