फादर्स डे: पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है.. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 18 जून 2017

फादर्स डे: पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है..

कभी नरम तो कभी गरम अंदाज में बच्चों को अनुशासन व व्यावहारिकता का पाठ पढ़ाने वाले पापा ही नई पीढ़ी के सपनों को पंख फैलाने का आसमान देते हैं। इसी खुले आकाश में आज बेटे हो या बेटियां बेहिचक उड़ान भर रहे हैं। इस बदलाव के दौर में पापा एक मजबूत ढाल बन रहे हैं। जी हां, पिता हम सभी को काबिल बनाते हैं। जिंदगी की सही राह दिखाते हैं। हमें खुश रखने के लिए पिता हरेक उपाय करते हैं। बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता की बात हमें अच्छी नहीं लगती, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, हमें पिता की डांट का महत्व का पता चलता है। जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी में पिता की बातें काफी महत्व रखती है। मालूम पड़ता है पिता कितने साथ थे और हैं। एक शोध के मुताबिक मां बच्चों की पहली पाठशाला है, तो पिता पहला आदर्श। वे अपने पिता से ही सिखते हैं और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। मतलब साफ है एक पिता हजारों शिक्षकों से अधिक प्रभावशाली होता है। स्कूल और जिंदगी के ज्यादातर शिक्षक किताबी होते हैं। वे सिखाते तो हैं लेकिन उनका सीमित असर होता है। पिता अपने बच्चों के जेहन पर गहरी छाप छोड़ता है। खासकर बेटियों पर। माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम जून के तीसरे संडे जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। इस साल 18 जून 2017 में फादर्स-डे के 107 साल पूरे हो गए 





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बेशक, पिता मार्गदर्शक है, जो संतान को जीवनभर साये की तरह साथ रखकर सही राह दिखाता है। वह रक्षक-संरक्षक है, जो पल-पल बच्चों के लिए ढाल बनता है। पिता पोषक है, जो परिवार की रीढ़ बनकर जरुरतें पूरी करता है। वह प्रेरक है, जो हमेसा आगे बढ़ाता है। बच्चों का हर दुख वह अपने उपर ले लेता है और अपने हक का सुख बच्चों के नाम कर देता है। मां न हो तो मजबूती से वह दोहरी भूमिका भी निभाता है। खासकर बेटियों के लिए तो वह हीरो है। चाहे वह दशहरें के मौके पर अपने कंधों पर बैठाकर रावण दिखाने ले जाने का हो या अंगुली पकड़ कर मेला घुमाने का। अपने बच्चे को वो सारे लाड़-प्यार, वो गाड़ी पर घुमाना, खाने-पीने की चीजें दिलाकर लाना। बात-बात पर उन्हें टॉफ‍ी-आइस्क्रीम दिलाना, पान खिलाना और उनकी घर जरूरतों को समयानुसार पूरे करते रहना यह एक पिता के बिना कतई संभव नहीं है। या यू कहें हमारी वह हर जिद पूरा करते हैं। पिता अनुशासन प्रिय जरुर होते है, लेकिन ऐसा कभी महसूस नहीं होने देते कि वे बेवजह सख्ती कर रहे हों। वह हमेशा ईमानदार बने रहने की सींख देते है। क्योंकि पिता का अस्ति‍त्व मात्र ही संतान के लिए ब्रह्मांड से भी व्यापक है और सागर से भी गहरा। उनके अनकहे शब्द भी खुद में कई शब्दों को समेटे हैं और उनकी हर एक बात... में अनेक सबक हैं। उनकी परछाई में सुरक्षा की राहत है तो उनके कदमों में जन्नत के निशां...। वैसे भी हर पिता की यही इच्छा होती है कि उसकी संतान नित नई कामयाबी हासिल करती रहे। जीवन के अंतिम मुकाम तक फले-फूले। संतान के चेहरे पर खुशी के लिए पिता कोई कसर नहीं छोड़ता। कहा जा सकता है पिता मात्र एक संबोधन नहीं है, बल्कि पुरुष‘ के कोमल स्वरूप की वो अभिव्यक्ति है जहां चाहे वह बेटा हो या बेटी, दोनो पुष्पित और पल्लवित होती है...। पिता हमेशा उस कुम्हार की तरह होता है, जो ऊपर से आपको आकार देता है और पीछे से हाथ लगाकर सुरक्षात्मक सहयोग। 

