करीब 14 वर्षों तक साथ-साथ राजनीति करने के बाद नीतीश कुमार और शरद यादव ने अपनी-अपनी राह बदल ली है। कभी लालू यादव के विरोध के नाम पर एक साथ आये शरद और नीतीश भाजपा के समर्थन के मुद्दे पर अलग-अगल हो गये। अब नीतीश की ‘आत्मा’ भाजपा में विलीन हो रही है तो शरद की ‘आत्मा‘ लालू के साथ महागठबंधन के रूप में कायम है। हालांकि अक्टूबर 2003 में शरद यादव व नीतीश कुमार की एकता की कीमत सुशील मोदी ने चुकायी थी, जब उन्हें विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। उनकी जगह पर उपेंद्र कुशवाहा को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था।
- 2003 में नीतीश की समता पार्टी का जदयू में हुआ था विलय
- सुशील मोदी को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी थी
बिहार में लालू यादव की राजनीति को ध्वस्त करने के लिए भाजपा के साथ शरद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान ने कई मोर्चे बनाये, लेकिन लालू की सत्ता कायम रही। 2000 में नीतीश कुमार को सत्ता मिली भी तो 10 दिन भी नहीं संभाल सके और कुर्सी को प्रणाम कर लिया। लेकिन कुर्सी की ‘गोड़ लगाई’ ने बिहार की राजनीति में लालू का विकल्प दे गया था। अक्टूबर 2003 में जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व वाली समता पार्टी और शरद यादव के नेतृत्व वाले जदयू के विलय का प्रस्ताव पारित हुआ है। विलय के लिए बैठक 29 अक्टूबर, 2003 को तत्कालिन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज के आवास पर हुई, जिसमें तत्कालिन रेलमंत्री नीतीश कुमार और उपभोक्ता मंत्री शरद यादव भी शामिल हुए। इस बैठक में समता पार्टी का जदयू में विलय के प्रस्ताव की मंजूरी मिली और पार्टी का नाम जदयू रखा गया। जदयू में समता पार्टी के अलावा दो अन्य पार्टियों का भी विलय हुआ। इस प्रकार लोकसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या 23 हो गयी। 12 समता पार्टी के, छह जदयू के, तीन आरजेडी (डी) और दो अन्य सदस्य को मिलाकर नवगठित जदयू के सांसदों की संख्या 23 हो गयी। इसके साथ ही जदयू लोकसभा में भाजपा के बाद एनडीए में शामिल सबसे बड़ी पार्टी बन गयी।
इसका साइट इफेक्ट बिहार की राजनीति पर पड़ा। समता पार्टी के जदयू में विलय के बाद भाजपा को मुख्य विरोधी दल से हटना पड़ा। सुशील कुमार मोदी को नेता प्रतिपक्ष का पद गंवाना पड़ा। विधान सभा में मुख्य विपक्षी जदयू हो गया और उपेंद्र कुशवाहा नेता प्रतिपक्ष बने। समता पार्टी और जदयू का विलय मूलत: शरद यादव व नीतीश कुमार की एकजुटता का प्रतीक बन गया। करीब 11 वर्षों तक एक मत होकर काम करते रहे। लेकिन लोकसभा चुनाव में जदयू की पराजय के बाद शरद यादव ने नीतीश कुमार को नैतिकता के आधार इस्तीफा देने को विवश कर दिया और पार्टी नेताओं के आग्रह के बाद भी नीतीश को तत्काल सत्ता में वापस आने पर रोक लगा दी। फिर नीतीश की जगह जीतनराम मांझी विधायक दल के नेता और मुख्यमंत्री बने। इसके बाद शरद यादव व नीतीश के बीच मनमुटाव बढ़ता गया। लेकिन पराजय का दंश झेल रहे नीतीश शरद यादव को चुनौती नहीं दे पा रहे थे। लेकिन लालू यादव के साथ सत्ता में लौटे नीतीश ने सबसे पहले शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने को विवश किया और अब अगल राह भी दिखा दी। दोनों के बीच पैदा हुई खाई की गहराई कल दिखेगी।
साभार : वीरेंद्र यादव
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