मधुबनी : भू माफिया के आगे बेबस प्रशासन, बेदम मधुबनी ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 दिसंबर 2017

मधुबनी : भू माफिया के आगे बेबस प्रशासन, बेदम मधुबनी !

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मधुबनी, भू माफिया पूर्व दरभंगा महाराज के दान किये हुए जमीन को हासिल करने में पूरी ताकत झोंक रहे है ! मधुबनी दरभंगा के अधिकतर सरकारी कार्यालय दरभंगा महाराज के जमीन पर बने हुए है ! उन जमीनों को अपनी तिकड़म और अधिकारियों के मिली-भगत से हासिल करने में भू माफिया का पूरा गिरोह हर तरीके के साथ सक्रीय हो गया है! ये भू माफिया दरभंगा महाराज के जमीनों की खरिदारी के कागजात भी उपलब्ध करा रहे हैं जिसे बेचने का हक़ राजघराने परिवार को है ही नहीं! ज्ञात हो की पुराने जमाने मौखिक व्यवहार से ही सरकार ने पूर्व महाराज से बिना लिखा पढ़ी के जमीन हासिल किया था जिसपर कार्यालय चल रहे हैं साथ ही सरकार ने कुछ जमीन मकान को बतौर किराया पर  भी ले रखा है और उस मकान में तीन चार दशक से सरकारी कार्यालय चल रहे हैं साथ ही सरकार उस मकान का किराया भुगतान कर रहा है ! सरकारी कानून के मुताबिक़ इतने पुराने किरायेदार को मकान खरीदने का पहला हक होता है पर उस जमीन को कम कीमत में भू माफिया राजघराने से खरीदती है और भू माफिया से सरकार मुहमांगी कीमत पर वापिस लेती है इस डील में सरकार को साठ से सत्तर कड़ोर का नुकसान उठाना पड़ रहा है जबकि सरकार उस रजिस्ट्री को केंसल करने का आवेदन दे सकती है और रजिस्टार के यहाँ या कोर्ट में जमीन का पैसा जमा कर उस मकान या जमीन का स्वामित्व प्राप्त कर सकता है लेकिन सरकार भू माफिया के सामने बौना साबित हो रहा है और इसका सबसे बड़ा कारण है भू माफिया का तिकड़म और जुगाड़ और सरकार के ही आदमी के साथ मिलकर उन जमीनों को हासिल करने में सारकारी घुसपैठ! सरकार का अंचल व्यवस्था कमजोर हो चुका है और जमीन के पेंचीदा मामले को सुलझाने के लिए सरकार के तीन विभागों को एक प्लेटफॉर्म पर आना मुश्किल जान पड़ता है, भूमाफिया इस कठिनाई से भलीभांति अवगत हैं और इस बात का फायदा भी उठाते है !

अब देखिये ना एक छोटा सा उदाहरण है, एक निजी जमीन को कुछ महादलित दलित और अतिपिछड़ा ने अतिक्रमण कर लिया वह आदमी पिछले एक दशक से जमीन को खाली करवाने के लिए सरकारी कार्यलयों के चक्कर काट रहा है लेकिन खाली नहीं हो रहा है ! हाई कोर्ट आदेश देता है तो अंचल पदाधिकारी लिखता है लॉ एन्ड ऑडर की समस्या है यहाँ कोई बड़ी अप्रिय घटना घट सकती है और यह बात एक दो बार नहीं कई बार लिखा थक हार कर बेचारा वह आदमी जमीन खाली कराये बगैर नौकरी की तलाश में दिल्ली निकल गया! यह उदाहरण एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो है  लेकिन उसी जमीन पर यदि सरकार का कब्जा है तो पलक झपकते भू माफिया से जमीन खरीदने का स्वीकृति दे देते है या सरकार उस जमीन को खाली कर देता है ! अधिकारी यह भी जानना उचित नहीं समझते है कि क्या उस जमीन को पूर्व दरभंगा महाराज के किसी पूर्वज को बेचने का अधिकार है? भू स्वामित्व नियमावली बंदोबस्ती के समय आखिर इस जमीन को किस आधार पर महाराज के परिवार के लिए छोड़ा गया था? कहीं ऐसा तो नहीं यह जमीन महाराज के विभिन्न ट्रस्ट के अधीनस्थ है जिसे बेचने का कोई अधिकार नहीं रखता है? मधुबनी में भी कुछ ऐसा ही जमीन है जिसपर भू माफियाओं की पैनी नजर है और कुछ लोकल माहौल बनाकर, कुछ पेड न्यूज़ के माध्यम से, कुछ अधिकारियों के सहयोग से हासिल करने में जुगत लगा रहे है! उन माफियाओं का कहना है मेरा कागज़ मजबूत है मैं ने जमीन का दाखिल खारिज कर लिया है, लगान जमा कर दिए है और आधिकारिक तौर पर मेरा है लेकिन रजिस्ट्री का एक लाइन जो सभी भूल जाते है वह है "यह जमीन मेरे कब्जे में है और मैं ने खरीदार को उक्त जमीन का कब्जा करा दिया है" लेकिन सवाल यह है क्या जमीन बेचने वाले उस शख्स ने किरायेदार से पूछा था की क्या आप जमीन या मकान लेने में सक्षम है? या क्या आपको यह जमीन या मकान चाहिए? अन्यथा आप खाली कर दे यह जमीन मैं अन्य किसी के हाथों बेच दूंगा! शायद मधुबनी में इस तरह का सवाल पूछना जमीन मालिक को गवारा नहीं! अधिकारियों को भी इस फॉर्मेलिटी की जरुरत नहीं लगती है! लोग सोचते है यह तो गरीब गुरबा के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है ! 

मधुबनी के दो बड़े प्लॉट है जिसमे से एक प्लॉट सरकार खरीदना चाहती है वह भी उस व्यक्ति से जिसने बिना कब्जा में जमीन लिए उक्त जमीन एवं मकान को खरीद लिया और सरकार उस जमीन को कई गुना अधिक पैसा खर्च कर खरीदने का स्वीकृति दे चुकी है ! लेकिन सरकार ने कभी भी उस नियम का इस्तेमाल करना मुनासिब नहीं समझा जिसमे कब्जाधारी जमीन मालिक या उस घर में रहने वाले किरायेदार को जमीन खरीदने का पहला हक़ देता है? दूसरा क्या जमीन मालिक को इस जमीन को बेचने का हक़ है ?लेकिन नहीं इस नियम का लाभ सरकार को नहीं लेना है ! सरकार का रजिस्टार को दाद देना पड़ेगा जिसने स्थल निरिक्षण किये बगैर इस विवादित जमीन पर अपना मुहर लगा दिया और सरकार के एक बड़े महकमा को सड़क पर ला खड़ा किया है ! सरकार आज खनन नियमावली की बात कर रही है पर क्या सरकार का अंचल सिस्टम ठीक है ? सरकार का राजस्व सिस्टम ठीक है ? क्या लोगों के जमीनी विवाद का निपटारा हो रहा है ? क्या आम लोग इस जमीन का फार्मूला को समझ रहे है ? शायद सभी का जवाव ना में है ! पर कहते है ना ये सिस्टम है सब जानती है ! 


साभार : मधुबनी मीडिया (इनपुट अभिषेक झा)

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