विशेष आलेख : अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनाप-शनाप कब तक सहेगा देश? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 25 नवंबर 2017

विशेष आलेख : अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनाप-शनाप कब तक सहेगा देश?

फिल्म ट्रेलर में मेवाड़ की महारानी पद्मावती घूमर डांस कर रही हैं। जबकि राजघराने की रानियां घमूर और ठुमके नहीं लगाती थीं। यहां तक कि उनकी स्की‍न भी नहीं दिखती थी जैसा कि ट्रेलर में दीपिका को दिखाया जा रहा है। इसी बात को लेकर फिल्म पद्मावती का विरोध हो रहा है। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि अगर फिल्म के सभी किरदार काल्पनिक है तो फिर इतिहास को गुमराह क्यों किया जा रहा है। आखिर काल्पनिक किरदार के नाम पर मान्यताओं पर आधारित किरदार से छेड़छाड़ क्यों की जा रही है? क्या पद्मावती को बदनाम करने के लिए काल्पनिक हथियार का सहारा लिया जा रहा है? क्या फिल्मों में अपने पुरखों को अपमानित करने का फैशन चल पडा़ है? एक तरफ तो पद्मावती को देवी और मां का दर्जा जाता है तो दुसरी तरफ उनका अपमान क्यों किया जा रहा है? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब अब हर कोई जानना चाहता है 
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फिरहाल, इतिहास की गाथाओं और मलिक मुहम्मद जायसी के काव्य से निकलकर पद्मावती की कहानी फिल्मी पर्दे पर आने को बेताब है। लेकिन फिल्म रिलीज हो इसके पहले ही हंगामा मच गया है। आरोप है कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गयी है। डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने फिल्म में पद्मावती के व्यक्तित्व को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की है। इसे लेकर हंगामा इस कदर है कि राजस्थान से निकली विरोध की चिंगारी अब पूरे देश में फैलती जा रही है। कई राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, पूर्व राजघराने तथा हिंदुवादी संगठनों ने इसकी रिलीज पर रोक लगाने या विवादित अंशों को हटाने की मांग पर अड़े है। करणी सेना के लोगों ने तो फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कोटा के एक सिनेमा घर में तोड़फोड़ भी कर डाली। पद्मावती पर गुस्से में राजकुमारी दीया ने तो साफ-साफ कह रखा है कि राजस्थान के इतिहास से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं। हो जो भी सच तो यही है कि फिल्म काल्पनिक पात्रों व कथनों पर ही आधारित होते है। ऐसे में फिल्म पद्मावती को भी काल्पनिक किरदारों व कथनों पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दार्शनिक व्याख्या के अनुसार, रावल तत्न सिंह आत्मा है, रानी पद्मावती परमात्मा। अलाउद्दीन माया यानी भ्रम है। तांत्रिक शैतान है जो आत्मा को परमात्मा से दूर करने का प्रयास करता है। जायसी का काव्य काल्पनिक है। इसका इतिहास से किसी प्रकार का संबंद्ध नहीं हैं। जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली फिल्में देश में पूर्व में भी प्रतिबंधित हुई हैं। रानी पद्मीनी जनभावनाओं से जुड़ी हुई हैं। इसलिए भंसाली के भी फिल्म पर रोक लगनी चाहिए। फिल्म रिलीज ही करनी है तो ऐतिहासिक पात्रों के नाम हटा लेना चाहिए। क्योंकि स्वाभिमान के लिए जौहर की ज्वाला में पद्मीनी, ऐसी चित्तौड़ की माटी, सचमुच है चंदन। 

देखा जाय तो शील एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर करने वाली मेवाड़ की महारानी पद्मीनी के गौरवगाथा का जिक्र साहित्यिक रचनाओं में सालों से हो रहा है। उनके प्रति लोगों में असीम श्रद्धा के भाव हैं। ऐसे में उनके चरित्र को आधार बना फिल्म पद्मावती के निर्माण ने लोगों की भावनाओं को उद्धेलित किया है। मलिक मोहम्मद जायसी की जिस पदमावत को आधार बना फिल्म निर्माण की बात कही जा रही है उसे स्वयं जायसी ने ही लौकिक कथा के आधार पर रचा आध्यात्मिक रुपक माना था। जायसी ने कल्पना के इस रुपक में पदमावती को परमात्मा के रुप में रत्न सिंह को साधक, चित्तौड़ को शरीर , हीरामन को तोतागुरु, राघवचेतन को शैतान, अलाउद्दीन को माया के प्रतीक रुप में दर्शाया हैं। ऐसी कल्पना को प्रधान रचना के रुप में कत्तई नहीं माना जा सकता। बता दें, इस फिल्म में दीपिका पादुकोण रानी पद्मावती की भूमिका निभा रही हैं। जबकि रणवीर सिंह अलाउद्दीन खिलजी के रोल में हैं। राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने अपने खून से इतिहास लिखा है, जिसे हम काला नहीं होने देंगे। हम एक दिसंबर को भारत बंद का ऐलान करेंगे। मालूम हो कि फिल्म इसी दिन रिलीज होने वाली हैं। लेकिन विरोध की ज्वाला इस कदर दहक रही है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर अघोषित बंदी का साफ असर नजर आ रहा है। राजस्थान हो या यूपी, एमपी, बिहार, हरियाणा कहीं भी कोई डिस्ट्रीब्यूटर फिल्म दिखाने को राजी नहीं है। सभी ने फिल्म के राइट्स खरीदने से मना कर दिया है। दरअसल, राजपरिवार महरानी पद्मावती को घूमर नृत्य में दिखाने से नाराज है। पूर्व महाराज नरेंद्र सिंह ने कहा कि जौहर करने वाली रानी को घूमर नृत्य करवाना राजपूत और हिंदू समाज बर्दाश्त नहीं करेगा। वीरांगना महरानी पद्मावती को लेकर खिजली के विचारों को दिखाना हमारी बेइज्जती है। हम इस फिल्म को देश में नहीं चलने देंगे। इससे पहले जोधा-अकबर फिल्म भी राजस्थान में करणी सेना के विरोध की वजह से आज तक रिलीज नहीं हो पाई है। अब पद्ममावती भी शायद ही रीलिज हो। 

