- आदिम जनजाति आयोग की स्थापना व अन्य मांगों के साथ हिल एसेम्बली पहाड़िया महासभा ने निकाली विशाल रैली,
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) दामिन-ई-कोह की 184 वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने अस्तित्व के रक्षार्थ हिल एसेम्बली पहाड़िया महासभा की ओर से 17 जुलाई 2017 को प्रमण्डलीय आयुक्त, संपप्र, दुमका के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति सहित प्रधानमंत्री, झारखण्ड के राज्यपाल व मुख्यमंत्री को एक 10 सूत्री मांगपत्र प्रेषित किया गया है। हिल एसेम्बली पहाड़िया महासभा के अनुसार विस्तारित दामिन क्षेत्रान्तर्गत विधानसभा व लोकसभा की सीटें पहाड़िया समुदाय के लिये आरक्षित करने, झारखण्ड में आदिम जनजाति आयोग की स्थापना, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया व कुमारभाग पहाड़िया समुदाय के लिये आदिम जनजाति प्रणामपत्र निर्गत करने, सरकारी सेवाओं में सीधी नियुक्ति हेतु स्थायी नियमावली बनाते हुए वि0स0 2162 क0/ दिनांकः 03.09.2009 के आलोक में आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय के अभ्यर्थियों की सीधी नियुक्ति करने, 1338 वर्गमील क्षेत्रफल में स्थापित दामिन की बाउण्ड्री का जीर्णोद्धार व दामिन डाकबंग्ला का नवीनीकरण करने, अंत्योदय व आदिम जनजाति पेंशन योजना से वंचित 30 प्रतिशत पहाड़िया आबादी को योजनाओं से आच्छादित करने, एमओ व बीडीओ के हाथों बलि का बकरा बने डाकिया योजनाओं में मची लूट की उच्चस्तरीय जाँच कराने, राजमहल क्षेत्रान्तर्गत प्रतिदिन पहाड़ों को चकनाचूर करने वाले पत्थर खदानों को अविलंब बंद करने व सरदार नायब व मांझी शासन व्यवस्था को पुनः लागू करने जैसी मांगे शामिल है। हिल एसेम्बली पहाड़िया महासभा के अध्यक्ष शिवचरण माल्तो, सरदार माईकेल माल्तो, सरदार सिमोन माल्तो, सरदार कामेश्वर पहाड़िया, सरदार विजय माल्तो, जोसेफ माल्तो, डेविड माल्तो व अन्य का संयुक्त रुप से कहना था कि ईसा पूर्व 302 से ही इस क्षेत्र में आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय निवास कर रही है। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक मेगास्थनीज व चीनी यात्री हवेंगसान ने इस वनप्रांतर क्षेत्र में 147 पहाड़िया राज-जागीर का वर्णन किया है। मुगलों व अंग्रेजों के शासनकाल में भी इस क्षेत्र में पहाड़िया समुदाय के लोगों ने ही राज किया था। वर्ष 1766 में रमना आहड़ी व 1772-84 तक जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी के नेतृत्व में पहाड़िया समुदाय के लोगों ने मुगलों-अंग्रेजों से लड़ाईयाँ लड़ी थी। उपरोक्त के परिणामस्वरुप ही वर्ष 1772 ई0 में पहाड़िया सैनिक दल का गठन व 1782 में क्लीवलैंड की अध्यक्षता में पहाड़िया परिषद् (हिल एसेम्बली) का गठन किया गया। वर्ष 1823-33 में दामिन-ई-कोह (1338 वर्गमील क्षेत्रफल) में पहाड़िया लहगा जिसे जेम्स पीटी वार्ड ने 1824 में पक्का पिलर व ताड़गाछ से घेराबंदी कराया था। पहाडिया विद्रोह को दबाने के लिये उपरोक्त सारा कार्य किया गया था। पहाड़िया नेता शिवचरण माल्तो का कहना है आजादी के सत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय की सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में कोई खास बदलाव नहीं आया है। निःशुल्क चावल का वितरण कर सरकार पहाड़िया जनजीवन को स्थिर कर देना चाहती है। गरीबी, लाचारी, बेरोजगारी, अशिक्षा से ग्रसित आदिम जनजाति पहाड़िया समाज का लाभ दलालों, मुनाफाखोरों, बिचैलियों को प्राप्त होता रहा है। नौकरी व अन्य रोजगार के नाम पर पहाड़िया युवतियों को कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली इत्यादि स्थानों पर ले जाकर उन्हें बेच दिया जाता है। जो युवतियाँ नौकरियों के नाम पर इस इलाके से बाहर ले जायी गई, आज तक वापस नहीं लौट पायी हैं। अंग्रजों के विरुद्ध सदैव संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पहाड़िया समुदाय के लोग हाशिये की जिन्दगी जीने पर मजबूर हैं। 24 दिसम्बर 1954 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बिहार डा0 श्रीकृष्ण सिंह की पहल पर स्थापित पहाड़िया कल्याण विभाग ने पहाड़िया समुदाय के विकास को नजरअंदाज करते हुए उनके विकास को अवरुद्ध कर दिया। भारतीय संविधान में अंग्रेजों से कहीं ज्यादा धोखाधड़ी शासन के लोग आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय के साथ करते आ रहे हैं। बीए पास पहाड़िया युवक-युवतियों की नौकरियों में सीधी नियुक्ति मात्र एक दिखावा बनकर रह गया है। नौकरी में 25 फीसदी आरक्षण के स्थान पर मात्र 2 फीसदी आरक्षण प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
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