शरीर की रक्त धमनियां है पापा 
मां तो हर बच्चे के जीवन की एकमात्र धुरी है, उसका दिल अपने बच्चे के लिए धड़कता है लेकिन दिल भी तो बिना रक्त प्रवाह के काम नहीं कर सकता न? तो उसी दिल को रक्त पहुंचाती है पिता रुपी रक्त धमनी। पिता हमारे जीवन का वो महान शख्स है जो सपने पूरे करने की कोशिश और फिक्र में अपने खुद के सपनों की जमीन बंजर ही छोड़ देता है। पिता के होने से ही बच्चों के सभी ख्वाब और ख्वाहिशंे पूरी होती हैं। पिता प्यार कभी भी हम खुलकर देख नहीं पाते हैं लेकिन अपने बच्चे के जीवन में आई एक हल्की परेशानी पर न जाने कितनी गहरे सिलवटें उभर आती है। जो आंखे कभी आंसू नहीं बहाती उसका दिल जार-जार रोता है, पिता की नमी उसकी आंखों में नहीं दिल में होती है। बेटी की जिंदगी में पहला हीरो उसके पिता ही होते हैं। जिनकी उंगली पकड़कर वो दुनियावी रस्मो-रिवाज सिखती है। पिता पुत्री का रिश्ता दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता होता है।। जब एक पति पिता बनता है तब वह एक आपादमस्तक परिवर्तन से गुजरता है। जीवन के कठोर धरातल पर संतान रुपी फूल खिलते ही पिता का रोल एक माली के जैसा हो जाता है, जो अपने बच्चे की जिंदगी को पालता-पोषता है। एक संरक्षक बनकर उसे दुनिया की भूखी नजरों से बचाता है। जब बेटा बड़ा होता है पिता ही उसके रोल माॅडल होते है। भविष्य में वो खुद को अपने पिता के जैसा ही बनाना चाहता है। साइकालजी आफ फ्रायड के अनुसार बेटी के जीवन में पहला पुरुष उसका पिता होता है और वहीं से उसका अवचेतन मन एक धारणा और काल्पनिक चरित्र बना लेता है, जो हूबहू उसके पिता जैसा ही होता है। यह धारणा व काल्पनिक चरित्र किसी भी स्त्री के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि पिता के बाद हर रिश्ते में वह यही खोजती है। शादी के बाद वही स्त्री अपने पति में भी अपने पिता को ढूंढ़ती है। फिर पति का व्यक्तित्व जितना अधिक पिता से मिलता है उतना ही अधिक उसका अवचेतन मन संतुष्ट रहता है।


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संतान के लिए वरदान है पिता 
पिता का हमारे जीवन में एक कैटेलिस्ट सा ही रोल होता है न? वो खुद हमेसा नेपत्थ्य में रहते हैं, लेकिन अपने संतानों की भलाई और तरक्की के लिए बिना कोई दिखावा करें अपना पूरा जीवन होम कर देते हैं। कहते हैं न कि एक पिता की अहमियत बच्चों के जीवन में सांसों की रवानगी की मानिंद होती है। सांस लेना एक आदत है लेकिन जैसे इस आदत में हल्का सा भी परिवर्तन आएं तो जान पर बन आती हैं। ऐसे ही पिता का होना संतान के जीवन में किसी वरदान से कम है क्या? संतान के जीवन में जितनी जरुरत मां की होती है उतनी ही जरुरत पिता की भी, मां अपने बच्चों में परिवार की सुरक्षित चाहरदीवारी के भीतर संस्कार और दायित्वों का पौधा पल्लवित करती हैं वहीं पिता अपने बच्चों को बाहरी दुनिया में कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए प्रैक्टिकली तैयार करता है। जिस तरह सागर की अपार गहराई में जहाज और नावों को सही रास्ता दिखाने में एक लाइट हास का काम बेहद जरुरी है उसी तरह पिता अपने बच्चों की जिंदगी के गहरे समुन्दर को पार कराने में एक लाइट हाउस ही काम होता है।  

