प्रसंग वश - किसान आंदोलन और मेरे कुछ सवाल हैं ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 17 जून 2017

प्रसंग वश - किसान आंदोलन और मेरे कुछ सवाल हैं ?

किसान आंदोलन के बाद मेरे जे़हन में कई सवाल उठ खड़े हुए। प्रदेश में एक इतनी गंभीर घटना को किस तरह सरकार ने देखा, समझा और एक्ट किया। यूं तो मुख्यमंत्री हादसों, आपदाओं को भुनाने में कभी पीछे नहीं रहे इस बार कहां चूके, क्यों चूके और क्या सोच थी। यह इस प्रदेश को जानना बेहद जरूरी है। इसलिए भी क्योंकि पिछले 2005 से मुख्यमंत्री और भाजपा निरंतर प्रदेश की जनता को सब्जबाग दिखा रहे थे। देखो, मध्यप्रदेश कितना स्वर्णिम बन गया। 2003 के पहले का बार-बार डर दिखाकर भाजपा और शिवराज जनता को यही बताते रहे कि देखो हम कहां से कहां आ गए। अब ये और बात है कि भाजपा इस बदलाव का असली सच नहीं बता पा रही है और कांग्रेस का सच निरंतर दबाया जाता रहा। बिजली, सिंचाई, सड़क क्यों बनी इसकी तह में आप जाएंगे तो शायद जनता को यह पता चले कि यह सब तो कांग्रेस की ही देन है। बिजली  उत्पादन का ही लें भाजपा अपने शासनकाल में यह उत्पादन करने का दावा करती है। वह यह सच बताने से परहेज करती है कि इन संयंत्रों के निर्माण का काम तो कांग्रेस शासन में ही शुरू हुआ था। तत्कालीन मुख्यमंत्री 2003 के पहले कहा करते थे कि 2007-08 के बाद मध्यप्रदेश जो छत्तीसगढ़ बनने के बाद बिजली के मामले में पिछड़ गया वह आत्मनिर्भर हो जाएगा। पर हम आत्मनिर्भर होने में लेट क्यों हुए? इसकी भी कहानी है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो 22 हजार करोड़ की बगैर टेंडर की बिजली खरीदी कैसे हो पाती। सड़क लें, सड़कों के निर्माण की बात करें। ग्रामीण सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण का पैसा कहाँ से आया। आम आदमी को यही बताया जाएगा कि यह मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना और बी.आर.टी.एस. के जरिए है। पर यहां आपको पता चले कि गांव-गांव में आज जो सड़कें हैं वे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की वजह से ही है। यह जरूर है कि इस योजना में सेंध लगाकर मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना बना ली, पैसा वही, नाम हमारा। प्रधानमंत्री सड़क योजना में प्रदेश को यू.पी.ए. शासन में कितना पैसा मिला, यह सच अगर  बता दे तो लोग जान जाएंगे कि यह भी कांग्रेस की ही देन है। सिंचाई को लें, सिंचाई परियोजनाएं क्या एक दिन में बनने वाली योजना है। ये परियोजनाएं भी कांग्रेस शासन काल में चालू की गई थी। जिसका दावा यह करते हैं कि साढ़े सात लाख से बढ़ाकर 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कर दी। हालांकि यह पूरा सच नहीं है। इसमें भी तकनीकी तौर पर किस तरह का गोरखधंधा सरकार ने किया है यह सच शिवराज जी नहीं बताएंगें। फिर मनरेगा, ग्रामीण स्वास्थ्य, शहरी आवास, शहरों का सौंदर्यीकरण आदि तमाम योजना है जो तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार की थी। आज अस्पतालों में जो मुफ्त दवाइयां मिल रही हैं यह क्या सरकार अपने बजट से करा रही है। यही सच बताया जा रहा है। पर ये झूठ है। यह योजना यू.पी.ए. सरकार की है। हाकर्स कार्नर क्या शहरी गरीबों को आवास देने का मामला है। यह सब यू.पी.ए. सरकार की ही देन है। आज जिस तरह केंद्र की योजनाओं का प्रचार प्रसार राज्य सरकार अपने बजट से कर रही है वैसा उसने कभी यू.पी.ए. सरकार के टाइम पर क्यों नहीं किया।  इसलिए कि फिर क्रेडिट कांग्रेस सरकार को मिलता। इस दौरान उन्हें केंद्र से कितना पैसा मिला और पिछले 3 साल में मोदीराज में कितना मिला। यह सच भाजपा सरकार बता दें। 


