जन के साथ-साथ राजनीति में भी आसमान की बुलंदियों तक पहुँचने की चाहत है : डा. (मो.) हनीफ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

जन के साथ-साथ राजनीति में भी आसमान की बुलंदियों तक पहुँचने की चाहत है : डा. (मो.) हनीफ

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दुमका (अमरेन्द्र सुमन) धार्मिक अनुष्ठानों में यदि शाश्वत शक्ति निहित है ,तो फिर गलियों में इतनी दुर्गन्ध क्यों ? यहाँ बिजली की इतनी अव्यवस्था क्यों ? इसी स्थान पर भीख मांगने वालों की लम्बी कतार क्यों ? चहारदीवारी के अंदर मलत्याग कर बेपरवाह यत्र-तत्र भ्रमण कर रही गायें क्यों ? इसी स्थान पर बच्चों को जन्म देकर बाजू में टहल रहीं कुतिया क्यों ? प्रतिदिन पूजा-अर्चना एक सिस्टम की तरह है तो फिर, चढ़ावे की राशि क्यों ? अध्यापक, कवि/ लेखक/ साहित्यकार डा0 (मो0) हनीफ ने इसी तरह के अन्य अनगिनत सवालों को अपनी हालिया लिखी पुस्तक ’’अरुण कोलात्कर्स जेजुरी ए क्रिटिकल स्टडी’’ ,के माध्यम से हवा में छोड़ रखा है। सिदो कान्हु मुर्मू विवि, दुमका (झारखण्ड) के कुलपति डा0 मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने डा0 (मो0) हनीफ की पुस्तक ’’अरुण कोलात्कर्स  जेजुरी ए क्रिटिकल स्टडी’’ का विमोचन करते हुए कहा था - पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती। जिज्ञासाएँ जब तक प्रबल बनी रहती हैं, मनुष्य की कल्पनाएँ जहाँ तक उड़ान भर सकती हैं, काम करने की जीजीविषा जब तक मन में बची रहती है और सृजन की शक्ति जब तक व्यक्ति के मस्तिष्क में संग्रहित रहती है, मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति, अपने विचारों, अपनी भावनाओं के उच्च प्रदर्शन की तमाम तरह की कोशिशें करने से हिचकता नहीं है। ’’अरुण कोलात्कर्स जेजुरी ए क्रिटिकल स्टडी’’ एक विराट हृदय के धनी डॉ (मो0) हनीफ की छठी बेहतरीन रचना है। भारतीय दर्शन के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान में रूपये के अनावश्यक दोहन को बखूबी सामने लाने की हिम्मत उन्होेंने इस पुस्तक के माध्यम से दिखलायी है। धार्मिक आडम्बर व दिखावेपन (जिसके मूल में स्वार्थ निहित है) कहाँ तक जायज है ? वर्तमान व्यवस्था व वैज्ञानिक विचारधाराओं के इस संसार में रूढ़िवादी विचारधाराओं पर कुठाराघात करती यह पुस्तक अपने आप में अद्भुत व विलक्षण है। कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में शिक्षा विभाग के एक पदाधिकारी के घर 01 नवम्बर 1932 को जन्में अरुण कोलात्कर ने खंडोवा के जेजुरी में स्थित धार्मिक स्थलों में व्याप्त भ्रान्तियों को अपनी रचनाधर्मिता का आधार बनाते हुए जो कुछ भी लिखा अध्यापक, कवि/ लेखक/ साहित्यकार डा0 (मो0) हनीफ ने बड़ी ही सहजता के साथ उसका चित्रण अपनी पुस्तक में किया है। इसी तरह पत्थर के दो दिल डा0 (मो0) हनीफ की उत्कृष्ट मानी जाती है। इस रचना पर कई बड़े-बड़े आलोचकों, समालोचकों ने अपनी समीक्षा में इसे पहले पायदान पर स्थान दिया है। कविता, कहानी, उपन्यास लिखने की अंतः प्रेरणा व उसके प्रति उनकी लगातर व्याकुलता से यह प्रतीत होता है कि आने वाला समय इनकी कृतियों के लिये नया सवेरा साबित होगा। झाड़ियों में जितना प्रवेश करोगे, कांटे उतने ही अधिक चुभेंगे। बेहतर है ,लौट जाओ राह से (पत्थर के दो दिल)। कुछ भूली विसरी यादें (कहानी संग्रह) की अपनी अनोखी विशेषता है। देखो, नीमू देखो...! आकाश की ओर देखो। तारे तो अनंत हैं, किन्तु चंदा एक ही है। यह पता है कि मुझको खोने के बाद मुझे पाने के लिए तुम जीवन भर तरसोगे, पर शायद तब मैं......। (इसी कहानी संग्रह से) डा0 हनीफ की कहानी सरहद, ने भी काफी धूम मचाई है। आर्थिक रुप से सम्पन्न एक कथाकार के व्यवहार में अचानक हुए परिवर्तन को रेखांकित करते हुए दर्द कहूँ या पीड़ा में डा0 हनीफ ने लिखा है......’’