पिता बगैर सपना अधूरा
कहते हैं कि मां दुनिया की अनोखी और अद्भुत देन हैं। वह अपने बच्चे को नौ महिने तक अपनी कोख में पाल-पोस कर उसे जन्म देने का नायाब काम करती है। अपना दूध पिलाकर उस नींव को सींचती और संवारती है। जैसा कि मां का स्थान दुनिया सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे भी पिता का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। भले ही पिता एक मां क‍ी तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाएं। अपना दूध न पिला पाएं, लेकिन सच तो यह है कि एक बच्चे के जीवन में अपने पिता का बहुत बड़ा और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान होता है। जिस घर में पिता नहीं है। उन घरों की हालत दुनिया वाले बदतर से भी बदतर कर देते हैं। पिता न होने का खामियाजा घर की औरत साथ-साथ उसके बच्चों की जीवन भर भुगतना पड़ता है। उसके माता-पिता द्वारा किए गए अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब बच्चों को पूरी तरह चुकाना पड़ता है। बच्चों की देखरेख करने के लिए अगर ‍पिता नहीं है तो उन मासूम बच्चों के सारे लाड़-प्यार, दुलार, पिता क‍ी छांव सबकुछ अधूरा रह जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी के घर में मां नहीं है तो बच्चों की देखरेख ठीक से नहीं हो पाती। ठीक उसी तरह पिता के न होने पर भी बच्चों का वहीं हाल होता है। बच्चों को हर उस जरूरत के लिए तरसना पड़ता है, जिसके वे हकदार होते है। कम उम्र में ही बच्चों को काम में हाथ बंटाना पड़ता है। ना चाहते हुए भी नौकरी करनी पड़ती है। ना चाहते हुए भी अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर काम-धंधे की और कमाई की फिक्र करते हुए इन्कम के नित नए-नए रास्ते खोजना पड़ते है ताकि वो घर का खर्चा बंटाने में मां की मदद कर सकें। वो अपना सारा आराम छोड़कर मां की तरह ‍इस चिंता में घुलते रहते है कि किसतरह अच्छी नौकरी, अच्छा व्यवसाय जमा कर अपने घर को संभाला जाए। अगर घर में पिता होते है तो इन सारी जिम्मेदारियों से बच्चों को काफी हद तक मुक्ति मिल जाती है। फिर उन पर किसी तरह का कोई एक्स्‍ट्रा बर्डन नहीं रहता। वो अपनी मर्जी से घूम-फिर सकते हैं। अपने दोस्तों के साथ पार्टियों में शामिल हो सकते हैं और सारी दुनिया की फिक्र छोड़कर पिता के गोद में सिर रखकर आराम से सो सकते हैं।   यह सब एक मां के राज में संभव नहीं हो पाता। बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक सभी को पिता के साथ की जरूर‍‍त होती है। बच्चों के मन में पिता न होने का भय हर समय सताता रहता है। लेकिन क्या करें भगवान के इस फैसले के आगे सभी नतमस्तक होते हैं। उनके फैसले के आगे किसी की नहीं चलती। इसलिए वो मासूम बच्चे पिता की छत्र छाया से वं‍चित होकर मायूसीभरा जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं। हमारे आस-पास भी कई ऐसे परिवार मौजूद हैं, जो इन परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं और हम उनके लिए कुछ नहीं कर पाते। अगर घर में पिता नहीं है तो परिवार वाले, रिश्ते-नातेदार सभी मुंह मोड़ लेते हैं या फिरशर्तों की नोंक पर उन्हें जीवनयापन के लिए मजूबर करते हैं। ऐसे दुख और मायूसीभरा जीवन ईश्वर किसी को भी न दें। संसार के सभी लोगों को माता-पिता का भरपूर प्यार मिलें, ताकि किसी भी बच्चे के मन में उसके पितान होने की मजबूरी न हो और वे अपना जीवन पिता के हरेभरे पेड़ की छांव में सुचारू रूप से अपना जीवन जी पाएं और हर पर खुश रहकर दूसरों को भी खुशियां बांट सकें। 

