कुर्सी काबिज रहने के लिए इंदिरा ने लगाई थी एमरजेंसी-जेटली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 25 जून 2017

कुर्सी काबिज रहने के लिए इंदिरा ने लगाई थी एमरजेंसी-जेटली

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नयी दिल्ली 25 जून, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बयालीस साल पहले देश में आपातकाल लागू करने को लोकतांत्रिक संस्थानों पर प्रहार बताते हुए आज कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता पर काबिज रहने के लिए आपातकाल लगाया था। श्री जेटली ने अपने लेख ‘आपातकाल: बयालीस साल पहले ’ में लिखा है कि 25 जून 1975 की रात एमरजेंसी लगाने का कारण भले ही देश में कानून-व्यवस्था की खतरनाक स्थिति बताया गया था लेकिन इसका असली कारण यह था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर सशर्त स्थगनादेश लगाया था। श्रीमती गांधी किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने देश को आपातकाल में धकेल दिया। श्री जेटली ने उस समय आपातकाल का समर्थन करने वाले दलों और उनके नेताओं पर तंज कसते हुए कहा है कि अब यह रिवाज बन गया है कि कोई भी कह देता है कि ‘देश में अघोषित आपातकाल’ लागू है लेकिन इन लोगों और दलों को एमरजेंसी के दौरान अपनी भूमिका के बारे में आत्मचिंतन करना चाहिए। इन लोगों को अपने आप से सवाल करना चाहिए कि ‘ उन 19 महीनों के दौरान मैं कहां था और इस मुद्दे पर मेरा सार्वजनिक रुख क्या था।’ इनमें से ज्यादातर या तो एमरजेंसी का समर्थन कर रहे थे या उन्होंने किसी भी विरोध प्रदर्शन में शिरकत नहीं की। उन्होंने कहा कि एमरजेंसी के कारण न केवल सभी लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला किया गया बल्कि उससे एक व्यक्ति की तानाशाही स्थापित हो गयी थी और समाज में भय का माहौल बन गया था। एमरजेंसी लगाने के तुरंत बाद सबसे पहला काम राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने का किया गया । जिला मजिस्ट्रेटों और कलेक्टरों को खाली फॉर्म दिये गये थे जिससे वे हजारों की संख्या में नेताओं और कार्यकर्ताओं को बंदी बना सकें। किसी की गिरफ्तारी का कोई कारण नहीं बताया गया था और पुलिस स्टेशनों को सभी के विरुद्ध एक ही तरह की प्राथमिकी दर्ज करने की सलाह दी गयी थी। श्री जेटली ने कहा कि विपक्ष की सभी गतिविधियों को दबा दिया गया था और मीडिया में सरकारी प्रचार के अलावा कुछ प्रचारित नहीं किया जाता था। भारत के संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से संशोधित कर दिया गया था जिससे वे सभी आधार निरस्त हो जाएं, जिनके चलते श्रीमती गांधी के चुनाव को रद्द किया गया था। संसद के दोनों सदनों के ज्यादातर विपक्षी सदस्य जेलों में बंद थे। इससे बहुमत में आयी सरकार को संविधान में संशोधन करने का मौका मिल गया। कुछ राज्यों की विपक्षी सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया गया और देश में पूरी तरह से तानाशाही स्थापित हो गयी थी।

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