मिथिला की संस्कृति का रंगमंच सौराठ सभा का जीर्णोद्दार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 5 जुलाई 2017

मिथिला की संस्कृति का रंगमंच सौराठ सभा का जीर्णोद्दार

saurath sabha, सौराठ सभा
बिहार के मिथिलांचल मे इस वर्ष विश्व प्रसिद्ध एवं एतिहासिक सौराठ सभा, जो मधुबनी जिला मुख्यालय से लगभग 5 कि0 मी0 की दूरी पर अवस्थित है, में अद्भुत रौनकता एक लम्बे अर्से बाद देखने को मिला और इस रौनकता के अन्दर सम्पूर्ण मिथिला में आई वैचारिक जागृति एवं अपने संास्कृतिक धरोहर के प्रति इनका आकर्षण स्पष्ट रुप से झलक उठा। इस जागृति को लाने में, सौराठ सभा के पुर्नउत्थान या यू कहे कि जीर्णोद्दार में मिथिलालोक फाउन्डेशन के चैयरमैन डा0 बीरबल झा की भूमिका महत्ती रही है। इस वर्ष के आरम्भ से ही इन्होने ‘‘चलू सौराठ सभा अभियान’’ का सफल संचालन एवं स्वरचित गीत ‘‘प्रीतम नेने चलू हमरो सौराठ सभा’’ जिसको स्वरबद्ध किया गायिका ज्योति मिश्रा ने, के माध्यम से इस सभा की गरिमा का बखान कर इसे जन-जन तक पहुचाया।


जैसा कि हम सभी जानते है, विवाह संस्कार एक बडा़ ही पवित्र संस्कार है, एवं इससे संस्कारित होने के उपरान्त ही मनुष्य (नर-नारी) अपने वंश परम्परा को आगे बढ़ाता है। यह अपने परिवार के निर्माण हेतू एक सामाजिक स्वीकृति है, सृष्टि क्रम को आगे बढ़ाने की एक व्यवस्था है। आज जिस सामूहिक विवाह प्रचलन को हम भारत के विभिन्न प्रदेशो एवं सम्प्रदायो मे देखते है, इसकी महत्ता को समझकर मिथिला विभूतियो ने अपने समाज में सैराठ सभा के रुप में आदिकाल में ही इसे प्रतिष्ठित कर रखा था। इसबार सभागाछी में 365 जोड़ी शादियाँ तय हुई, जो कि एक रिकार्ड है। सभा का उद्घाटन कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सर्वनारायण झा ने की। श्री झा ने 700 साल पुरानी वैवाहिक पंजीकरण व्यवस्था के डिजिटाइजेशन की वकालत भी की।

मिथिलालोक फाउन्डेशन के चैयरमैन डा0 झा ने कहा कि मिथिला इस पावन-पुनीत वसुधा पर एक क्षेत्र ही नही अपितु एक जीवन दर्शन है, जगत् जननी सीता की जन्म भूमि एवं भगवान श्री राम के विवाहोत्सव की गरिमा से मंडित यह धरा-क्षेत्र सम्पूर्ण विश्व मानव समुदाय को जिन्दगी जीना सिखाती है, यहाँ विपन्नता में सम्पन्नता है, उन्होने आगे कहा कि जीवन मे विवाह संस्था को मजबूत कर ही समाज को सुदृढ़ किया जा सकता है। विवाह-विच्छेद का अनुपात विश्व के अन्य क्षेत्रो की तुलना में यहाँ नगण्य है, और यही हमारी विशिष्टता है। डा0 झा ने जहाँ एक ओर सौराठ सभा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए एक पत्र लिख कर केन्द्र सरकार से माग की है, वही बिहार सरकार से यहाँ एक बहुउद्देशीय भवन बनाने की भी माँग की है।

नौ दिवसीय सौराठ सभा (25 जून से 3 जुलाई 2017) में प्रत्येक दिन अनूठे कार्यक्रम हुए। 28 जून के कार्यक्रम में 8वी सदी के मिथिला विभूति पं0 मंडन मिश्र एवं आदि गुरु शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ के दृश्य को पुनर्जिवीत करने का प्रयास काफी उल्लेखनीय है, जिसमे संस्कृत के दिग्गज विद्वानो  के संग मधुबनी के जिलाधिकारी श्री श्रीसत कपील अशोक, सभा के पंजीकारो के संग चटाई पर बैठे नजर आए। सभा मे महिलाओ की भागीदारी भी सराहनीय थी। स्थानीय समाचार पत्रो में सभा से जुड़ी खबरो को इस बार प्रमुखता से छापा गया एवं शोसल मिडिया पर भी यह छाया रहा। अंत में, सौराठ सभा में नवजीवन संचार को और भी अधिक उल्लास के साथ आगे बढ़ाते हुए डा0 झा ने कहा कि भविष्य में सीतास्वयंवर की परम्परा को सभा में पुनर्जीवित करेंगे एवं इस सभा में वर-वधू दोनो की उपस्थिति से दहेज मुक्त समाज का निर्माण होगा। इसे हाईटेक बनाने पर भी इन्होने बल दिया।

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