महोबा 08अगस्त, बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व गौरवशाली वीरोचित परंपरा का संवाहक 835 वर्ष प्राचीन वीरभूमि महोबा का सुप्रसिद्ध कजली मेला (भुजरियों का मेला) आज से आरंभ हो गया है। इसके साथ ही रक्षाबंधन का पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया। इस मौके पर यहां भव्य शोभायात्रा निकाली गई जिसमें सुदूर क्षेत्रों से आकर सम्मिलित करीब तीन लाख के अपार जनसमूह ने यहां ऐतिहासिक कीरत सागर सरोवर में सामूहिक कजली विसर्जन की पुरातन परम्परा का निर्वहन किया। उत्तर भारत के सबसे प्राचीन और विशाल मेले के रूप में विख्यात महोबा के कजली मेले की परम्परागत शुरुआत यहां 1857 में प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अमर शहीदों के बलिदान के साक्षी हवेली दरवाजा मैदान से हुई। जिलाधिकारी अजय कुमार और पुलिस अधीक्षक अनीस अहमद अंसारी ने इस मौके पर कजली की शोभायात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। बैंड बाजो और प्राचीन वाद्य यंत्रों की मधुर स्वर लहरियों के बीच हाथी, घोड़े, ऊंट और कजली के पर्णपात्रो को सिर पर धारण किये सैकड़ो की संख्या में महिलाओं समेत ऐतिहासिक तथा धार्मिक परिवेश की अनगिनत झांकियो के साथ शोभा यात्रा देखने के लिये सड़क के दोनों ओर उमड़ी भारी भीड़ ने पुष्पवर्षा कर इसका करतल ध्वनि से स्वागत किया। इस बार मेले की 836 वीं वर्षगांठ पर कजली की शोभायात्रा में हाथी में सवार आल्हा, अश्वारूढ़ ऊदल,राजकुमारी चंद्रावल का डोला आदि की झांकियां लोगो के प्रमुख आकर्षण का केंद्र रही। मेले में अपार भीड़ के कारण शोभायात्रा को लगभग दो किलो मीटर के अपने निर्धारित मार्ग को पूरा करने में पांच घंटे से भी अधिक का समय लगा।
कीरत सागर तट सामूहिक कजली विसर्जन कार्यक्रम सम्पन्न होने के साथ ही यहां स्थित आल्हा परिषद ऐतिहासिक मंच में एक सप्ताह तक अनवरत रूप से चलने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी शुरुआत की गई। विशुद्ध ग्रामीण परिवेश में बुंदेली लोक कला संस्कृति का दिग्दर्शन कराने वाला कजली मेला महोबा के चंदेल साम्राज्य द्वारा 12वीं शताब्दी में हए भुजरियों के युद्ध मे मिली विजय के उत्सव की स्मृति में आयोजित किया जाता है। दिल्ली नरेश पृथ्वी राज चौहान ने तब यहाँ आक्रमण कर चंदेल शासक परमाल से अपनी बेटी चंद्रावल,लोहे को छुआने पर सोना बना देने वाली पारस पथरी आदि सौंपकर अधीनता स्वीकारने अथवा युद्ध करने का प्रस्ताव भेजा था। सन 1182 में सावन माह की पूर्णिमा के दिन एकाएक अपनी मातृभूमि की आन-बान और शान पर आए इस संकट का सामना करते हुए वीर सेनानायकों आल्हा ओर ऊदल ने अप्रतिम युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर चौहान सेना को बुरी तरह परास्त कर विजय प्राप्त की थी। पूर्णिमा का दिन तब युद्ध मे गुजरने के कारण महोबा में राखी का त्योहार नही मनाया जा सका था और कजली भी विसर्जित नही हो सकी थी। इसलिये इसके साथ ही महोबा समेत आसपास के क्षेत्रों में रक्षाबंधन का पर्व भी आज हर्ष और उल्लास से मनाया गया। कजली मेला आयोजक महोबा संरक्षण एवं विकास समिति के कार्यकारी अध्यक्ष अपर जिलाधिकारी आनंद कुमार ने बताया कि कीरत सागर तट पर अाठ अगस्त से शुरु होकर 12 अगस्त तक चलने वाले मेले को आकर्षक स्वरूप प्रदान करने के लिए विभिन्न खेलकूद प्रतियोगिताओ ओर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा अबकी दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय मेला व प्रदर्शनी भी आयोजित की गई है। मेले के मुक्ताकाशी मंच पर दिन में जिले के कृषि,उद्यान,समाज कल्याण आदि विभागों द्वारा गोष्ठियों में लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। जबकि संध्या कालीन कार्यक्रमो में यहां हर रोज विभिन्न विधाओं के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमो से मेलार्थियों का मनोरंजन करेंगे।
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