विशेष आलेख : खोदा पहाड़, निकली चुहिया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

विशेष आलेख : खोदा पहाड़, निकली चुहिया

मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी को लेकर किये गये तमाम दावों ( कालाधन जब्त होगा‚ महंगाई एवं भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी‚ नकली नोट बंद होंगे‚ नक्सलवाद व आतंकवाद पर प्रतिबंध लगेगा) की पोल आरबीआई की रिपोर्ट ने खोलकर रख दी है। आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी के बाद 1,000 रुपये के 1.4 प्रतिशत नोटों को छोड़कर इस मूल्य के बाकी सभी नोट बैंकों में पास वापस आ गए हैं। वर्ष 2016-17 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने कहा कि नवंबर में हुई नोटबंदी से पहले 1,000 रुपये के 632.6 करोड़ नोट चलन में थे, जिसमें से मात्र 8.9 करोड़ नोट प्रणाली में वापस नहीं आए। इस प्रकार 8,900 करोड़ रुपये केंद्रीय बैंक के पास वापस नहीं पहुंचे ! 


उल्लेखनीय है कि कालेधन पर लगाम लगाने की तथाकथित स्कीम के तहत केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 की मध्यरात्रि को 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी ! पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने की अनुमति दी गई थी और असाधारण जमा आयकर विभाग की जांच के दायरे में आ गई थी ! सरकार ने 500 रुपये के पुराने नोटों के स्थान पर इस मूल्य के नए नोट शुरू किए गए हैं पर 1,000 रुपये का कोई नया नोट जारी नहीं किया गया है। सरकार ने इस क्रम में 2,000 रुपये का एक नया नोट शुरू किया है ! रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने बताया कि 31 मार्च 2017 तक 500 रुपये के पुराने और नए नोट मिलाकर कुल 588.2 करोड़ नोट बाहर थे। 31 मार्च 2016 के अंत में चलन में 500 रुपये के नोटों की संख्या 1,570.7 करोड़ थी ! रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2016-17 में नोटों को प्रिंट करने की लागत दोगुना बढ़कर 7,965 करोड़ रुपये हो गई जो उससे पिछले वर्ष में 3,421 करोड़ रुपये थी ! 

दअसल में नोटबन्दी मोदी सरकार द्वारा सिर्फ अपने पूँजीपति मित्रों के एनपीए भरने के लिए देश की जनता पर थोपा गया निर्णय था ये आरबीआई की रिपोर्ट से साफ हो गया। जाहिर है कि भ्रष्टाचार या पैसे खिलाकर ब्लैक मनी को फिर दोबारा व्हाइट किया गया, जो मोदी सरकार की 'नोटबन्दी' पर एक जोरदार तमाचा है जिसकी आवाज़ वह सुनना नही चाहती। और रही बात डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने की वो भी कुछ ही इजाफे के साथ विफल ही रही है। सबसे बड़ा सवाल आज भी यह बना हुआ है कि जैसे पुराने नकली नोट छापे गए, वैसे ही नए नकली नोट छापना कोई बड़ा काम है क्या ? और हां, एक सवाल और है कि नए नोट की छपाई में लगा खर्च किससे वसूला जाएगा। बरहाल, नोटबंदी का रहस्य स्पष्ट हो गया है। जनता की उम्मीदो पर सरकार ने पानी फेर दिया है। रात-दिन भूखे-प्यासे बैंक की कतार में खडे रहे लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड हुआ है। सरकार ने खुद को अगल दिखाने के लिए बिना सोचे-समझे इतना बडा निर्णय लिया। जिसका परिणाम जनता को भुगतना पड रहा है। 




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- देवेन्द्रराज सुथार
जालोर, राजस्थान। 
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