बिहार : सुरेंद्र स्निग्ध को जसम पटना की ओर से श्रद्धांजलि. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

बिहार : सुरेंद्र स्निग्ध को जसम पटना की ओर से श्रद्धांजलि.

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पटना : 19 दिसंबर 2017, जन संस्कृति मंच, पटना इकाई ने कवि, उपन्यासकार, संपादक और अध्यापक प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध के निधन पर आज छज्जूबाग स्थित भाकपा-माले विधायक दल कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी. इस मौके पर एआइपीएफ के संयोजक संतोष सहर ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से फेंफड़े में गंभीर संक्रमण की वजह से  वेंटिलेटर पर थे और जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष जारी था। इस मौके पर जसम पटना के संयोजक राजेश कमल, अनिल अंशुमन, अभिनव कुमार, सुधांशु, शशांक मुक्त शेखर, रामकुमार आदि उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि सत्तर और अस्सी के दशक में बिहार में उभरे क्रांतिकारी किसान आंदोलन और सामंतवाद-विरोधी सामाजिक बदलाव के आंदोलन से सुरेंद्र स्निग्ध गहरे तौर पर प्रभावित थे। उनके उपन्यास ‘छाड़न’ में आजादी के आंदोलन की दो धाराओं के बीच संघर्ष से लेकर क्रांतिकारी नक्षत्र मालाकार के संघर्ष और नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रभाव में सीमांचल के इलाके में विकसित हुए क्रांतिकारी किसान आंदोलन को दर्ज किया गया है। कई समीक्षकों ने उनके इस उपन्यास को रेणु के ‘मैला आंचल’ की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला उपन्यास बताया है। शिल्प के स्तर पर इस उपन्यास में रिपोर्ताज, संस्मरण, कविता आदि कई विधाओं का उपयोग किया गया है।  राजेश कमल ने कहा कि प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध अपनी पीढ़ी के जाने-माने कवि थे। ‘पके धान की गंध’, ‘कई कई यात्राएं’, ‘रचते-गढ़ते’ और ‘अग्नि की इस लपट से कैसे बचाऊं कोमल कविता’ उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। ‘जागत नींद न काजै’, ‘शब्द-शब्द बहु अंतरा’ और ‘नई कविता रू नया परिदृश्य’ नामक उनकी आलोचना की पुस्तकें प्रकाशित हैं। बाद में उन्हें आईजीआईएमएस, पटना ले जाया गया, जहां 18 दिसंबर को रात्रि में उनका निधन हो गया। अनिल अंशुमन ने कहा कि 5 जून 1952 को बिहार के पूर्णिया जिले के सिंघियान गांव में प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध का जन्म हुआ था। जन संस्कृति मंच की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। जन संस्कृति मंच की पत्रिका ‘नई संस्कृति’ के अतिरिक्त उन्होंने पटना विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘भारती’ और ‘गांव-घर’ नामक पत्रिका का संपादन किया था। ‘प्रगतिशील समाज’ के कहानी विशेषांक और उन्नयन के बिहार-कवितांक का भी उन्होंने संपादन किया था। अभिनव कुमार ने ‘क्रांतिकारी दोस्तों के नाम’ जो प्रो. स्निग्ध की बेहद चर्चित कविता है, का पाठ किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी.

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