बिहार से भाकपा-माले, इनौस, आइसा व इंसाफ मंच के साथी लेंगे भाग, आज होंगे गुजरात रवाना. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

बिहार से भाकपा-माले, इनौस, आइसा व इंसाफ मंच के साथी लेंगे भाग, आज होंगे गुजरात रवाना.

  • उना कांड की पहली बरसी पर गुजरात में ‘आजादी कूच’ 

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पटना 7 जुलाई, आज से एक साल पहले ऊना (गुजरात) में गौरक्षकों द्वारा दलितों पर ढाये गये बर्बर जुल्म के खिलाफ उठ खड़े हुए ऐतिहासिक दलित जागरण के एक साल पूरा होने पर गुजरात में ‘आजादी कूच’ का कार्यक्रम आयोजित किया गया है. 12 जुलाई से लेकर 18 जुलाई तक चलने वाली इस यात्रा को दलित अधिकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक जिग्नेश मेवाणी संयोजित कर रहे हैं. उन्होंने इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बिहार से भाकपा-माले और उसके जनसंगठनों से जुड़े नेताओं को आमंत्रित किया है. उनके आमंत्रण पर बिहार से भाकपा-माले, आइसा, इनौस व इंसाफ मंच की एक पंाच सदस्यीय टीम गुजरात जा रही है, जो इस ‘आजादी कूच’ में शामिल होगी. बिहार के अलावा दिल्ली से भी आइसा-इनौस का एक जत्था कार्यक्रम में शामिल होगा. बिहार से गुजरात दौरे पर जाने वाली टीम में इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य अध्यक्ष व भाकपा-माले की राज्य कमिटी के सदस्य काॅ. मनोज मंजिल, आइसा के बिहार राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन, आइसा के राज्य अध्यक्ष मोख्तार, इंसाफ मंच के राज्य सचिव सूरज कुमार सिंह और इंकलाबी मुस्लिम कांफ्रेस के राज्य संयोजक अनवर हुसैन भाग लेंगे. दिल्ली वाली टीम में फरहान अइमद, असलम खान और चंडीगढ़ से नवकिरण नट शामिल होंगे. बिहार की टीम आज शाम अजीमाबाद एक्सप्रेस से अहमदाबाद रवाना होगी.


ऊना की घटना के उपरांत ऐतिहासिक दलित नवजागरण के उपरांत भी आज पूरे देश में दलितों-अल्पसंख्यकों पर हमले में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि उसमें लगातार इजाफा ही हो रहा है और आज भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को पीट-पीट कर मार देने की नई प्रवृति उभरकर सामने आई है. जो बेहद खतरनाक और देश के लोकतंत्र व संविधान के खिलाफ है. पिछले एक साल में उना, दादरी, लातेहार, अलवर, सहारनपुर सरीखी कई घटनाओं को संघ और भाजपा ने खुलकर अंजाम दिया है, ये सब संघ-भाजपा ़द्वारा देश को हिंदूराष्ट्र बनाने की बेताबी का नतीजा हैं और इसके निशाने पर दलित-महिलायें व अल्पसंख्यक हैं. उत्तरप्रदेश में बहुमत हासिल कर लेने के उपरांत दलितों पर हमले की कई घटनायें सामने आई हैं. यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दलितों के प्रति घृणा अब ख्ुालकर सामने आ रही है. गुजरात से आ रहे दलितों के जत्थे केा रोकने और जत्थें को रोके जाने के खिलाफ बुद्धिजीवियों द्वारा संबोधित किए जाने वाले प्रेस कांफ्रेस को बीच में रोककर बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी फासीवाद की आहट दे रहा है.

. स्वच्छ भारत व गौरक्षा के नाम पर पूरे देश में संघी-सरकारी आतंक फैलाया जा रहा है. अखलाक-पहलू खान से लेकर राजस्थान में जफर के हत्यारों को कोई सजा नहीं दी जा रही, जिससे अपराधियों का मनोबल और बढ़ता जा रहा है. दिल्ली में जुनैद की हत्या कर दी गयी. स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि प्रधानमंत्री एक तरफ घड़ियाली आंसू बहा रहे थे और दूसरी ओर ठीक उसी समय झारखंउ में भीड़ द्वारा अलीमुद्दीन की हत्या कर दी गयी. ऊना की घटना के उपरांत गुजरात के दलितों ने वहाँ के मुस्लिम और प्रगतिशील साथियों के साथ मिलकर ‘गाय की पूंछ आप रखो, हमंे हमारी जमीन दो’ के नारे के साथ उठ खड़े हो कर एक नए किस्म के दलित आन्दोलन को जन्म दिया था, जो दलित आंदोलन के इतिहास की एक माइलस्टोन घटना बन गयी है. इसमें दलितों ने अपने लिए जमीन की मांग उठायी. बिहार में भाकपा-माले दलित-गरीबों के जमीन, मर्यादा आदि सवालों पर चलने वाले संघर्षों की प्रतिनिधि आवाज रही है. बिहार में जो संघर्ष भोजपुर की धरती से आरंभ हुई थी, वह आज गुजरात तक फैल रही है और बिहार व गुजरात में चल रहे आंदोलन के बीच नए प्रकार की एकता का निर्माण हो रहा है, जो बेहद स्वागतयोग्य है. इस आजादी कूच के तहत उना, दादरी, लातेहार, अलवर की तरह भीड़ के हाथों किसी भी इंसान की हत्या न हो, इसके लिए रुल आफ ला की पुनस्र्थापना की मांग की जाएगी. साथ ही केंद्र सरकार पर इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए विशेष कानून बनाने की भी मांग की जाएगी. इस तरह दलितों के आत्मसम्मान और अस्तित्व दोनों की लड़ाई को बिहार से लेकर गुजरात तक आगे बढ़ाया जाएगा.

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