बिहार वाटर डेवलपमेंट सोसाइटी का गोल्डन जुबली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 6 दिसंबर 2017

बिहार वाटर डेवलपमेंट सोसाइटी का गोल्डन जुबली

बिहार वाटर डेवलपमेंट सोसाइटी का गोल्डन जुबली
पटना : आज राजधानी पटना में चहलपहल रही. ईसाइयों का प्रतिनिधित्व करने वाले आर्क बिशप,बिशप,फादर,सिस्टर तथा लोग सेवा केंद्र,कुर्जी की तरफ आ रहे थे. इसका खास मकसद रहा. सूबे में भयंकर सूखाड़ के समय 1967 में बिहार वाटर डेवलपमेंट सोसाइटी गठित की गयी. आज गोल्डन जुबली मनायी गयी.  इस अवसर पर मुख्य अतिथि आर्क बिशप थेयोडोर मसकरेनस थे. मौके पर आर्क बिशप थेयोडोर मसकरेनस ने कहा कि आज 6 दिसम्बर है.संत निकोलस का पर्व है. इनको सांता क्लॉज भी कहा जाता है.गरीब बच्चों को उपहार दिया करते थे. उन्होंने कहा कि हमेशा की तरह इस बार भी क्रिसमस के मौके पर  जिंगल्स बेल्स की आवाज के साथ हमें अपने प्यारे सांता क्लॉज का इंतजार किया. आखिर उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले यह सांता क्लॉज कौन है? आइये जानें सांता क्लॉज के इतिहास के बारे में. सांता क्लॉज से जुड़ी किंवदंतियों का सच संत निकोलस नाम के एक दरियादिल व्यक्ति से जुड़ा है. संत निकोलस को सांता क्लॉज का जनक माना जाता है. इनका जन्म तीसरी सदी में ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद उस समय के ग्रीक और वर्तमान में तुर्की के दक्षिणी हिस्से में मायरा नामक स्थान पर हुआ था. वे एक अमीर परिवार से थे.  उनके माता-पिता की मृत्यु महामारी में हो गयी और वे बचपन में ही अनाथ हो गये. उनका प्रभु यीशु में गहरा विश्वास था. ईसा मसीह के जीवन और उनके उपदेशों से वे काफी प्रभावित थे. उनसे प्रेरणा लेते हुए उन्होंने अपना जीवन जरूरतमंदों और दुखी लोगों की सेवा में लगा दिया. वे अपनी नौजवानी में ही पादरी और बाद में बिशप बनें. बच्चों के लिए उनके मन में असीम प्यार था. अपने दयालु और हंसमुख मिजाज के कारण वे बच्चों में काफी लोकप्रिय थे. कहा जाता है कि एक बार एक व्यक्ति  को पैसे की कमी के कारण अपनी तीन बेटियों का विवाह करने में परेशानी आ रही थी.  स्थिति ऐसी थी कि उन लड़कियों को दासी के रूप में काम करने की नौबत आ गयी. तब निकोलस ने चुपके से उनकी तीनों बेटियों की सूखने के लिए डाले गये मोजे में सोने के सिक्कों की थैलियां रख दी. इस तरह उन्होंने उस परिवार को लाचारी की जिंदगी जीने से बचा लिया. तब से बच्चे क्रिससम की रात अपने मोजे को घर के बाहर लटकाने लगे.  

हंसमुख बुजुर्ग हैं सांता क्लॉज : आधुनिक सांता क्लॉज को सामने लाने का श्रेय क्लेमेंट क्लॉर्क मूर नामक व्यक्ति को जाता है. क्लेमेंट मूर बिशप समूह के मंत्री थे. सन 1822 में क्लेमेंट क्लार्क मूर ने अपनी तीन बेटियों के लिए क्रिसमस के अवसर पर एक कविता लिखी. अकाउंट ऑफ द विजिट फ्रॉम सेंट निकोलस शीर्षक से लिखी गयी इस कविता में सांता की रूपरेखा खींची गयी. इस कविता में लाल परिधान में सफेद दाढ़ी वाले एक हंसमुख बुजुर्ग का चरित्र-चित्रण किया गया जो रेंडियर स्लेज पर सवार होता है और चिमनियों के रास्ते घरों में चुपके से आता है. दीवार पर टंगी जुराबों में बच्चों के लिए तोहफा डाल जाता है.  इस कविता के प्रकाशन के बाद सांता क्लॉज को पूरे अमेरिका में काफी प्रसिद्धि मिली. इसके बाद 1881 में जर्मन मूल के कार्टूनिस्ट थॉमस नेल ने मूर की कविता के आधार पर सांता क्लॉज की एक छवि तैयार की.  सांता क्लॉज के रूप में तैयार इस छवि का प्रकाशन हार्पर वीकली नामक पत्रिका में किया गया़  इसमें सांता क्लॉज को एक हंसमुख इंसान के रूप में दिखाया गया जिसकी बर्फ जैसी उजली दाढ़ी है और तोहफों से भरा बड़ा थैला रखता है. उन्होंने सांता को लाल रंग के फर वाले सूट में दिखाया जो नार्थ पोल में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं.  सांता क्लॉज के बिना क्रिसमस अधूरा : सांता क्लॉज से बिना क्रिसमस अधूरा है. निकोलस के डच नाम सिंटर क्लास ही बाद में सांता क्लॉज बन गया. ईसा मसीह के जन्म दिन पर वे सभी को खुश देखना चाहते थे. इसलिए वे लोगों को खुश करने के लिए उस दिन से पहले की रात में लोगों के घरों में चुपके से जाते और तोहफे रख आते. उनकी उदारता के कारण लोग उन्हें संत कहने लगे. उनकी मृत्यु के बाद ऐसे लोग जो दूसरों की जिंदगी में खुशी देखना चाहते थे, उनका वेश बदलकर सांता बनने लगे. धीरे-धीरे यह एक प्रथा बन गयी. छह दिसंबर को संत निकोलस  हमसे हमेशा के लिए विदा हो गये. उनके निधन के बाद फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में इस दिन को  संत निकोलस डे के रूप में मनाया जाता है.

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