हाँ मां’’, ,अब तक मैं तुमसे झूठ ही कहता रहा, जबकि सच यह है कि जिस साड़ी के पहननें में तुम खुद को असहज महसूस कर रही थी ,वह छोटे बाबू की नहीं, मेरे खून.....। काली बछिया जैसी कहानी में डॉ हनीफ ने मानो सृष्टि के संपूर्ण जीवों का मानवीकरण ही कर दिया हो। पशुओं के सीने में भी दिल होता है, संवेदनाएँ होती हैं। उनमें भी अच्छी-बुरी सोंचने-समझने की शक्ति होती है, ,जिसे जानकर भी मानव अबूझ रह जाता है। व्हेयर यू,.... में कवि ने अपनी बहन की असामयिक मौत पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा है- बालू के सिक्तकणों में या मरुभूमि में, बताओ तुम कहाँ हो ? एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्म लेकर भी काली बछिया जैसी कहानियों का सृजन कर  डा0 हनीफ ने गंगा-यमुनी तहजीब को अक्षुण्ण बनाए रखने का भागीरथ प्रयास किया है। एक ऐसे भारतीय होने का गौरव इन्होंने प्राप्त किया है जो साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये जीवन के बहुमूल्य क्षणों को कागज की आत्मा में समर्पित कर दिया हो। समाज की कुंठित मानसिकता से उपर उठ कर इंसानियत को अपना धर्म बताने वाले डाॅ (मो0) हनीफ की हिन्दू धर्म के प्रति आस्था इसी बात का द्योतक है। संस्कृत में स्नातक व अंग्रेजी में डाक्टरेट शिक्षक मो0 हनीफ को हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंग्ला व संताली भाषा पर समान अधिकार प्राप्त है। बचपन से ही वे मेधावी छात्र थे। जामा, दुमका (झारखण्ड) के छैलापाथर में उर्दू माध्यम से प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने प्राप्त की। मध्य विद्यालय, मसलिया से इन्होंने हिंदी माध्यम से बाद में पढ़ाई किया। प्रथम श्रेणी से मैट्रिक उत्तीर्ण डा0 हनीफ ने एसपी महाविद्यालय, दुमका से इंटर में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। बाद में उच्च शिक्षा के लिये वे बनारस चले गए। 38 वीं व 41 वीं व 43 वीं बीे पी एस सी परीक्षा के साक्षात्कार तक इन्होंने दौड़ लगायी किन्तु असफल रहे। जनसेवक व बैंक क्लर्क नौकरियाँ इन्होंने ठुकरा दी। एक शिक्षक के रूप में डा0 (मो0) हनीफ ने वैसे छात्रों को निशुल्क शिक्षा प्रदान किया जो आर्थिक तंगी के शिकार थे। समाज में जो शोषित व पीड़ित समझे जाते थे। 


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मुख्यधारा से जिनका कोई सरोकार नहीं था। जिनकी अभिव्यक्ति कुंठित हो चुकी थी। जो सपने तो बड़े-बड़े देखते हैं किन्तु जिनके सपनों को पंख नहीं था। इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए समाज सेवा कोे अपना केन्द्र विन्दु बनाया। कभी यह नहीं सोंचा कि ऐसे कदम उठाने का प्रतिफल क्या होगा, जबकि खुद वे आर्थिक तंगी से जूझते रहे। डा0 हनीफ के अनुसार अपने जीवन काल में तकरीबन 40 हजार बिद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान किया। डा0 हनीफ इस प्रकार आसपास के क्षेत्रों में काफी ख्याति प्राप्त शिक्षक हो गए। सरल सौम्य, मिलनसार व एक अच्छे व्यक्तित्व के धनी शिक्षक डा0 (मो0) हनीफ की चर्चा दूर-दूर तक फैलती चली गई। एक ऐसे मुस्लिम परिवार से जहाँ शिक्षा को कोई खास तवज्जो नहीं दी जा रही हो, डा0 हनीफ ने आईएएस का ख्बाब मन में पाल रखा था। आईएएस की तैयारी के लिये जिस रॉ इंस्टिट्यूट में डा0 हनीफ ने दाखिला ले रखा था, अपने सरल व्यवहार से उन्होंने सबों का मन जीत लिया था। वापस घर लौटने पर माता-पिता, भाई-भतीजों को ताश में तल्लीन देख उनका मन विचलित हो उठा। उन्होंने प्रण किया, समाज में व्याप्त इन बुराइयों से लोगों को दूर करना उनकी पहली श्रेष्ठ प्राथमिकता होगी। तकरीबन 4 वर्षों उन्होंने ट्यूशन पढ़ाया।  