सम्पादकीय : संवेदनहीन स्वास्थ्य व्यवस्था - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 13 अगस्त 2017

सम्पादकीय : संवेदनहीन स्वास्थ्य व्यवस्था

health-and-system
गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चों की मौत निश्चित रूप से दिल दहलाने वाली घटना है.यह सरासर पहली निगाह में घोर लापरवाही और लालफीताशाही का मामला ज्ञात होता है. जरा सोचिये उन मासूमों के माँ बाप परिवार के बारे में जिनकी दुनिया उजड़ गयी. है कोई व्यवस्था,कोई जाँच समिति ,उन जिंदगियों को वापस लौटाने की ?  लापरवाही का विकृत चेहरा है यह.लालफीता शाही का भयावह रूप है यह. गोरखपुर के डी एम् राजीव रौतेला के सिर्फ इतना कह देने से कि "ऑक्सीजन की कमी से मौतें नहीं हुयी बल्कि मौत की वजह दूसरी हैं ",जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती.बताईये क्या दूसरे कारण हैं?क्या ऑक्सीजन की कमी नहीं थी ?क्या लापरवाही नहीं हुयी ?प्रिंसिपल एवं डीन डॉ राजीव मिश्रा का बयान तो बिल्कुल हर मामले में रटे रटाये तोते की तरह है कि "अक्सीजन की आपूर्ति सामान्य हो गयी है और स्थिति नियंत्रण में है ". 30 से अधिक मौतों के बाद स्थिति नियंत्रण में है कहते हुए शर्म महसूस नहीं हुयी ? पहले स्थिति को सामान्य बनाने के लिए आपने क्या किया ,यह जानने का हक़ जनता को है,जाने गवां चुके बच्चों के माता पिता को है.



विडम्बना देखिये कि राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी. बयानबाज नुमाइंदों के स्क्रिप्ट अभी तक नहीं पहुंचे. विडम्बना यह भी कि राज्य के मुख्यमंत्री स्वयं 9 अगस्त को अस्पताल का निरीक्षण करने गए थे और मात्र दो दिन बाद ही इतनी बड़ी घटना घट गयी. क्या निरीक्षण किया था मुख्यमंत्री ने ?किन अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को निरीक्षण के दौरान जानकारी दी थी ?क्यों मुख्यमंत्री से इतनी बड़ी जानकारी छुपाई गयी ? आपूर्ति फर्म और ऑक्सीजन गैस पाइप लाइन संचालक ने दो दिन पहले सम्बंधित अधिकारियों को गैस खत्म होने और आपूर्ति रोकने की सूचना दी थी तो उस सूचना पर क्यों नहीं संज्ञान लिया गया ? आपूर्ति फर्म ने भुगतान बकाया होने की वजह से आपूर्ति रोकने की बात अगर कही थी तो वैकल्पिक व्यवस्था के लिए क्यों नहीं कदम उठाये गए ?ये सारे सवाल हैं जिनसे अस्पताल प्रबंधन,जिला प्रशासन और सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती.



विडम्बना तो यह भी है कि स्वास्थ्य को आज भी देश में अंतिम पायदान पर रखा जाता है तभी तो पिछले 70 वर्षों में बिजली पानी और सड़क के अलावा स्वास्थ्य कभी किसी पार्टी का चुनावी घोषणा नहीं बन सका. करोड़ों रुपये का बजट बनाने के बाद भी यदि देश में लापरवाही और गलत इलाज से मरीजों की मौत होती रहे तो इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है ?  जरुरत है स्वास्थ्य व्यवस्था को और अधिक जिम्मेदार बनाने की.




**विजय सिंह **
वरिष्ट पत्रकार 

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