हर रोज मनाएं फादर्स डे 
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हम सभी सिर्फ एक दिन ‘फादर्स डे‘ मना कर इस दिन से इतिश्री नहीं कर सकते। माता-पिता ही दुनिया की सबसे गहरी छाया होते हैं, जिनके सहारे जीवन जीने का सौभाग्य हर किसी के बस में नहीं होता। इसलिए हम अपनेमाता-पिता का आशीर्वाद लेकर सिर्फ एक दिन ही उन्हें याद ना करते हुए प्रतिदिन उन्हें नमन कर अपना जीवन सार्थक बनाएं क्योंकि माता और पिता दोनों की सहायता से ही जीवन की नैय्या चलती है। अकेले से नह‍ीं...!   

दोस्त भी है पिता 
पिता, यानी वह व्यक्ति जिसने कभी अंगुली थामकर चलना सीखाया। कभी मुश्किल वक्त खुद की सभी परेशानियां भूलकर साथ खड़े नजर आए। जब एक अच्छे दोस्त की जरूरत लगी तो भी वह पास ही खड़े मिले। हर किसी के जुबान पर सिर्फ एक ही शब्द उनके पापा जैसा कोई नहींकृ। पापा कहते हैं कि व्यक्ति की पहचान उसके व्यक्तित्व से होती है। दूसरे के प्रति सरल स्वभाव और मृदुल होने से ही कोई दूसरों पर अपनी छाप छोड़ जाता है। उनकी इस सीख से नए दोस्त बनाता चल रहा हूं। उनके हर खुशी का ख्याल पापा रखते हैं। परिस्थिति चाहे जैसी भी हो बच्चों के प्रति पापा का प्यार मिलता है। यकीनन बचपन तो पापा से ही समृद्ध होता है। 

अलग होते हैं बेटियों के पिता
बदले दौर के साथ पिता और बेटी का संबंध ज्यादा मुखर हुआ है। परिवार एकाकी हुए हैं और ‘बेटियों‘ को ‘पापा‘ मित्र के रूप में मिले हैं। आज के पिता खुलकर अपने बच्चों के साथ खेलते हैं, उन्हें पढ़ाते हैं और खुद बनाकर खिलाने में भी कोई गुरेज नहीं करते। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ‘पापा और बेटी‘ की घनिष्ठता मानसिक तौर पर बेटी को मजबूत और स्वस्थ बनाती है। चाहे बच्ची के साथ एक्सलेटर पर उलटा चलना हो या वीडियो गेम्स की माथापच्ची हो, बेटियों की ससुराल की कहानियां हों या कैरियरिस्ट बेटी की उपलब्धियां हों, पापा हर क्षण में शामिल होते हैं...। वाकई बेटियों के पिता ममत्व की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं, अपने संवेदनशील व्यावहारिक परिवर्तन से वह स्वयं भी अचंभित रह जाते हैं। सच है, बेटियां अपनी कोमलता और भावनात्मकता अपने पिता में रोपती हैं। धीर, गंभीर और कठोर से दिखने वाले पुरुष भी बेटियों की संगत में भावविह्वल हो ही जाते हैं। यानी एक पिता सिर्फ पिता की भूमिका में ही अपने सारे दायित्वों का निर्वहन कर सकता है। उसके लिए एक मां की भूमिका निभाना काफी कठिन है। दरअसल, पिता-बेटी का रिश्ता स्नेह की उत्कर्षता का पर्याय है, जहां पिता अप्रत्यक्ष तौर पर बेटी के मन में ‘पुरुष‘ का चरित्र गढ़ देता है। बेटी भी पिता द्वारा गढ़े और रचे रेखाचित्र को ही हर रिश्ते में पाना चाहती है। बस यही तो है पिता और बेटी का सर्वोच्च संबंध!