फिल्म पर लग सकता है ग्रहण 
वैसे भी फिल्म के निर्माताओं की ओर से सेंसर को भेजे डॉक्युमेंट में कई तरह की कमियों की बात सामने आ रही है। सूत्रों की मानें तो सेंसर को जो ओरिजिनल डॉक्युमेंट दिए गए हैं वो अधूरे हैं। फिल्म की शुरुआत में भी अपेक्षित डिस्क्लेमर नहीं है। नियमों के मुताबिक, रिलीज से 15 दिन पहले फिल्म को सेंसर के पास भेजना होता है। जबकि फिल्म की पहली कॉपी का काम पूरा नहीं हुआ है। इसी वजह से इसे सेंसर के पास नहीं भेजा जा सका है। कहा जा सकता है नियम का पालन हुआ तो फिल्म प्रस्तावित तारीख पर रिलीज नहीं होगी। क्योंकि प्रस्तावित तारीख पर रिलीज के लिए फिल्म भेजने की अवधि खत्म हो गई है। 

लाज बचाने के लिए पद्मावती ने की जौहर 
रानी पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थी। पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, वह 13 वीं -14 वीं सदी की महान भारतीय रानी है। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। अन्ततः 28 जनवरी 1303 ई. को सुल्तान चित्तौड़ के किले पर अधिकार करने में सफल हुआ। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुये और उनकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ आत्म-सम्मान और गौरव को मृत्यु से ऊपर रखते हुए जौहर कर लिया। कहा जा रहा है कि रानी पद्मिनी के महल में स्थापित दर्पण को आधार बनाकर ही फिल्म में गलत तथ्य दिखाने की कोशिश की गयी है। कहा जा रहा है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों के मुताबिक, इन दर्पणों को लगभग 40 साल पहले चित्तौड़गढ़ किले में रखा गया था। 15 मार्च 2017 को अज्ञात लोगों के एक समूह ने दर्पण को तोड़ दी। 

रानियां नहीं करती थी अंग प्रदर्शन 
रानी पद्मावती की कहानी का वर्णन 16वीं शताब्दी के कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में पद्मावत ग्रंथ रूप में लिखी है। राजपूतों के इतिहास में रानियों और राजपरिवार की महिलाओं का भी कम उल्लेख मिलता है, ऐसा इसलिए क्योंकि परंपराओं के अनुसार इन्हें परदे में रहना होता था और ये खुलकर सबके सामने नहीं आती थीं। राधावल्लभ सोमानी ने अपने पुस्तक में लिखा है कि 13वीं शताब्दी से पहले शिलालेखों में रानियों के नाम का उल्लेख कम होता था, जिसके चलते हाड़ी करमेती, पन्नाधाय और मीरा का नाम भी नहीं है और इसी तरह पद्मिनी का भी।

रानी पद्मावती का स्वयंवर
महाराज गंधर्वसेन नें अपनी पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए उनका स्वयंवर रचाया था। इसमें भाग लेने के लिए भारत के अलग-अलग हिन्दू राज्यों के राजा-महाराजा आए थे। गंधर्वसेन के राज दरबार में लगी राजा-महाराजाओं की भीड़ में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था। उसी स्वयंवर में विवाहित राजा रावल रत्न सिंह भी मौजूद थे। उन्होनें मल्खान सिंह को स्वयंवर में परास्त कर के रानी पद्मिनी से विवाह किया। 

साजिश के शिकार हुए राजा रतन सिंह 
प्रजा प्रेमी और न्याय पालक राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे। उनके शासन में प्रजा हर तरह से सुखी समपन्न थीं। वे रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। उनकी सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी। उनके दरबार में राघव चेतन नाम का एक संगीतकार था। उसे वे बहुत मानते थे। राज दरबार में चेतन को विशेष स्थान दिया गया था। लेकिन वह शातिर था और संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जनता था। ऐसा कहा जाता है कि राघव चेतन अपनी इस आसुरी प्रतिभा का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध करने में करता था। एक दिन राघव चेतन जब अपना कोई तांत्रिक कार्य कर रहा था तब उसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया। राजदरबार में राजा रावल रत्न सिंह के समक्ष पेश कर दिया गया। सभी साक्ष्य और फरियादी पक्ष की दलील सुन कर महाराज नें चेतन राघव को दोषी पाया और तुरंत उसका मुंह काला करा कर गधे पर बैठा कर देश निकाला दे दिया। अपने अपमान और राज्य से निर्वासित होने पर राघव चेतन बदला लेने पर आमादा हो गया। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य रह गया था और वह था चित्तौड़ के महाराज रावल रत्न सिंह का सम्पूर्ण विनाश। अपने इसी उद्देश के साथ वह दिल्ली राज्य चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। 12वीं  और 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। उन दिनों दिल्ली के बादशाह से मिलना इतना आसान कार्य नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगता है। क्योंकि वह जानता था कि दिल्ली का बादशाह अलाउद्दीन खिलजी शिकार का शौकीन है और वहां पर उसकी भेंट जरूर अलाउद्दीन खिलजी से हो जाएगी। कुछ दिन इंतजार करने के बाद आखिर उसे सब्र का फल मिल जाता है। 




(सुरेश गांधी)

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