शतरंज के शौकीन वी पी सिंह ने जब सियासत कि बिसात पर मंडल का मोहरा चला तो उनका ये एक चाल उस वक्त के उनके तमाम विरोधियों को एक पल में ही चित कर दिया। शायद उन्हें क्या पता था की खुद की कुर्सी बचाने के लिए चला गया ये चाल आने वाले वक्त में कितनी नस्ल बर्बाद कर देगी ? "राजा नहीं फ़कीर है। देश की तकदीर है।" का नारा देने वाले देश को आग की लपेट में धकेलकर उसके सुनहरे भविष्य से एक भूना हुआ मांस निकालेगा ! किसे पता था? जनता पार्टी के पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय इस पर असहमत होते हुए कहते हैं। "वीपी सिंह जी जो भी करते थे उसके आगे पीछे के सभी पहलूओं पर विचार करके ही करते थे।" लेकिन मंडल कमीशन के एक पुराने डेटा से बनाए गए रिपोर्ट को इतने जल्दबाजी में लागू करना क्या चूक नहीं थी? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार और लूटियन्स जोन पर गहरी पकड़ रखने वाले कुलदीप नैयर कहते हैं। "वी पी सिंह से अगर सबसे बड़ी कोई भूल हुई थी तो वो मंडल कमीशन को हड़बड़ी में लागू करना था । जो उसके राजनीतिक कैरियर के खात्मे का भी बड़ा कारण था।"
क्या वी पी सिंह को पता था कि मंडल कि ये चाल उनके राजनीतिक कैरियर को बर्बाद कर सकती है? या उसने जानबूझकर उस वक्त के पिछड़े नेता देवीलाल और चंद्रशेखर को मात देने के लिए चला था? इस सवाल पर हंसते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरूण शौरी कहते हैं। चाहे कुछ भी हो वी पी सिंह की ये चाल उनके लिए खुद गले की फांस बन गई।"(ताकि सनद रहे कि मंडल कमीशन के विरोध के कारण ही अरूण शौरी इंडियन एक्सप्रेस के संपादक पद से हटा दिए गए थे) क्या सच में मंडल कमीशन लागू करना वीपी सिंह के गले की फांस बन गई? क्या सच में मंडल कमीशन को लागू कर वी पी सिंह ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार लिया? जिस ५२% वोटरों को खुश करने के लिए मंडल कमीशन लागू किया गया क्या उसने भी वी पी सिंह को अकेला छोड़ दिया?
अपने अंतिम समय में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी से बात करते हुए वी पी सिंह निराश थे। और ये निराशा उनके मुंह पर साफ दिख रही थी। उनने निराश भाव से अपने अंदर की पीड़ा को मुख पर लाते हुए ठहर गये और बोल बैठे; "प्रभाष जी दलितों और ओबीसी ने मुझपर विश्वास नहीं किया सिर्फ इसलिए कि मैं स्वर्ण था !"
(आज वी पी सिंह का जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर ये एक छोटी सी विवेचना लिखने का प्रयास किया है)
अविनीश मिश्र
(लेखक माखनलाल विवि में पत्रकारिता के छात्र है)
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