पुत्रों से पिता की उम्मींदे
भारत की संस्कृति में दो बातें मिलती हैं। पिता अपनी संतान के लिए कोई भी त्याग करने को तैयार रहते हैं। उसी तरह पुत्र भी पिता के आदेश का पालन करने से नहीं चूकते। बदली स्थिति में एक-दो पक्ष इसमें और जुड़े हैं। आज पिता चाहता है कि उसका पुत्र इस वैश्वीकरण के दौर में जहां तक पहुंच सके, पहुंचे। वहीं दूसरा पक्ष यह है कि इसमें गिरावट आई है। इसकी मुख्य वजह आदमी की आकांक्षाओं की उड़ान, आगे बढ़ने की चाह और एक-दूसरे का इस्तेमाल करना है। भले ही वह पिता ही क्यों न हों। 

फादर्स डे मनाने की अवधारणा 
किसी बच्चे के जीवन में उसके पिता की क्या भूमिका होती है शायद ये बताने के लिए एक दिन काफी नहीं है लेकिन पिता के महत्व को सम्मान देने और पिता के स्नेह और समर्पण को सम्मानित करने के लिए पूरी दुनिया में हर साल जून के तीसरी रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। वैसे तो फादर्स डे को की शुरूआत को लेकर कई कहानियां हैं लेकिन, सबसे प्रसिद्ध कहानी सोनारो की है, जो अमेरिका के वाशिंगटन शहर के स्पोकेन में रहा करती थी। कहा जाता है कि सोनारो और उसके भाई-बहनों को उसके पिता विलियम जैक्सन ने अकेले पाला था। साल 1909 के मई महीने में सोनोरो मदर्स डे के मौके पर एक चर्च में कार्यक्रम आयोजित किया गया था जहां मां के बारे में व्याख्यान दिए जा रहे थे तभी सोनारो के दिमाग में ख्याल आया कि जब मदर्स डे मनाया जा रहा है तो फादर्स डे क्यों नहीं? सोनारो अगले साल 5 जून को अपने पिता के जन्मदिन पर फादर्स डे मनाना चाहती थीं और उन्होंने एक पेटिशन भी डाला था कि राज्य में इस दिन को फादर्स डे घोषित करते हुए छुट्टी घोषित की जाए। सोनारो की अपील पर फादर्स डे घोषित करने की पूरी प्रक्रिया हुई और फिर आधिकारिक तौर पर 19 जून 1910 से फादर्स डे मनाया जाने लगा। 