पर मैं ये बातें प्रसंगवश कर रहा था। क्योंकि आज जो आक्रोश किसानों के बीच फूटा है इसको लेकर जो झूठ 10-12 साल से मुख्यमंत्री बोल रहे थे यही हालात हर क्षेत्र में है। इसमें चूंकि किसान स्वयं भुगत रहा था और उसके सामने जीवन के अस्तित्व का सवाल आ खड़ा हुआ इसलिए वह गुस्सा उबलकर सामने आ गया। उसके बाद सरकार के मंत्रियों और नेताओं के बयान ‘‘आंदोलन में असामाजिक तत्व मरे, हिंसा कांग्रेस ने फैलाई, पुलिस ने गोली नहीं चलाई, फिर कहा चलाई। ऐसे में भी कहते हैं कि किसानों का कर्ज माफ नहीं हो सकता, सबसे महत्वपूर्ण बात तो कैलाश विजयवर्गीय ने कही। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी तो किसान हितैषी हैं पर सरकार की नीतियां ठीक नहीं है। अफसर योजनाओं का लाभ किसानों तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं।‘‘  यह बात किसी कांग्रेसी की नहीं भाजपा नेताओं की है। 
ajay singh MP
मेरे सवाल यहीं से खड़े होते हैं। दरअसल मुख्यमंत्री शिवराज जी ने दस-ग्यारह साल से प्रदेश को अभियान, यात्राओं, उत्सवों में व्यस्त रखा। इसके शोर में बुनियादी मुद्दे खोए रहे। आपदा को भी उन्होंने मुआवजे देने और दिलासा देने को जष्न में तब्दील कर दिया। खेती को ही लें। शिवराज जी ने कृशि कैबिनेट बनाई, फिर कृशि बजट अलग होने की बात की, कृषि पर एक विशेष सत्र भी विधानसभा का बुला लिया। पांच कृषि  कर्मण अवार्ड भी ले लिए, दुनिया में कृषि विकास में सबसे ज्यादा दर वाला मध्यप्रदेश है यह दावा भी कर दिया हालांकि आज हम सभी विपक्षी और प्रदेश की जनता और किसान यह नहीं जान पाए हैं कि दूसरे नंबर पर कौन है? यह सब बातें होती रहीं लेकिन किसानों के बुनियादी सवालों का जवाब शिवराज जी दस साल में नहीं दे पाएं की आखिर उसे जीरो प्रतिशत ब्याज पर कर्जा ही क्यों लेना पड़े अगर उसकी लागत से अधिक उसकी उपज बिक जाए। उनकी बातों में तो कृषि लाभ का धंधा बने, किसानों की आय बढ़े सब था लेकिन ऐसा किसानों के साथ हुआ नहीं। पिछले 2 माह से किसान अपनी मांगों को लेकर संगठित हो रहे थे और किसान पुत्र मुख्यमंत्री को पता ही नहीं था क्योंकि वे एक ऐसी यात्रा में जुटे थे जो नमामि देवि नर्मदे सेवा यात्रा थी। जिसपर उन्होंने 1500 करोड़ रूपए खर्च कर दिया।  सरकारी खर्च पर अपनी ब्रांडिंग करने की यह अय्याशी तो प्रदेश के इतिहास में पहली बार ही देखने को मिली है। इस आंदोलन में जो हिंसा हुई उसका तो मैं कतई समर्थन नहीं करता पर यह सच है कि किसानों का गुस्सा इस हद पर आ जाए कि लोग उसका फायदा उठा लें यह शिवराज सरकार की कृषि क्षेत्र में सबसे बड़ी असफलता है। इस आंदोलन से उपजे आक्रोश ही कारण थे कि शिवराज जी की बौखलाहट, घबराहट में उपवास जैसी नौटंकी करनी पड़ी। कोई प्रदेश की इतनी चिंता करे हर व्यक्ति को सुख सुविधा संपन्न बनाने की चिंता करे वह व्यक्ति उनके पैसे की सिर्फ 28 घंटे के लिए इतनी बरबादी कैसे कर सकता है। शांति बनाए रखने के एक मुख्यमंत्री के रूप में उनके पास कई हथियार थे। लेकिन स्थिति तब बिगड़ी जब उन्होंने उसका इस्तेमाल करने के बजाय राजनीतिक कदम उठाया। उन्होंने वास्तव में जेा किसान संगठन आंदोलन कर रहे थे उनसे संवाद नहीं किया। इसके साथ ही अगर आंदोलन में असामाजिक तत्व हों तो उसे रोकने का भी काम उनकी ही सरकार का था। क्या सरकार इतनी कमजोर हो गई है कि तंत्र के सामने कुछ असामाजिक तत्व पूरी सरकार को धरने पर ला दें। उनसे निपटने के बजाय उपवास पर बैठ जाना कहां का राजधर्म और सरकारी पैसे से बने पांडाल का राजनीतिक उपयोग। वहां से विपक्षी दल को कोसा जा रहा और सारे भाजपा के नेता कार्यकर्ता वहां इकट्ठे हो गए। यह सब सरकारी खर्च पर।  यह कौन सी परंपरा डाली जा रही  है स्वर्णिम मध्यप्रदेश में।
नमामि देवि नर्मदे सेवा यात्रा के नाम पर हद ही कर दी। पिछले 11 साल में अचानक चुनाव के डेढ़ साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी को देश की जीवन रेखा उस नर्मदा माँ की याद आई जिसके किनारे उनका बचपन बड़ा हुआ। वह भी राजनीतिक याद। वे नर्मदा माँ के कितने सच्चे सेवक हैं इसका उदाहरण देखिए कि उन्होंने नर्मदा किनारे बाबई में कोका कोला फैक्ट्री खोलने के लिए जमीन दे दी। यह सभी जानते हैं कि कोल्ड ड्रिंक बनाने में कितना पानी खर्चा होता है। उसका जो केमिकल है वह कहां जाएगा। यह भी सभी जानते हैं। यह एक नहीं है ऐसे कई कारखाने हैं जिनका आज भी प्रदूषण नर्मदा नदी में प्रवाहित हो रहा है। और तो और माँ नर्मदा ने जो हमें सबसे कीमती संपदा रेत दी है उसका कितना अवैध दोहन किया उसकी छाती छलनी हो गई। घोषित तौर पर कानूनी कार्यवाहियों के रिकार्ड में है कि भाई-भतीजे रिश्तेदार रेत के अवैध उत्खनन में शामिल थे। जनता को सारी नसीहत और स्वयं के लिए कोई नसीहत नहीं। नमामि देवि नर्मदे सेवा यात्रा के नाम पर प्रदेश की जनता को धोखा दिया है। उन्होंने जनता के पैसे सरकारी खजाने से इस यात्रा पर 1500 करोड़ रूपए फूंके। यह कहने को सरकारी यात्रा थी लेकिन इसकी पूरी कमान भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं के हाथों में थी। अपनी ब्रांडिंग की पराकाष्ठा देखिए कि यात्रा के विज्ञापन लंदन के एयरपोर्ट, हर विमान में और गूगल को विज्ञापन दिया गया। ढाई से तीन करोड़ की फिल्म और गीत ही बनवाए गए। शर्मनाक तो तब था जब समापन पर अमरकंटक में मोदी जी की सभा में स्वच्छता मिशन से प्रत्येक प्रेरक को 500 रूपए देकर ले जाया गया। खुले आम आरटीओ को बस उपलब्ध करवाने को कहा उसके लिए अधिकृत रूप से प्रत्येक जिले को लाखों रूपए दिए गए। सभा पर 100 करोड़ खर्च किए गए। अमरकंटक में मोदी की सभा के कारण जो प्रदूषण नर्मदा नदी के तट पर व्याप्त हुआ उसके लिए 40 लाख रूपए का ठेका दिया गया। है तो शर्मनाक। ब्रांडिंग और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करने में बेशर्मी के साथ सरकारी पैसा उड़ाने की मिसाल प्रदेश में पहली बार ही देखने को मिली है। 

