भदोही : जीएसटी से झल्लाएं कारोबारियों का गुस्सा सड़कों पर फूटा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 20 जुलाई 2017

भदोही : जीएसटी से झल्लाएं कारोबारियों का गुस्सा सड़कों पर फूटा

  • कहा, तबाह हो जायेगा लाखों बुनकरों को रोजगार देने व विदेशी मुद्रा अर्जित कराने वाला कालीन कुटीर उद्योग 

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भदोही (सुरेश गांधी ) । कारपेट इंडस्ट्री पर केंद्र सरकार द्वारा 18 प्रतिशत जीएसटी लगाए जाने के विरोध में बुधवार को भदोही में अभूतपूर्व बंदी रही। बड़ी संख्या में कालीन निर्यातकों, बुनकरों व वूल कारोबारियों ने सड़क पर जुलूस निकाला। जुलूस में शामिल लोग पोस्टर, बैनर व जीएसटी विरोधी स्लोगन लिखी तख्तियां हाथ में लेकर चल रहे थे। भीड़ का यह आलम था कि मर्यादपट्टी से लिप्पन तिराहे तक मानव श्रृंखला बन गई थी। तकरीबन घंटेभर दोनों तरफ से वाहनों का आवागमन ठप हो गया था। चिलचिलाती धूप के बावजूद कालीन उद्यमी व बुनकरो का गुस्सा इस कदर रहा कि वह लगातार वित्तमंत्री अरुण जेटली के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। कहा, जीएसटी कालीन उद्योग के लिए काला कानून है। इस काले कानून से न सिर्फ कालीन उद्योग तबाह हो जायेगा, बल्कि लाखों गरीब बुनकरों की दो वक्त का निवाला छिन जायेगा। करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा भारत सरकार की झोली में नहीं आ पायेगा। जुलूस शहर के मर्यादपट्टी एकमा भवन से विभिन्न रास्ते से होता हुआ तहसील पहुंचा, जहां जबरदस्त धरना-प्रदर्शन किया। अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम संबोधित मांग पत्र अपर पुलिस अधीक्षक व एसडीएम को सौंपा। 


सभा में सीईपीसी के चेयरमैन महावीर प्रसाद उर्फ राजा शर्मा ने कहा कि कालीन उद्योग कृषि उद्योग की श्रेणी में आता है। अभी तक सरकार द्वारा इस पर उत्पाद शुल्क, सेवा कर, व्यापार कर नहीं लिया जाता था। किंतु केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी के तहत कालीन की बिक्री पर 12 व निर्माण कार्यों पर 18 फीसदी कर लगा दिया गया है, जो न्यायोचित नहीं है। इसके चलते उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच जाएगा। सीइपीसी के सीनियर प्रशासनिक सदस्य उमेश गुप्ता ने कहा कि कालीन उद्योग भदोही, मिर्जापुर समेत पूरे पूर्वांचल व दिल्ली, मुंबई, जयपुर, जम्मू कश्मीर आदि क्षेत्रों में फैला है। इस उद्योग में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से तकरीबन बीस लाख से भी अधिक लोग जुडे है। यह उद्योग पांच हजार करोड़ से भी अधिक विदेशी मुद्रा भारत सरकार को अर्जित कराती है। बावजूद इसके सरकार की उपेक्षात्मक रवैये के चलते अन्य उद्योगों के मुकाबले कालीन उद्योग पिछड़ता चला जा रहा है। वैश्विक मंदी के चलते यह उद्योग कुछ ज्यादा ही प्रभावित है। ऐसे में अगर इस उद्योग को जीएसटी के दायरे में लाया जायेगा तो तबाही आ जायेगी। सरकार से मांग है कि कारपेट इंडस्ट्री से जीएसटी को अलग रखा जायें। 

सभा में भारतीय कालीन निर्यात संवर्द्धन परिषद (सीईपीसी), अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एकमा), पूर्वांचल निर्यातक संघ, इंडो अमेरिकन चैम्बर ऑफ कामर्स वाराणसी, एसिसडा, उद्योग व्यापार मंडल, अखिल भारतीय उद्योग व्यापार परिषद समेत तमाम संगठनों के सदस्य मौजूद थे। सभा में काका राय ने कहा, सरकार ने मेहनतकश कामगारों को निराश किया है। परंपरागत हस्तशिल्प कालीन कुटीर उद्योग पूरी तरह से विलुप्त होने के कगार पर है। सरकार ने हस्तशिल्प उत्पाद व हाथ से बने हुए कालीनों पर 12 से 28 फीसद जीएसटी लगाकर घोर अन्याय किया है। जीएसटी ने नोटबंदी की तरह देश की अर्थव्यवस्था में अफरातफरी का माहौल पैदा कर दिया है। कामगारों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार से मांग है कि हस्तशिल्प उत्पाद को जीएसटी से मुक्त रखा जाए। सभा में परिषद के प्रशासनिक समिति के सदस्य उमेश कुमार गुप्ता, फिरोज वजीरी, एकमाध्यक्ष गुलाम शफरुद्दीन अंसारी, मानद सचिव पियुष बरनवाल, असलम महबूब, रवि पाटोदिया, संजय गुप्ता, वासिफ अंसारी, अब्दुल हादी, फजल वजीरी, मो. आरिफ सिद्दीकी, पूर्व विधायक जाहिद बेग, शाहिद अली, शाहिद हुसैन, मुशीर इकबाल, आनंद जायसवाल, श्यामनारायण यादव, संतोष चंद्र गोलछा, जेएस जैन, मनोज सुराना, इम्तियाज अंसारी, राशिद मलिक, हाजी शाह आलम, राशिद बेग, देवा जायसवाल आदि ने संबोधित किया। फिरहाल, जीएसटी के विरोध का आलम यह रहा कि सड़कों पर निर्यातक व बुनकर मजदूर सब एक साथ सड़क पर उतरे। खमरियां, घोसियां, माधोसिंह, गोपीगंज, औराई, ज्ञानपुर सहित जनपद के विभिन्न स्थानों से निर्यातक व कामगार जहां आंदोलन में भाग लेने पहुंचे थे वहीं पड़ोसी जनपद मीरजापुर से भी सैकड़ों की संख्या में लोग आए थे।

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