बच्चों की सुरक्षा कवच है पापा 
ऋग्वेद में ‘पिता’ शब्द शिशु पालन कर्ता के रूप में माना गया है। पिता जीवन की बगिया के रखवाले हैं। उनकी छत्रछाया में ही पलकर पुत्र आसमां की बुलंदियों को छू पाते हैं। पिता डग भरना सिखाते हैं। जीवन के पथरीले रास्ते पर चलते हुए गिरने के बाद उठना और मंजिल पाने तक चलते रहने की सीख देते हैं। बुरे-भले की शिक्षा देने वाले पिता ही होते हैं। बचपन में सिखाए अनुशासन भले ही उस दौरान कड़वे लगते हो, लेकिन सफलता की सीढ़ी चढ़ने के साथ ही उसका बेहतर परिणाम देखने को मिलता है। अर्थात पिता न केवल अभिभावक की भूमिका निभाते हैं बल्कि एक दोस्त की तरह भी होते हैं, जो समय-समय पर बेटे या बेटियों को उनकी जरूरतों के मुताबिक कठिन डगर में राह दिखाने का काम करते हैं। कोई भी व्यक्ति पिता के ऋण से उऋण नहीं हो सकता। बच्चों की जिंदगी पर पापा का बहुत बड़ा कर्ज होता है। हम जिंदगी देकर भी उनका कर्ज नहीं चुका सकते। पापा ने अपनी उंगली पकड़ हमें चलना सिखाया। पहली बार जब हम बोले तो सबसे ज्यादा खुश पापा हुए। बीमार हम होते हैं परेशान पापा हो जाते हैं। जिंदगी के हर मोड़ पर हमें पापा की जरूरत है। उनके बिना एक कदम भी चलना मुश्किल है। मेरी खुशी में ही उनकी खुशी बसती है। पापा, वो अनमोल रिश्ता है, जिन्होंने औलाद की खुशी पर अपनी खुशी लुटा दी। खुद तकलीफों की आंधी झेली, मगर हम तक उसका एक झोंका तक नहीं पहुंचने दिया। हमारी जरूरत पूरी करने के लिए कभी चिलचिलाती धूप में जिस्म को झुलसाया तो शीतलहर और मूसलाधार बारिश झेली। अपनी जिंदगी को हमारी जरूरतों पर कुर्बान कर दिया। जिंदगी की जंग से जब उदास हुए तो आकर सिर पर हाथ रखकर कहा, मैं हूं ना..। पापा वो कवच हैं जो बच्चों को सुरक्षित करते हैं। हमारी हर जरूरतों को पूरा के लिए वे कई तकलीफ सहते हैं। पापा के रूप में भगवान ने हमें बहुत बड़ा तोहफा दिया है। हमारी हर छोटी, बड़ी जरूरत के लिए पापा पूरी कोशिश करते हैं। हमारी पूरी जिंदगी पर पापा का अहसान है। वो अगर नहीं होते तो हमारा वजूद नहीं होता। वो हमारे लिए पूजनीय है। अगर पिता के प्रेम को जानना चाहते हैं तो आप कितने भी बड़े क्यों न हो गए हों, एक बार अपने बचपन में लौट आइए और देखिए कि कैसे पिता ने आपको साइकल चलाना सिखाया था, कैसे आपके हर उस सवाल का उन्होंने बड़े ही रोचक ढंग से जवाब दिया था जिन्हें अब सुनकर आप शायद चिढ़ जाते हैं और उनकी बात का जवाब देना.जरूरी नहीं समझते। कैसे वे आपके सामने झुककर घोड़ा या हाथी बन जाया करते थे और आपकी मुस्कान से उनकी पीठ का वह दर्द भी गायब हो जाता था, जो आपके वजन के कारण हुआ था, कैसे आपकी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे अपनी जरूरतों से समझौता कर लिया करते थे, आपके होमवर्क और प्रोजेक्ट के लिए कैसे आपके साथ वे भी देर तक जागते और उसे पूरा करवाते थे, कैसे वे आपकी छोटी-सी सफलता को भी जहान की सबसे बड़ी खुशी के रूप में मनाते थे। कैसे वे आपको स्कूल छोड़ने और लेने जाया करते थे और रास्ते में आपकी हर फरमाइश पूरी हुआ करती थी। हर शाम ऑफिस से लौटते हुए कई बार, बिन मांगे ही वे आपकी पसंद की चीजें ले आया करते थे। उनके लि‍ए केवल आपकी खुशी अनमोल थी। अब जरा वापस लौटकर आइए इस दुनिया में और सोचिए कि पिता क्या है। सिर्फ एक पिता या आपको समझने वाला सच्चा दोस्त, आपका सहायक, पालक या फिर खुदा की नेमत। 

पिता नहीं तो अनाथ है बचपन 
मां से भावनाओं का जुड़ाव, तो पिता से समझ का। मां की ममता और करुणाशीलता तो जगजाहिर है, लेकिन कई बार पिता की अनकहे शब्द और जता न पाने की आदत उनके भावों... को ठीक तरह से अभिव्यक्त नहीं कर पाती और हम पिता को जरूरत से ज्यादा सख्त और भावनाविहीन मान बैठते हैं। लेकिन सच तो ये है कि एक मां बच्चे को जितना प्रेम करती है, उतनी ही चिंता पिता को भी होती है। बस फर्क इतना होता है कि मां के प्रेम का पलड़ा भारी होता है और पिता के सुरक्षात्मक रवैये का, जो कई बार बच्चों..को कठोर लगने लगता है। मां हमेशा दुलारती है और पिता हमेशा आपको बनाते हैं, आपके व्यक्तित्व को संवारते हैं। अर्थात पापा वो इंसान है जो कभी प्यार को दर्शाता नहीं है पर मां से भी बढ़कर अपने बच्चों को प्यार करते हैं। मां घर में रोटी बनाती है तो पिता कड़ी धूप में पैसा कमाता है। मां बच्चे को पढ़ाती है तो पिता बच्चे को शिक्षा देता है। एक पिता जितनी कुर्बानी देना आसान बात नहीं। फटे जूते पहन बच्चों को नए कपड़े दिलाता है पिता। लेकिन कभी अपना प्रेम नहीं दर्शाता है पिता। मां लाख बार बोले मेरा बेटा..मेरी बेटी, पर जीवन जीना पिता सिखाता है। पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है, पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है। पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है। पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है पर पिता पालन है, पोषण है, पारिवार का अनुशासन है। पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है। पिता अपदर्शित अनन्त प्यार है पिता है तो बच्चों को इंतजार है। पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं। पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं। पिता से परिवार में प्रतिपल राग है पिता से ही मां का बिंदी और सुहाग है। पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है। पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है। पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है। पिता रक्त में दिये हुए संस्कारों की मूर्ति है। पिता एक जीवन को जीवन का दान है। पिता दुनिया दिखाने का अहसान है। पिता सुरक्षा है, सिर पर हाथ है पिता नहीं तो बचपन अनाथ है। तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो पिता का अपमान नहीं, उन पर अभिमान करो क्योंकि मां­बाप की कमी कोई पाट नहीं सकता और ईश्वर भी इनके आशीशों को काट नहीं सकता। विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है मां­बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है। विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्राएं व्यर्थ हैं यदि बेटे के होते मां­बाप असमर्थ हैं वो खुशनसीब हैं मां­बाप जिनके साथ होते हैं। क्योंकि मा­बाप की आशीशों के हजारो हाथ होते है। 