औद्योगिक विकास का झूठ देखिए। हर दो साल में ग्लोबल इन्वेस्टर मीट। इस बीच में कई विदेश यात्राएं। चीन गए वहां के उद्योगपतियों को निवेश पर आमंत्रित करने गए लौटे तो उनकी पार्टी के लोग चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान छेड़े थे। संभवतः 10 सालों में एक दर्जन विदेश यात्राएं मुख्यमंत्री ने सपरिवार की। हर बार दावा निवेश के लिए यात्रा। जनता को यह सच बताएं कि उनकी विदेश यात्रा में परिवार सहित पूरे प्रतिनिधिमंडल पर कितना खर्च हुआ और उसके एवज में कितने का निवेश आया। समिट में लाखों करोड़ों के एम.ओ.यू. हुए। इसके हिसाब से तो आज मध्यप्रदेश को देश के नंबर वन औद्योगिक राज्य में होना था और यहां के हर युवक के हाथों में रोजगार होना था पर ऐसा है क्या? यह तो सभी जान रहे हैं। राजनीतिक मैदान में अपने को अव्वल बनाने के लिए सभी लोग जनता में स्वीकार्यता बढ़ाने के लिये कई हथकंडे अपनाते हैं। पर इतना झूठ की वही सच बन जाए। हार जीत तो लोकतंत्र का हिस्सा है पर अपने लिए प्रदेश को वहां की जनता को दांव पर लगा देना इसे क्या बर्दाश्त किया जाना चाहिए। 




---अजय सिंह---
(लेखक म.प्र. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं) 

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