नयी दिल्ली, 08 अगस्त, उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय योग नीति बनाने और देश भर में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए योग आवश्यक करने संबंधी याचिका आज खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एम बी लोकुर की खंडपीठ ने दिल्ली कांग्रेस प्रवक्ता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और जे सी सेठ की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के मुद्दे पर सरकार ही फैसला कर सकती है। खंडपीठ ने कहा, “यह हमारा काम नहीं है कि स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिये, क्या नहीं। हम इस बारे में कुछ कहने के अधिकारी नहीं हैं। पीठ कैसे इस पर निर्देश दे सकती है।” याचिकाकर्ता ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी), केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि जीवन, शिक्षा और सामानता जैसे विभिन्न मौलिक अधिकारों के भावना को ध्यान में रखते हुए प्रथम कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए योग और स्वास्थ्य शिक्षा की मानक किताबें उपलब्ध कराये।” खंडपीठ ने कहा, “विद्यालयों में क्या पढ़ाया जाना चाहिये यह मौलिक अधिकार नहीं है।” केन्द्र सरकार ने इससे पहले न्यायालय के समक्ष कहा कि योग को स्कूलों में अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि यह मूल अधिकार का हिस्सा नहीं है। इसे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत जरूरी नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि वह यह तय नहीं कर सकता कि स्कूलों का पाठ्यक्रम क्या होना चाहिये और क्या नहीं। न्यायालय को इससे कोई लेना-देना नहीं है। श्री सेठ ने 2011 में न्यायालय में दायर अपनी याचिका में योग को देश के सभी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने का अनुरोध किया था। न्यायालय ने केन्द्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी करके इस पर जवाब मांगा था।
मंगलवार, 8 अगस्त 2017
आठवीं कक्षा तक योग को अनिवार्य बनाने की याचिका खारिज
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