पिता का ख्याल रखना हर संतान का है धर्म 
जमाना काफी तेजी से बदल रहा है। वर्तमान समय में माता-पिता की अहमियत हमारे जीवन से दूर होता जा रहा है। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल ओल्ड ऐज हाउस के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं। जो माता-पिता पूरी जिंदगी बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए समर्पित कर देते हैं। परंतु, बच्चों की उम्र के साथ उसी की एक झलक, उसका एक स्नेह पाने तक को तरस जाते हैं। हालांकि सभी के साथ ऐसा नहीं होता, मगर वृद्धों के साथ पुत्रों की बेरुखी की चर्चा हमेशा होते रहती है। पिता जो अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा करने के बजाए अपने बच्चों की बड़ी से बड़ी इच्छाओं को पूरा करने पर कुर्बान कर देता हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जो पिता अपने जीवन के अंतिम क्षण तक अपनी बच्चों की खुशहाली के प्रति सदैव चिंतित रहा हो उसके हर दुख-दर्द को दूर करना हरेक संतान का नैतिक धर्म है। लेकिन अफसोस है कि अपनी जीवन भर की कमाई बच्चों पर खर्च करने वाले पिता की उपेक्षा हो रही है, जो विकसित समाज के समक्ष गंभीर चिंता का विषय है। घर के अन्य सदस्यों को अन्यत्र रहने के कारण माता-पिता की देखभाल की समस्या बनी रहती है। हमें फादर्स डे पर अपने पिता के कष्टों को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। पिता के इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए। पिता की आज्ञा का पालन करना हम बच्चों का नैतिक जिम्मेवारी है। बच्चों को पिता की सेवा की कसौटी पर खरा उतरना होगा। पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमें हरदम सचेष्ट रहना चाहिए। इसका हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, कहीं पिता को उनसे कोई तकलीफ तो नहीं हैं। अर्थात पिता के अरमानों को पूरा करने के लिए किसी भी कष्ट को हंसते हुए झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। पिता की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं।  

अपना क्लोन न बनाएं
पिता को चाहिए कि वह बच्चों को अपना क्लोन न बनाएं। कुदरत के बेमिसाल क्रिएशन की पहचान पर अपनी मानसिकता थोपेंगे तो फिर उनकी खासियत को आप मिटा देंगे। उन्हें संस्कृति, सामाजिकता और नैतिकता का इल्म अवश्य दें लेकिन उनकी पहचान को मोड़ें-तोड़ें नहीं। क्योंकि आपके बच्चे तभी हीरे रह पाएंगे, जब आप अपनी धूल उन पर न लपेटें। खुले आसमान में उन्हें उड़ने दें। गिरने दें। गिरने की चोट और दर्द से वे सीखेंगे। दर्द तराशता है। उन्हें अपाहिज बना देंगे तो आप कब तक बैसाखी बने रहेंगे?






(सुरेश गांधी)

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