6 वर्षों तक प्रतिदिन 80 किलोमीटर की दूरी साइकिल से उन्होंने तय की। प्रेम में धोखा व स्वजनों के दुव्र्यवहार से दुखी डॉ हनीफ डब्लू बी येईटर्स से काफी प्रभावित थे। अंग्रेजी को उन्होंने इसी से प्रेरित होकर अपनाया। एसपी महिला कॉलेज, दुमका में अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत डा0 (मो0) हनीफ सौम्य प्रकृति, उदार व्यवहार, मृदुभाषी व्यक्तित्व खुले विचारांे वाले कहेे जाते हैं। हिंदी व अंग्रेजी में अब तक इनकी  6 पुस्तकंे आ चुकी हैं। कुछ भूली बिसरी यादें  कहानी संग्रह में अपने बचपन को स्मरण करते हुए डा0 (मो0) हनीफ लिखते हैं-पैर में पहनने के लिए चप्पल नहीं था, पलाश के पत्तों का जूता पहनकर रेत व कंकड़ से पैरों की रक्षा करता था। घर में पाले हुए तोते का बहेलिये के तीर का शिकार होने पर लेखक काफी विचलित हुआ। अपनी लेखनी से लेखक ने आँसु रूपी स्याही से उसे रंगने का भरसक प्रयास किया। ’’हल्दी के रंग’’, कहानी की काफी सराहना हुई, इस कहानी का बंग्ला अनुवाद भी हुआ। ’’दर्द कहूं या पीड़ा’’, कहानी संकलन में लेखक ने काली बछिया के माध्यम से सम्पूर्ण जीवों के मानवीकरण का प्रयास किया है। पशु के सीने में भी दिल होता है, उसे भी दर्द होता है। वह भी इंसान की तरह ही समझने-बूझने की शक्ति रखता है। उसकी आवाज इंसान न समझता हो किन्तु इंसान के व्यवहार को मूक प्राणी बखूबी समझता है। एक मूक प्राणी में आवाज भरकर लेखक ने  कहानी को पूरा मार्मिक बना दिया। अंग्रेजी काव्य संग्रह ’’व्हेयर यू......’’, में कथाकार ने अपनी बहन के असामयिक निधन पर शोक प्रकट करते दाय नेम जैसी रचना का सृजन कर अपने मर्म को टटोलने का प्रयास किया है। ’’और इस तरह एक दिन......’’,  में कवि ने एक मजदूर की विवशता का सहृदयता से  प्रस्तुितकरण करते हुए लिखा है- मैं मजदूर हूँ, सभ्य समाज से कोसों दूर हूँ। अमीर-गरीब, उँच-नीच, जाति-धर्म, वर्ग, समुदाय से परे हटकर अध्यापक, कवि/ लेखक/ साहित्यकार डा0 (मो0) हनीफ ने अपनी समस्त रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास, विडंबना, कुरीति, प्रणय, विछोह, उदारता, विश्वास, विवशता, धोखा, मानसिक दोहन, आर्थिक तंगी, जीवन के कटु अनुभव, जानवरों के बरक्श इंसानी सोंच व समझदारी को बखूबी परिभाषित करने का प्रयास किया है। सूबे के कृषि एवं पशुपालन मंत्री मंत्री रणधीर सिंह द्वारा सम्मानित। तत्कालीन राज्यपाल डा0 सैय्यद अहमद द्वारा पीएचडी अवार्ड सहित विभिन्न सामाजिक व शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा अलग-अलग रुप से सम्मानित डाॅ (मो0) हनीफ राजनीति को बुरा नहीं मानते। उनका मत है बौद्धिक रुप से परिपक्व इंसान ही राजनीति में समाज, परिवार व देश के लिये कुछ विशेष कर सकता है। वे चाहते हैं एक राजनीतिज्ञ के रुप में क्षेत्र विशेष के लोगों की पूरी सेवा वे कर सकें। कई राजनीतिक दलों ने उक्त बाबत आमंत्रित भी किया है। शैक्षणिक वातावरण से इतर राजनीति में प्रवेश व एक राजनीतिज्ञ के रुप में उनकी महात्वाकांक्षाओं से आम नागरिकांे को कितना प्राप्त हो सकता है लाभ। 

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