6 सितम्बर बुधवार पूर्णिमा से शुरू हो जायेगा पितरो का आगमन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

6 सितम्बर बुधवार पूर्णिमा से शुरू हो जायेगा पितरो का आगमन

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भोपाल। पितरो के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्धो की शुरूआत पूर्णिमा से शुरू हो जायेगी। 6 सितम्बर बुधवार से 16 दिनों के महालय व्रत शुरू हो जायेगे। इसी दिन प्रतिपदा श्राद्ध, श्राद्ध पक्ष का प्रथम दिन होगा, इस दिन से दर्पण आदि कार्य प्रारंभ हो जायेगे। इस माहलय व्रत के प्रधान देवता भगवान विष्णु एवं प्रतिनिधि देवता भगवान सूर्य माने गये है। पितृ संज्ञक सूर्य इस व्रत के आरंभ से ही अपनी सौराशि सिंह में रहेगें। जिससे इस बार के पितरों का आगमन एवं गमन दोनों शुभताकरी है। बुधवार से प्रारंभ होकर बुधवार को ही पितृ मोक्ष आमावस्या के दिन तारीख 20 को पितरो की विदाई होगी। यह व्रत पितरों की तृप्ति हेतु किया जाता है। पुरखो को प्रसन्न करने हेतु सूर्य को जल देना पुण्य प्राप्त कराता है। तिथि के दिन ब्राह्मण अभ्यागत एवं पुरोहितों को भोजन प्रसादी कराने से पितरो को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पंचप्राणियों में गाय को ग्रास देने का विशेष महत्व है। वहीं जलचर में मछलियों को भोजन, फलचर में स्वान को भोजन एवं नवचर में कौएॅ को भोजन कराने से पुरखो को तृप्ति प्राप्त होती है। तिथि में चीटी को मिष्ठान, गौ दान, शैया दान, अन्न दान, वस्त्र दान के साथ पंचपात्रों का दान करने से पुण्य के साथ हमारे पूर्वज प्रसन्न होते है। इस व्रत को करने के लिए वृति को पूर्व से ही श्राद्ध तिथि ज्ञात कर लेना चाहिए, तिथि का अभिप्राय उस दिन से होता है जिस दिन को उन पितरों का दाह संस्कार किया जाता है। उस तिथि को प्रातः ब्रह्मः मुहुर्त में व्रत का संकल्प लेकर पितरों का आवाहन करना चाहिए, तत्पश्चात् सरोबर आदि में उनके निमित तर्पण करना चाहिए, पश्चात् घर में कुलवधु के द्वारा बनाये गये पकवानों का भोग पितरों के निमित लगाना चाहिए। विधि-विधान से यह कार्य पूर्ण होने पर धन-धान्य, यश कृति के साथ वंश वृद्धि का का वरदान पूर्वजों द्वारा प्राप्त होता है। इस बार के श्राद्धपक्ष में एक दिन ही दो तिथियों के मिलने से तर्पण-अर्चण करने का सौभाग्य 15 दिन ही प्राप्त हो रहा है। इस बार के महालय व्रत 6 सितम्बर से शुरू होकर 20 सितम्बर तक रहेंगे। पितृ मोक्ष आमावस्या तारीख 20 को हमारे पूर्वज पृथ्वी से विदा हो जायेगे। मान्यता है कि प्रतिवर्ष सिर्फ एक पखवाड़े के लिए कुंवार कृष्ण पक्ष में भी पूर्वज पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में उपस्थित रहते है। इस कारण इन दिनों में किसी भी प्राणि को सताना एवं अनादर नहीं करना चाहिए। पितृमोक्ष आमावस्या के दिन सभी ज्ञात अज्ञात पितरो का तर्पण किया जाता है। यह आमावस्या पितरों की विदाई बेला होती है। ऐसे समय पर हमें थोड़ा बहुत पितरों के निमित श्राद्ध करने से बहुत कुछ प्राप्त होता है। अतः हम सभी को पितरों के प्रसान्नात पूर्वजो का आवहान पूजन करना चाहिए। ऊॅं पितृ देवायः नमः का उच्चारण कर भी हम सभी प्रकार का कर्मकाण्ड स्वतः ही पूर्ण कर सकते है।

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