विशेष : ‘आप’ विधायकों की अयोग्यता के साथ ही बढ़ा दिल्ली का राजनीतिक ताप - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 21 जनवरी 2018

विशेष : ‘आप’ विधायकों की अयोग्यता के साथ ही बढ़ा दिल्ली का राजनीतिक ताप

aap-politics-and-delhi-political-temprature
‘जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल।’ कर्म का प्रभाव तो होता ही है। आम आम आदमी पार्टी के साथ भी दिल्ली में वैसा ही कुछ हो रहा है। पार्टी में सबको जोड़कर चलना बेहद कठिन है। यह बात अरविंद केजरीवाल को तभी समझ में आ गई थी जब योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने उन्हें अपनी मित्रता के दायरे से बाहर किया था। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के विलक्षण विद्वान हैं, उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि अरविंद केजरीवाल के साथ रहकर वे अपनी छवि को निर्मल बनाए नहीं रख सकते। कोई भी सज्जन व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहता जिसकी भूमिका संदिग्ध हो।

मार्च, 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। वकील प्रशांत पटेल ने इसे लाभ का पद बताया था और इसकी शिकायत राष्ट्रपति से की थी। संसदीय सचिव बनाए गए सभी 21 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। राष्ट्रपति ने यह मामला विचार हेतु चुनाव आयोग को भेज दिया था और चुनाव आयोग ने मार्च 2016 में 21 आप विधायकों को नोटिस भेजकर सुनवाई आरंभ की थी। चुनाव आयोग ने कार्रवाई करने में लगभग दो साल लगा दिया लेकिन देर आयद-दुरुस्त आयद। अब तो राष्ट्रपति ने भी चुनाव आयोग की संस्तुति पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी है। इसी के साथ आम आदमी पार्टी के 20 विधायक अयोग्य घोषित हो गए हैं। इसी के साथ इन बीस सीटों पर उपचुनाव का मार्ग प्रशस्त हो गया है। केजरीवाल सरकार को खतरा इसलिए भी नहीं है क्योंकि उनके पास 70 में से 66 सीटें थीं। 20 विधायकों के अयोग्य होने के बाद भी उसके बहुमत के आंकउ़े पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। केजरीवाल द्वारा हटाए गए मंत्री अगर बगावत कर जाएं और अपने समर्थक विधायकों को बगावत के लिए सहमत कर ले जाएं तो और बात है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि राज्यसभा में खुद को न भेजे जाने से नाराज कुमार विश्वास की पार्टी के दस विधायकों पर सीधी पकड़ है। वे केजरीवाल के विरुद्ध बगावत कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो केजरीवाल सरकार जरूर संकट में आ सकती है। वैसे भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव की तैयारियां आरंभ कर दी है। आम आदमी पार्टी भी इस बात को बेहतर समझती है कि उसके लिए सत्ता में बने रहना बहुत निरापद नहीं है। शायद यही वजह रही होगी कि उसके नेताओं ने इस बात का ऐलान करने में देर नहीं लगाई कि आम आदमी पार्टी चुनाव में जाने से डरती नहीं है। 
   
चुनाव आयोग के इस निर्णय से बौखलाई आम आदमी पार्टी ने जहां आयोग पर केंद्र सरकार का कर्ज उतारने का आरोप लगाया है बल्कि यह भी कहा है कि चुनाव आयोग इतना कभी नहीं गिरा था। मतलब आप ने एक ही तीर से चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर एक साथ निशाना साधा है। उसने राष्ट्रपति के निर्णय लेने से पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन वहां भी उसे फटकार ही हाथ लगी। कोर्ट ने उससे यहां तक पूछ लिया था कि जब पार्टी चुनाव आयोग के पास गई ही नहीं तो वह यह बात कैसे कह सकती है कि उसकी सुनवाई नहीं हुई। आम आदमी पार्टी ने अपना पक्ष इस तर्क के साथ पेश किया था कि उसका पक्ष सुने बिना ही आयोग ने फैसला ले लिया है। जब हाईकोर्ट काफी पहले यह मान चुका है कि उनके विधायक संसदीय सचिव नहीं हैं, ऐसे में उन पर कोई भी कार्रवाई कैसे मुमकिन है? 

