बिहार : माउंटेन मैन के परिवार फूस का घर में रहते हैं परिवार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 28 अगस्त 2017

बिहार : माउंटेन मैन के परिवार फूस का घर में रहते हैं परिवार

  • पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने गहलौर पर्वत के नीचे 600 मकान बनाने की मांग की

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अतरी। मगध प्रमंडल के जिला गया,। तीस किलोमीटर दूर एक गाँव है गहलौर (अतरी प्रखंड)। यहीं पर महादलिप मुसहर समुदाय के दशरथ मांझी का घर है। माउंटेन मैन के बाल बच्चे फूस की झोपड़ी में रहने को बाध्य हैं। जबकि क्षेत्र चिड़ियां खाना बन गया है।देश-विदेश-प्रदेश के लोग आते हैं और मोहब्बत का पैगाम लेकर जाते हैं। बिहार के गया से लगभग तीस किलोमीटर दूर एक गाँव है गहलौर (अतरी प्रखंड), पहाड़ी के किनारे किनारे जाती एक लम्बी वीरान सी सड़क, एक ओर से पूरी तरह पहाड़ी से घिरे होने के कारण सबसे नजदीकी शहर (वजीरगंज) जाने के लिए सत्तर-अस्सी किलोमीटर का लम्बा चक्कर, और तो और पीने का पानी भी लाने के लिए रोजाना पहाड़ी के ऊपर चढ़कर तीन किलोमीटर का कठिन पथरीला डगर। तो ये थी बिहार के उस सुदूर गाँव के वशिंदों की पीड़ा। लेकिन ग्रामीणों के लिए अभिशाप बन चुके इस पर्वत को झुकाने वाले युगपुरुष का प्रादुर्भाव भी शायद अब हो ही चुका था।


गहलौर घाटी में दशरथ मांझी पथ
एक दिन पर्वत पार करने के क्रम में ही एक महिला लड़खड़ा कर गिर जाती है और उसका मटका फूट जाता है। बुरी तरह जख्मी उसका इलाज सिर्फ इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि शहर की दूरी थी सत्तर किलोमीटर, यातायात के साधन भी उपलब्ध न थे। अगर पहाड़ नहीं होता तो दुरी सिर्फ सात किलोमीटर होती और उसकी जान बचायी जा सकती थी। राह देखता उसका पति, इस घटना से खिन्न हो जाता है, और विवश हो जाता है, एक क्रांतिकारी इतिहास का सृजन करने को। अपने हाड़-मांस के शरीर से उस कठोर पर्वत का सीना चीरने लगा।

बेहद प्यार करते थे फगुनिया से
दरअसल गाँव के लोगों को पानी लाने के लिए रोजाना पहाड़ी पार कर जाना पड़ता था, इसी क्रम में दशरथजी की पत्नी फगुनिया (फागुनी देवी) एक दिन गिरकर बुरी तरह जख्मी हो जाती है, और शहर दूर होने के कारण सही समय पर इलाज नहीं हो पाता। वो दम तोड़ देती है। अगर पहाड़ बाधा नहीं होता तो शहर की दूरी सत्तर के बजाय सात किलोमीटर ही होती और उसका इलाज हो सकता था। इस घटना ने दशरथ जी को झकझोर कर रख दिया। अंत में खुद ही पहाड़ काटने की ठान ली। लेकिन यह भी कोई आसान काम न था। रोजी-रोटी की भी समस्या थी।  छोटे-छोटे बच्चे थे। फिर भी जूनूनी होकर अपने भेड़-बकरियों को भी बेच डाला, और फावड़ा , हथौड़ा, छेनी खरीद लिया।

