पटना 17 दिसंबर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज कहा कि यदि राज्य में विधि का शासन स्थापित हुआ है तो उसमें न्यायपालिका की अहम भूमिका है। श्री कुमार ने यहां इफेक्टिव इन्वेस्टिगेशन, स्पीडी ट्रायल एवं टाइमली जस्टिस विषय पर आयोजित एक दिवसीय सेमिनार को संबोधित करते हुये कहा कि उनकी सरकार में यदि राज्य में कानून का शासन स्थापित हुआ है तो इसमें न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि समय पर सजा नहीं होगी, तो भय व्याप्त नहीं होगा। इसमें न्यायालय की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि लोगों में भय का नहीं, भरोसे का भाव पैदा होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान कहता है कि विधि का शासन कायम होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति लोगों को भरोसा और विश्वास रहना चाहिए। इसके लिए व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करते हैं, जिससे कानून का शासन कायम रख पाना संभव होता है। उन्होंने राज्य की किसी पूर्ववर्ती सरकार का नाम लिये बगैर कहा कि उस समय बिहार की जो स्थिति थी, सबको मालूम है। समय पर ट्रायल नहीं होता था, अपराधी छूट जाते थे, कानून का डर नहीं था। उनकी सरकार ने जल्द से जल्द मुकदमों के ट्रायल पर जोर दिया। खासकर आर्म्स एक्ट के मुकदमे क्योंकि इसमें दो-तीन ही गवाह होते थे और ज्यादातर सरकारी होते थे।
श्री कुमार ने कहा कि वर्ष 2000 में जब राज्य का बंटवारा हुआ था तो यहां के कुछ अधिकारी झारखंड चले गए, उनका कैडर बदल गया। उन्होंने निर्देश दिया कि जितने भी अधिकारी गवाह हैं उनकी सूची अपडेट की जाए। इसके बाद प्रभावकारी परिणाम सामने आये। ट्रायल तेजी से हुये और समय सीमा के अंदर अपराधियों को सजा मिली। नियमित ट्रायल में भी तेजी आयी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2006 में राज्य में कुल दोषी करार दिये गये अपराधियों की संख्या 6839, वर्ष 2007 में 9853, वर्ष 2008 में 12007, वर्ष 2009 में 13146 और वर्ष 2010 में 14311 रही, जो शुरु में बढ़ते क्रम को दर्शाता है लेकिन बाद में यह संख्या घटने लगी और वर्ष 2016 में यह आंकड़ा घटकर मात्र 5508 रह गया। मुख्यमंत्री ने राज्य में विधि का शासन कायम रखने में सरकार की ओर से किये गये प्रयासों का उल्लेख करते हुये कहा कि उस समय थानाें में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कागज नहीं होते थे, गाड़ियां खराब थीं, पुराने हथियार थे और अन्य संसाधनों की कमी थी। उनकी सरकार ने इन समस्याओं से निजात पाने के लिए थानों को तीन श्रेणियों में बांट दिया। फंड की व्यवस्था की गई, जो रोटेटिंग था। इस राशि के खर्च होने पर कोष में फिर से उतने पैसे आ जाते थे। श्री कुमार ने कहा कि इसके अलावा दारोगा को किसी काम के लिए बाहर जाना हो, किसी को हाजिर कराना हो, इन सब पर खर्च के लिए पैसे दिये गये। उन्होंने कहा कि वर्ष 2007 में बिहार पुलिस अधिनियम बना। उच्चतम न्यायालय में भी कहा गया कि कानून व्यवस्था और जांच के लिए अलग विंग होने चाहिए, इसके लिए अलग-अलग पुलिस निरीक्षकों को जिम्मा दे दिया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि न्यायिक अकादमी में पुलिस अधीक्षक को प्रशिक्षण तो दिया ही जाना चाहिए और साथ ही दारोगा के लिए भी छोटे पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार हरसंभव सहायता करती है। न्यायपालिका की ओर से जो भी पद की मांग की जाती है, उसे शीघ्र पूरा कर दिया जाता है। जितने स्वीकृत पद हैं, वो भर नहीं पा रहे हैं। पदों पर नियुक्ति न्यायपालिका को करनी है जबकि पद का सृजन सरकार का काम है। उन्होंने कहा कि यदि पद का सृजन करना हो, प्रौद्योगिकी स्वीकार करनी हो या संसाधन उपलब्ध कराना हो, सरकार सबकुछ उपलब्ध करायेगी। श्री कुमार ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और विशेष न्यायालय अधिनियम बनाये गये हैं। इसके तहत जो लोक सेवक भ्रष्ट तरीके से धन अर्जित करेंगे उनकी संपत्ति जब्त होगी। शासन के अधिकार का दुरुपयोग करके धन अर्जन न करें। उन्होंने कहा कि ससमय कानून के मुताबिक कार्रवाई होने से भ्रष्ट लोगों पर भी बड़ा असर पड़ेगा। इस अवसर पर सभी छह समूह के सदस्यों ने अपने-अपने विचार एवं सुझाव रखे। इस मौके पर विधि मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा, बिहार न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक कुमार मंडल, न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह, पटना उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश, महाधिवक्ता ललित किशोर, मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, पुलिस महानिदेशक पी. के. ठाकुर, गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, बिहार न्यायिक अकादमी के निदेशक नवदीप कुमार पांडेय, बिहार विधि सेवा प्राधिकार के पदाधिकारी, बिहार पुलिस मुख्यालय के वरीय पदाधिकारी, सभी जिलों के जिला एवं सत्र न्यायाधीश समेत विभिन्न विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें