नोटबंदी : जनता में पास तो कांग्रेस को चुभन क्यों - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 नवंबर 2017

नोटबंदी : जनता में पास तो कांग्रेस को चुभन क्यों

आजादी के बाद के सबसे बड़े आर्थिक सुधारों में से एक नोटबंदी का एक साल पूरा होने पर कांग्रेस जहां ‘काला दिवस‘ के रुप में याद किया, वहीं बीजेपी इसे ‘सफलता का उत्सव‘ के रुप में मनाया। बड़ा सवाल तो यही है कि क्या सियासी फायदे के लिए नोटबंदी पर सियासत जायज है? जबकि देश की सबसे बड़ी अदालत ‘जनता‘ ने यूपी चुनाव में एनडीए को नोटबंदी मसले पर प्रचंड बहुमत देकर अपना समर्थन दे चुकी हैं। मतलब साफ है अगर बीजेपी दावा कर रही है कि नोटबंदी पर यूपी जीते, अब गुजरात व हिमांचल भी जीतेंगे, तो कहीं न कहीं सच्चाई है, क्योंकि गुजरात की जनता में किए गए सर्वे की रिपोर्ट भी कुछ ऐसा ही बया कर रहे है 
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फिरहाल, नोटबंदी के एक साल बाद कहा जा सकता है कि इसके दीर्घकालीन परिणाम होंगे। एक साल के अल्पकाल में इसके असर की गहराई नापना ठीक नहीं हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट को मानें तो मार्च 2017 से पूर्व तक हमारे देश में रिश्वतखोरी की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई। नोटबंदी के फैसले का इस पर असर देखने को मिल रहा है। रिश्वतखोरी के लिए नगद में लेन-देन होता रहा है। लेकिन अब कैशलेस की चलन से इस पर लगाम लगने की उम्मींद हैं। देखा जाएं तो जितने नोट फैसले के कारण चलन से बाहर हुए, उनका 99 फीसदी हिस्सा नये नोटों की शक्ल में मुद्रा प्रवाह में आ चुका है। खासकर नोटबंदी के बाद आयकर विभाग ने जिस तरह तकरीबन सवा लाख कारोबारियों को नोटिस जारी की है, उससे साफ है कि टैक्स चोरी की रैकेट का भी खुलासा होने की पूरी संभावना हैं। मतलब साफ है कांग्रेस द्वारा लगातार यह कहा जाना कि नोटबंदी के कारण आर्थिक विकास दर घट गया, कारोबार ठंडा पड़ गया, असंगठित क्षेत्र नकदी की किल्लत के कारण अपेक्षित परिमाण में उत्पादन-विपणन नहीं कर सका और रोजगार के अवसर कम हुए- ये सब तो बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन यह सोलहों आना सच है कि नोटबंदी के मसले को लेकर आम गरीब जनमानस गदगद है। यूपी चुनाव में प्रचंड बहुमत इसका जीता जागता सबूत तो है ही, लाख झंझावतों के बाद भी पूरे देश में कहीं भी हंगामा, तोड़फोड़ व विरोध भी नहीं हुआ। कहा जा सकता है अगर नोटबंदी को जनता ने पास कर दिया है तो कांग्रेस को क्यों चुभन हो रही है? जबकि नीति आयोग जैसी संस्थाओं की ओर से भी कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती के लक्षण स्थायी नहीं हैं। इसके दूरगामी प्रभाव सकारात्मक रुप से देखने को मिलेंगे। 

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हो जो भी, सच तो यही है कि नोटबंदी के बाद पुराने नोट जमा करवाने में लोगों को भले ही परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन सरकार के इस फैसले के कारण जाली नोटों के कारोबार को झटका लगा है। नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट और ऑनलाइन खरीदारी का चलन बढ़ा है। आरबीआई के मुताबिक नवंबर, 2016 में करीब 7 करोड़ लोगों ने डिजिटल ट्रांजेक्शन किया था, तो वहीं 2017 में साढ़े 8 करोड़ लोगों ने इस्तेमाल किया। प्रत्यक्ष कर का दायरा बढ़ा है। आयकर के मुताबिक पहले के सापेक्ष 17 फीसदी टैक्सपियर्स बढ़े है। 25 फीसदी ई-रिटर्न फाइल बढ़ी हैं। जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों में तथा छत्तीागढ़ के नक्सल हिंसा में काफी कमी आई हैं। 15,497 करोड़ की ब्लैकमनी का पता चला, जो 2015-16 से 18 फीसदी ज्यादा है। मध्यम और दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। बैंकों की ब्याज दर में एक फीसदी की कमी आई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अब भी नकद पर ही निर्भर है। यह अलग बात है कि नोटबंदी का सर्राफा कारोबार पर व्यापारिक रूप से सीधा फायदा नजर नहीं आया। अभी तक इस कारोबार में अधिक लेनदेन नकद में ही हो रहे हैं। आम तौर पर जो भी डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं, तो वे बड़े ज्वेलरी शॉप में ही हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार 10 से 20 फीसदी कारोबार ही कैशलेस हो पा रहा है। अतः इसका सीधा फायदा नहीं है। हां, दवा कारोबार से लेकर उद्योग-धंधों पर नोटबंदी का कुछ माह तक असर रहा था, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था हो जाने के बाद सबकुछ सामान्य हो गया था। अब लोग इससे पूरी तरह उबर चुके हैं। पहले 75 फीसदी थोक कारोबार नकद होता था, लेकिन अब 75 फीसदी कारोबार चेक या आटीजीएस से हो रहा है। अब रिटेलर भी आरटीजीएस, चेक या डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं। खास यह है कि नोटबंदी की वजह से नकली नोट व उससे संबंधित अवैध कारोबार भी खत्म हो गये। लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। अब भी बड़े पैमाने पर सार्वजननिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार हो रहे है और इसमें एनडीए के पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं की ही मौन स्वीकृति हैं। 

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भ्रष्टाचार के उजागर मामले 
भारत में भ्रष्टाचार गंभीर समस्या रही है। नेता से लेकर नौकरशाह तक इसमें लिप्त पाएं जाते रहे हैं। राज्यसभा में 10 अगस्त, 2017 को एक सवाल के जवाब में बताया गया कि भष्ट्राचार रोकथाम कानून के तहत हर दिन 11 लोगों पर मामले दर्ज होते हैं। इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बीते करीब ढाई साल में भ्रष्टाचार के 1629 मामले दर्ज हुए, जिसमें कुल 9960 लोग शामिल हैं। इनमें 6023 या 60 फीसदी लोग सामान्य नागरिक है। जबकि 3896 या 39 फीसदी सरकारी अधिकारी है। 41 राजनेता इन मामलों में शामिल हैं। 30 जून 2017 तक 6414 भ्रष्टाचार के मामले लंबित थे, जिनमें से 35,770, लोग शामिल थे। इसमें 18780 लोग आम नागरिक, 16875 सरकारी अधिकारी और 115 नेता थे। 2015 में पेंडिंग मामलों की बात करें तो 6663 केस पेंडिंग थे इस साल 30 जून तक 6364 मामले पेंडिंग रहे। रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में अदालत द्वारा दोषी ठहराएं जाने का प्रतिशत 2015 के मुकाबले 16 फीसदी अधिक था। पिछले साल 1503 मामले आरोपी के दोषी ठहराए जाने पर खत्म हुए। वहीं इस साल शुरुवाती 6 महीने तक 199 केस में आरोपी को दोषी ठहराया गया। देखा जाएं तो सरकारी अधिकारी ज्यादा भ्रष्टचार में लिप्त है। 20947 शिकायतों में 1740 मामलों का निपटारा हुआ। सिर्फ 96 शिकायतें सीवीसी के अफसरों के पास जांच के लिए भेजा गया है। नोटबंदी के बाद कथित गड़बड़िया करने के आरोप में आरबीआई समेत 460 बैक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गयी है। 

जीएसटी बेहतर 
नोटबंदी की अगली कड़ी जीएसटी है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा। लेकिन, इतना जरूर कहा जा सकता है कि जीएसटी एक अच्छा फैसला है। सरकार को चाहिए कि अब जीएसटी को कम से कम सही तरीके से लागू करने की कोशिश करे, क्योंकि यह भी एक अच्छा फैसला है और इससे देश को बहुत फायदा होने वाला है। यहां एक अच्छी बात देखने को मिल रही है। वह यह कि नोटबंदी की हड़बड़ी जैसी गलती अब जीएसटी में दिखायी नहीं दे रही है और सरकार लगातार इस मामले में तकनीकी रूप से विकसित कर रही है। कड़े फैसले लेने का यह भी एक फायदा होता है कि उसकी सीख से आगे की योजनाओं के क्रियान्वयन में आसानी होती है। 

नफा-नुकसान 
जहां तक नोटबंदी के नफा नुकसान का सवाल है तो यह सही है कि जितने नोट फैसले के कारण चलन से बाहर हुए, उनका 99 फीसदी हिस्सा नये नोटों की शक्ल में मुद्रा प्रवाह में आ चुका है। या यूं कहें 8 नवंबर, 2016 को जितनी मुद्रा चलन में थी, रिर्जव बैंके में करीब 86 फीसदी 500 व 1000 रुपये के नोट के रुप में थी। जिसमें आरबीआई 97 फीसदी जमा करा चुकी है। जीडीपी दो साल पूर्व 11 फीसदी के सापेक्ष घटकर पौने छह फीसदी पर जरुर पहुंच गयी है, लेकिन यह स्थायी नहीं हैं। आगे सुधरने के पूरे आसार है। नकली नोटों के पकड़ने की बात की जाय तो अब भी सरकार बहुत सफल नजर नहीं आ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक 1000 रुपये के जितने बंद नोट वापस बैंकों में लौटे है उसमें सिर्फ 07 फीसदी ही नकली नोट रहे, जबकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अनुसार 2015 तक 400 करोड़ रुपये नकली नोट के रुप में चलन में थे। जहां तक आर्थिक दर में गिरावट का सवाल है तो साल 1991-92 में जब त्तकालीन वित्तमंत्री और पीएम बने मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की शुरुवात की थी, तब भी विकास दर में गिरावट आई थी। जब भी किसी देश में आर्थिक सुधार लाएं गए हैं वहां विकास दर में गिरावट आई हैं। भारत कोई अपवाद नहीं हैं। आज भारत की अर्थ व्यवस्था की विकास दर में जो गिरावट आई है वह अल्पकालिक ही कहा जायेगा। यह भी कोई बहुत कम नहीं हो गयी हैं।    

नोटबंदी के फायदे 
पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा, नोटबंदी देश के सवा सौ करोड़ लोगों द्वारा कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी गई निर्णयक लड़ाई थी, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। उन्होंने लोगों से एक सर्वे में हिस्सा लेने का आग्रह किया जो नरेन्द्र मोदी एप पर उपलब्ध है, साथ ही कालाधन एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने के सरकार के प्रयासों के बारे में भी अपनी राय बतायें। नोटबंदी के बाद सवा दो लाख ऐसी कंपनियों को बंद कर दिया गया, जिसमें दो साल से कोई भी कामकाज नहीं किया गया था। साथ ही तीन लाख डायरेक्टरों को अयोग्य घोषित किया गया। सरकार के मुताबिक नोटबंदी के बाद करीब तीन लाख कंपनियों में से 5 हजार कंपनियों के बैंक खातों में 4000 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ। नोटबंदी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोग अब ज्यादा से ज्यादा डिजिटल मनी की तरफ जाने लगे हैं। इससे पहले लोग इस तरफ उतना ध्यान नहीं देते थे, लेकिन हमारा देश अब डिजिटल इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहा है। यह कैशलेस प्रक्रिया भ्रष्टाचार रोकने में काफी मददगार होगा। टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ेगी, जिससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा, जिसका इस्तेमाल जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जायेगा। जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी अब अनियमितताएं कम होंगी, क्योंकि अब सारा हिसाब-किताब डिजिटल तरीके से होगा। इसमें अभी समय तो लगेगा ही, इसलिए पहले जरूरी है कि हम लोग डिजिटल इकोनॉमी के प्रावधानों को समझने की कोशिश करें।

कितना कैशलेस हुआ इंडिया?
बीते साल अक्टूबर से लेकर अगस्त तक के आंकडों के मुताबिक क्रेडिट व डेबिट कार्ड से दुकानों पर खरीदारी 51 हजार करोड़ से 71 हजार करोड़ है। जबकि मोबाइल वॉलेट से लेन-देन करीब-करीब दुगना हो गया। लेकिन बाजार में अब भी 95 फीसदी लेन-देन नकद में होता है। रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि चलन में नोट की तादाद बढ़ी ही है। मसलन बीते साल 14 अक्टूबर को बाजार में कुल 1,23,93,150 करोड़ रुपये चलन में थे जबकि इस साल 13 अक्टूबर को ये रकम 1,31,81,190 करोड़ रुपये रही। 

क्या कहते हैं आंकड़े
वैसे तो दर्जन भर से भी ज्यादा डिजिटल माध्यम बाजार में मौजूद है, लेकिन उनमे कार्ड, मोबाइल वॉलेट, भीम या यूपीआई जैसे माध्यम खासे इस्तेमाल में लाए जाते हैं। कार्ड को ही बात करें तो क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिए प्वाइंट ऑफ सेल्स यानी पीओएस मशीन के जरिए बीते साल नोटबंदी के ठीक पहले यानी अक्टूबर में करीब 51803 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ। ये रकम दिसंबर में 89180 करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंची, लेकिन उसके बाद उसमें गिरावट हुई और अगस्त में ये रकम 71712 करोड़ रुपये पर आ गयी। भीम, यूपीआई व यूएसएसडी जैसे माध्मयों को मिला दे तो यहां दिसबंर में कुल लेन-देन महज 101 करोड़ रुपये का था जो अगस्त में 4156 करोड़ रुपये पर पहुंचा। हालांकि मोबाइल वॉलेट के मामले में स्थिति कार्ड की ही तरह रही। यहां बीते साल अक्टूबर में करीब 3385 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था जो जनवरी तक आते-आते 8385 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि अगस्त में ये आंकड़ा 7762 करोड़ रुपये का रहा। 

डिजिटल ट्रांजेक्शन की दिक्कतें
डिजिटल माध्यमो के लेन-देन में कई तरह की चुनौतियां है मसलन कार्ड के भुगतान पर 0.25 फीसदी से तीन फीसदी या उससे ज्यादा का ट्रांजैक्शन चार्ज, कार्ड के इस्तेमाल पर क्लोनिंग का खतरा, और देश के कई इलाकों में कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी है। 

नोटबंदी के बाद 170 आतंकी ढेर
नोटबंदी के बाद सुरक्षा बलों को कश्मीर में आतंकियों को बड़ी संख्या में मार गिराने में सफलता मिली है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने इस वर्ष करीब 170 आतंकवादियों को मार गिराया और इनमें अधिकतर घाटी में सक्रिय शीर्ष कमांडर थे। यह जानकारी राज्य के पुलिस महानिदेशक एस पी वैद्य ने दी। मारे गए आतंकियों में मसूद अजहर का भांजा तल्हा राशिद, जैश-ए-मोहम्मद का महमूद भाई, लश्कर-ए-तैयबा का अबु दुजाना और वसीम शाह के साथ ही बुरहान वानी का उत्तराधिकारी हिज्बुल मुजाहिदीन का सज्जार अहमद भट शामिल है। उनके मुताबिक इस वर्ष केवल कश्मीर में ही करीब 170 आतंकी मारे गए। चार-पांच शीर्ष कमांडरों के अलावा अन्य सभी शीर्ष आतंकियों को मार गिराया गया है। 

कालाधन पर खुलासा 
‘ऑफशोर लीक्स’ के खुलासे के तहत अब से चार साल पहले टैक्स-हैवन में गुपचुप धन रखने के एक बड़े मामले में 600 से ज्यादा भारतीयों के नाम सामने आये। फिर 1100 से ज्यादा भारतीयों के नाम ‘स्विस लीक्स’ के नाम से हुए खुलासे में सामने आये। इन खुलासों को लेकर कोई निष्कर्ष सामने आता, इसके पहले ही ‘पनामा पेपर्स‘ के नाम से देश के विदेशी बैंक या कंपनी में रकम रखने वाले लोगों की एक सूची सामने आ गयी। और अब इसी टेक पर एक खुलासा ‘पैराडाइज लीक्स‘ के नाम से हुआ है। इसमें एप्पलबाइ नाम के लॉ फर्म से जुटाये गये आंकड़ों के विश्लेषण के बाद टैक्स-हैवेन में धन रखनेवाले 700 से ज्यादा भारतीयों के नाम सामने आये हैं। इसमें भी राजनीति से लेकर उद्योग जगत और फिल्म इंडस्ट्री की नामी-गिरामी हस्तियों के नाम हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या सरकारी स्तर पर इसका कोई संज्ञान लिया जायेगा? साथ ही, एक मसला भ्रष्टाचार की पहचान, उसके स्वभाव और होने वाली प्रतिक्रिया से भी जुड़ा है। उदाहरण के तौर पर, अपने देश में छोटा-मोटा, टूटपूंजिया किस्म का भ्रष्टाचार सबकी नजर में होता है। जैसे मिड-डे मील स्कीम या मनरेगा में होने वाला भ्रष्टाचार। इसकी शासन-प्रशासन में शिकायत की जाती है, मामला अदालतों तक भी पहुंचता है। भ्रष्टाचार बड़ा लगे, जैसे कि कोल-ब्लॉक का आवंटन और स्पेक्ट्रम की नीलामी, तो नागरिक संगठन, विपक्षी दल और मीडिया के साझे प्रयास से वह राष्ट्रीय फलक पर चिंता का विषय बनता है। टैक्स-हैवेन के गुप्त खातों का मसला अलग है. वह लोगों की नजर में आता है, तब भी जांच की पहल नहीं होती, क्योंकि कानूनी नुक्ते उलझे होते हैं। एक तरफ से कोई उसे भ्रष्टाचार कह सकता है, तो दूसरी तरफ से सफाई दी जा सकती है कि किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार समाधान के लिए निष्पक्ष जांच के प्रयास करेगी और इसके लिए जरूरी अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए तत्पर होगी। 