दिन-रात एक कर पहाड़ काटते-काटते
उनकी उम्र 24 से 46 हो गयी। तब जाकर सन 1982 के आस पास 365 फीट लम्बी, 25 फ़ीट गहरी और 30 फीट चौड़ी सड़क बनी। इतना ही नहीं, बाद में सरकार से सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि के लिए रेल की पटरियों के किनारे-किनारे पैदल ही चलकर  दिल्ली तक का रास्ता नाप लिया और वहां अपनी याचिका दी। बाद में उनके दुनिया से जाने के चार साल बाद 2011 में आख़िरकार सरकार ने इसकी सुध ली, और सड़क को और चौड़ा कर दोनों ओर जोड़ने वाली सड़क को आगे बढाया, जिसे दशरथ मांझी पथ का नाम दिया गया। कहते हैं की ताजमहल मुहब्बत की एक मिसाल है, क्योंकि उसे एक बादशाह ने बनवाया था। बादशाह के पास तमाम साधन और नौकर-चाकर थे। लेकिन उस बेचारे गरीब के पास क्या था, सिवाय अपने श्रम के, खून-पसीना बहाने के? अपनी मुहब्बत के लिए उस गरीब ने पर्वत को चिर कर रास्ता बना डाला। साथ ही यह मुहब्बत आगे चलकर गाँववालो के लिए भी वरदान बन गयी। अब आप मुहब्बत की असली मिसाल किसे कहेंगे? लेकिन आज दशरथ साहब ने गरीबों की मुहब्बत की लाज रख ली है। वे सदैव एक जननायक के तौर पर जाने जायेंगे, उनकी मिसाल युगों-युगों तक दी जाती रहेगी। गहलौर घाटी मुहब्बत के एक और ताज के रूप में जानी जाती रहेगी।


नीतीश ने ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के प्रयासों की सराहना की
मांझी ने 22 साल में छेनी और हथौड़े के मदद से पहाड़ काट कर 110 मीटर लंबा रास्ता बना दिया था। इससे गया के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर 15 किलोमीटर रह गई थी। वर्ष 2006 में दशरथ मांझी के साथ अपनी बातचीत को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘वह एक बार आए थे जब मैं ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम’ के बाद मीडिया से बात कर रहा था।’’ मुख्यमंत्री ने कहा मैंने जब उन्हें देखा तो अपनी कुर्सी छोड़ दी और उनसे मीडिया कर्मियों से अपनी दुर्लभ उपलब्धि के बारे में अनुभव साझा करने का आग्रह किया।

खास बाते
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पर्वत पुरुष स्व दशरथ मांझी की याद में राज्य सरकार ने दशरथ महोत्सव का आयोजन किया।इस महोत्सव के मौके पर गहलौर घाटी की तराई में दशरथ मांझी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया गया। प्रतिमा का अनावरण सूबे के सी एम नीतीश कुमार ने किया। इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि मैं अपने कार्यकाल में पहली बार गहलौर आया हूं। आज मुझे दशरथ मांझी के किये कार्यों को प्रत्यक्ष रुप से देखने का मौका मिला। पहले से केवल इनके कार्यों को जानते थे जिसे देखने का सपना था। सीएम ने कहा कि बाबा दशरथ मांझी मगध की धरती से हैं। पहले यह ज्ञान की भूमि थी लेकिन पर्वत पुरुष के संकल्प से यह कर्म की भूमि भी बन गई, निर्माण की भूमि बन गई। मगध ऐसा क्षेत्र है जहाँ ज्ञान, मोक्ष और निर्माण सभी कुछ का संगम है। इनके द्वारा घाटी कटकर बनाये गये सड़क की उंचाई कम किया जायगा ताकि दोनों तरफ़ से आवागमन सुगम हो सके। नीतीश कुमार ने कहा कि हमने इस स्थल को यादगार इसलिए बनाने की कोशिश की है कि हमारे साथ- साथ नई पीढ़ी भी बाबा के कार्यों से सीखे. यह समझे कि यदि हमारा संकल्प सही है तो दुनिया का कोई भी कठिन से कठिन कार्य आसानी से किया जा सकता है। वहीं उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि पर्वत पुरुष स्व. दशरथ मांझी सिर्फ गहलौर और गया के ही आदर्श नही है, बल्कि सम्पूर्ण देश और दुनिया के आदर्श हैं।  हमें इनके आदर्शों का पालन करना चाहिए। राज्य सरकार ने स्व. मांझी की प्रेरणा से एक छोटा सा संकल्प लिया है कि प्रदेश के हर गरीब के घर मे शौचालय हो। अगले वर्ष के नवम्बर तक कोई भी ऐसा घर नहीं होगा जिसमें शौचालय नही होगा। महोत्सव में बाबा दशरथ मांझी के हजारों अनुयायियों ने भाग लिया। क्षेत्र में इस महोत्सव को लेकर काफी उत्साह का माहौल है।  पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने गहलौर पहाड़ की तराई में 600 मकान बनाने के बाद सीएम नीतीश कुमार के 7 निश्चय को लागू करें। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता अजय मांझी ने पर्वत पुरूष दशरथ मांझी के झोपड़ी वाले घर को पक्का कर दें।

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