मधुबनी : कमला दित्य सूर्य मंदिर पर्यटन स्थलो की सूची में अब तक शामिल नही - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

मधुबनी : कमला दित्य सूर्य मंदिर पर्यटन स्थलो की सूची में अब तक शामिल नही

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अंधराठाढी/मधुबनी (मोo आलम अंसारी) अंधराठाढी। इतिहास प्रसिद्ध कमलादित्य स्थान के गंगजला नदी में कभी इलाके के लोग छठ पूजा मनाने पहुचते थे . नगी के रुघन होने के करण तीन गाँव के लोग छठ पूजा मनाते है . गंगजला का सम्बन्ध प्राचीन काल से है . मान्यता है की भगवान कृष्ण पुत्र शम्ब द्वारा पूजित यह स्थल कमलार्क है . जिसका नाम वर्ष 1901 के सर्वे में कमलादान स्थान है . फ़िलहाल कमलादित्य के नाम से प्रचलित है . कमला दित्य स्थान यहॉ के प्राचीनतम एतिहासिक स्थलो में शुमार है। प्रखण्ड मुख्यालय से महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। कर्णाट बंशीय राजा नान्यदेव के महामंत्री श्रीधरठक्कुर ने यहॉ सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। किमबंदती है कि भगबान कृष्ण व जामबंती पुत्र शाम्ब जव अपने पिता श्रीकृष्ण के ही कोप भाजन बन गये थे। तव नारद जी ने उन्हे मुक्ति का यह मार्ग बताया था । बारह भिन्न भिन्न राशि में भिन्न भिन्न जगहो पर भगवान सूर्य के अर्घ देने से पुनः पूर्व स्वरूप मिल सकता है। कृष्ण पुत्र शाम्ब द्वारा पूजित स्थलो में यह स्थान भी है।  कालान्तर में राजा महराजाओ ने उक्त स्थलो पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया । कोणार्क,पुण्डयार्क, अग्नियार्क, वेदार्क , कमलार्क ,सहित कुल बारह है। शास्त्रो के मुताविक मिथिला में छः जगह और मिथिला से बाहर छः जगह प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। कमलादित्य स्थान के सूर्य मंदिर  सूर्य सर्किट का अंग हैं । आज भी इस स्थान के चारो ओर विशाल तालाव होने का प्रमाण मिलता है। यहॉ के बृद्धो का कहना है कि गंगजला नामके तालाव में पहले सूर्य अर्घ देने की प्रथा प्रचलित थी।अर्घ में सरसो के भूजे हुए साग आदि उसका प्रसाद हुआ करता था।  यह भी चर्चा है कि उक्त गंगजला तालाव में अष्टदल कमल खिला करते थे। गंगजला नदी आज भी विद्यमान है जो कमला दित्य सूर्य मंदिर से एक किलो मीटर पूर्व में बहती है . जहाँ कई गाँवो के छठ


ब्रतियो द्वारा छठ पूजा की जाती है .

अंधराठाढ़ी कमला दित्य सूर्य मंदिर पर्यटन स्थलो की सूची में  अब तक शामिल नही .
अंधराठाढीकमला दित्य सूर्य मंदिर पर्यटन स्थलो की सूची में अब तक शामिल नही करना यहॉ की लोगो की पुरानी मांग है। कई बार इसकी जॉच पडताल भी की गयी ।प्रतिवेदन सरकार तक गया । परन्तु अवतक पर्यटक स्थल के रूप में घोषित नहीं हो पाया है। ग्रामीणो के द्वारा नये मंदिर के निर्माण के दौरान पुराने मंदिर की नीव में एक समाधि स्थल मिला था। समाधि स्थल के उपर एक शिलापट्ट था । उस पर मगरध्वज योगी का नाम अंकित है। शिलापट्ट के नीचे तपस्वी योगी का नरकंकाल भी मिला था। इसको मिट्टी के बरतन में समेट कर नवनिर्मित मंदिर में प्रतिमा पाद पीठ के नीचे गाड दिया गया । यह भी चर्चा है कि कमलादित्य स्थान में एक भोजपत्र का पेड हुआ करता था। प्राचीन काल में भोजपत्र पर लिखने की प्रथा थी। कमलादित्य स्थान में डाकनी माई का भी स्थाल प्राचीन काल से ही है।मध्यरात्रि में तेज लौ लेकर यदा कदा डाकनी माई के निकलने की भी चर्चा है। यहॉ तंत्र साधना पी रहने का भी साक्ष्य मिलता है। इस स्थान की यह भी खासियत है कि इसके चारो दिशा के कोण में सामान दूरी पर मदनेश्वर स्थान, मुक्तेश्वर स्थान ,चदेश्वर स्थान , हुलेश्वर स्थान नाम के चार प्रसिद्ध शिव मंदीर  है। इतिहासिक साक्ष्य है कि कमलादित्य स्थान के नाम से तकरीवन 22एकड जमीन थी।अतिक्रमण और जमीन कुछ लोगो द्वारा खरीदने के कारण कमलादित्य स्थान फिलहाल कुछ कट्ठो में सिमट कर रह गया है।कमलादित्य स्थान पहुॅच पथ का अबतक काली करण नहीं हो पाया हैं । पूर्व सांसद प्रो रामदेव भंडारी के स्थानीय विकास एच्छिक कोष से आधाअधुरा खरंजाकरण हुआ था। इसके बादतत्कालीन विधायक नीतीश मिश्रा ने एक यात्री सेड का निर्माण कराया । पंचायत की ओर से सोलर लाईट , चापाकल आदि की यवस्था की गयी है। यहॉ बासन्तिक दूर्गा पूजा होती है और मेला लगता है। 

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