पैराडाइज खुलासे की निष्पक्ष जांच हो 
पनामा पेपर्स की तरह ही पैराडाइज पेपर्स में भी ढेर सारी फर्जी कंपनियों और फर्मों के बारे में खुलासा हुआ है, जो बड़े-बड़े लोगों के पैसों को विदेशी बैंकों में भेजने में मदद करते हैं। इन कंपनियों या फर्मों की शरण में दो तरह के लोग जाते हैं। एक तो वे, जो टैक्स की चोरी करते हैं और उन पैसों को इन फर्जी कंपनियों के जरिये विदेशी कंपनियों में या बैंकों में जमा करवा देते हैं। दूसरे वे लोग होते हैं, जो बनाये गये नाजायज पैसों को सेल कंपनियों के जरिये छुपाकर वापस लाते हैं। इन सेल कंपनियों को चलाने वाले वहीं के स्थानीय लोग होते हैं, मसलन वकील, सीए आदि। इस पूरी प्रक्रिया में कालेधन का एक बड़ा भ्रष्टाचार स्पष्ट है। भ्रष्टाचार दो तरह का होता है। पहला आपराधिक भ्रष्टाचार (क्रिमिनल करप्शन) और दूसरा नागरिक भ्रष्टाचार (सिविल करप्शन)। अफसोस इस बात का है कि जिन लोगों को टैक्स में छूट मिली होती है, वे भी ऐसे कंपनियों के जरिये अपने पैसों को छुपाते हैं। भारत के लिए तो यह खुलास बहुत मायने रखता है, क्योंकि यहां बहुत से लोग स्विस बैंक में पैसे रखते हैं। अगर सरकार इस बात की मंशा रखती है कि देश में भ्रष्टाचार पैदा ही न होने पाये, तो सरकार को चाहिए कि ऐसे मामले आने के बाद वह तुरंत ही कार्रवाई, और साथ नाजायन पैसों का छुपे तरीके से आवागमन को रोकने का सिस्टम विकसित कर भ्रष्टाचार को न बढ़ने दे। पैराडाइज पेपर्स के खुलासे और कालाधन रखने वालों को लेकर दो बातें महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि ऐसे मामलों में जांच के बाद फौरन दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए कि सच्चाई क्या है, ताकि इससे न सिर्फ निर्दोष लोगों को बदनामी से बचाया जाये, बल्कि टैक्स चोरी से सरकार के राजस्व पर पड़ने वाले असर को भी कम किया जाये। दूसरी बात यह है कि देश के आम लोगों के मन में यह बात बैठी हुई कि बड़े लोग चाहे कुछ भी कर लें, सख्त कानून भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता, या जिनके पास पैसा होता है, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है, वगैरह। अगर फौरन जांच के बाद सच्चाई बाहर आ जाये और दोषियों को सजा मिल जाये, तो इससे आम जन के मन में सरकारों और जांच एजेंसियों के प्रति विश्वास बढ़ेगा। इससे एक बड़ा संदेश जायेगा कि चाहे कोई कितना भी बड़ा हो, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। कालाधन के दो पहलू हैं। एक पहलू यह है कि जो कालाधन बन गया है, उसको कैसे छिपाकर रखा जाये। इसके लिए कई हथकंडे इस्तेमाल किये जाते हैं, रियल स्टेट में लगाये जाते हैं या फिर शेल कंपनियों के जरिये बाहर भेजे जाते हैं। यह सिर्फ भारत की बात नहीं है, बल्कि दुनिया के हर देश में ऐसा होता है। दूसरा पहलू है, सरकार को यह मालूम है कि किस तरह से परमिशन राज के चलते उद्योगपतियों और नौकरशाहों की सांठगांठ से कालेधन का निर्माण होता है। इन दोनों तरीकों पर सरकार जब तक रोक नहीं लगायेगी, तब तक कालेधन का पर अंकुश मुश्किल है। सरकार के लिए यह एक अच्छा मौका है कि पैराडाइज पेपर्स की जांच कराकर भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही जंग को जीतने में एक पड़ाव पार करे। कालेधन के खिलाफ सख्त कदम नोटबंदी को एक साल होने से ठीक पहले पैराडाइज पेपर्स का खुलासे का संकेत क्या है, यह आने वाला वक्त बतायेगा। 

हवाला, पत्थरबाजी, नक्सल को झटका 
जहां तक काला धन, हवाला व नक्सल पर रोक की बात है तो यह सही है कि नोटबंदी के बाद सरकार ने तीस हजार करोड़ से ज्यादा के काले धन का पता लगाया है। आगे भी जांच एजेंसियां काम में लगी हुई हैं। हवाला कारोबार को जबरदस्त झटका लगा है। बेनानी संपत्ति कानून पर अमल से रियल स्टेट में काले धन का इस्तेमाल कम हुआ है। कालेधन को लेकर लोगों में खौफ है। रिजर्व बैंक ने खुद स्वीकारा है कि करीब 99 फीसद पैसा वापस आया है। चूंकि अभी नेपाल में पुराने नोटों को बदलने के तरीके को लेकर वहां की सरकार के साथ सहमति नहीं बन पा रही है इसलिए वहां का आंकड़ा आना बाकी है। सरकार का दावा है कि किसने किस बैंक में कितना पैसा जमा करवाया है। एजेंसियां ऐसे लोगों या कंपनियों की धरपकड़ में लगी है। यह अलग बात है कि जितने मामलों की जांच होनी है और इनकम टैक्स वालों के पास जितना स्टाफ हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि मामले निपटाने में सालोंसाल लग जाएंगे। आतंकवादियों के पास पैसों का टोटा पड़ा हुआ है। नक्सलियों का बहुत सा पैसा तबाह हुआ है। जमीन में प्लास्टिक की थैलियों में रखा पुराना पैसा काफी हद तक मिटटी हो चुके हैं। हालांकि यह सच है कि सरकार कैशलेस को बढ़ावा दे रही है, लेकिन भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट की क्नेक्टिविटी कमजोर है, जहां सबके पास बैंक अकाउंट नहीं है, नकदी का चलन रहा है वहां एक झटके में सब कैशलेस नहीं हो सकते हैं। 





(सुरेश गांधी)

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