यह पहला मौका है जब अपनी सुविधा का संतुलन देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर अंगुली नहीं उठाई और यह कहा कि लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग का निर्णय ही संविधान सम्मत होता है। पहले भी इस तरह के मामलों में प्रेसिडेंट चुनाव आयोग के निर्णय पर मुहर लगाते रहे हैं। इस बार भी ऐसा ही कुछ होना चाहिए। कांग्रेस को यकीन है कि अगर ऐसा होता है तो उपचुनाव में जीत कांग्रेस की ही होगी। आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में संसदीय सचिव बनाए गए कुछ विधायकों को भी अयोग्य ठहराने का मामला उठाया है। आप नेता संजय सिंह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही इस्तीफा मांग रहे हैं। उनका तर्क है कि सबसे पहले संसदीय सचिव नियुक्त करने का प्रयोग उन्होंने ही गुजरात में शुरू किया था। इस प्रयास को हमारी आंख नहीं तो तुम्हारी सलामत क्यों वाले नजरिए से देखना ही ज्यादा मुनासिब होगा।  अगर यह कहा जाए कि अरविंद केजरीवाल सरकार, आम आदमी पार्टी और विवादों का चोली-दामन का रिश्ता रहा है तो कदाचित गलत नहीं होगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पार्टी में तानाशाही के आरोप लगते रहे हैं। जिस तेजी के साथ आम आदमी उभरी थी, अगर अरविंद केजरीवाल ने सूझ-बूझ के साथ काम किया होता तो आम आदमी पार्टी देश भर में तीसरे विकल्प की भूमिका में होती लेकिन राजमद में इतराए अरविंद केजरीवाल ने अपनी महत्वाकांक्षाओं के बीच जनादेश के संदेश को समझने में निरंतर गलती की। पार्टी के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जब पार्टी से अलग हुए थे तब भी अरविंद यादव नहीं संभले। पार्टी अक्सर बाह्य और आंतरिक मोर्चों पर टकराव झेेलती रही। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर कायम है। इसके लिए अरविंद केजरीवाल की हठधर्मिता ही बहुत हद तक जिम्मेदार है।

आप विधायक और दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा तो सरकार के खिलाफ आमरण अनशन पर भी बैठे। बेहोश होकर अस्पताल तक पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया था कि 10 हजार गाड़ियों में नकली सीएनजी किट लगी है जो कभी भी हादसे का सबब बन सकती है। मंत्री पद से हटाए जाने के बाद कपिल मिश्रा ने केजरीवाल और सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे और लोकायुक्त कार्यालय में सबूत के तौर पर 16 हजार पेज पेश किए थे। सार्वजनिक लोक कल्याण विभाग ने कार्यालय खाली न करने पर आम आदमी पार्टी पर 27 लाख 73 हजार का जुर्माना ठोंका था। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने अप्रैल 2017 में आम आदमी पार्टी के कार्यालय का आवंटन रद करते हुए कार्यालय खाली करने का निर्देश दिया था लेकिन अरविंद केजरीवाल जिद पर अड़े रहे और उन्होंने उपराज्यपाल अनिल बैजल के आदेश को अनदेखा कर दिया था।  संवैधानिक संस्थाओं पर आरोप लगाने का आम आदमी पार्टी का पुराना इतिहास रहा है। प्रवर्तन निदेशालय से लेकर केंद्रीय जांच आयोग पर वह निरंतर हमलावर होती रही है। उनकी हर कार्रवाई में उसे मोदी सरकार का षड़यंत्र नजर आता रहा है। जब केंद्रीय जांच आयोग ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की पत्नी से मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूछताछ की थी तब भी आप के विधायक सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार सीबीआई के जरिए आप नेताओं को परेशान कर रही है। उनकी पार्टी की छवि खराब कर रही है। दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग ने एलजी से शिकायत की थी कि बिना किसी निविदा के दिल्ली सरकार ने ‘टॉक टू एके’ प्रोगाम का प्रमोशन एक विशेष कंपनी को दे दिया है। उप राज्यपाल ने इस मामले को भी सीबीआई को सौंप दिया था।

पार्टी में टकराव तब और तेज हुआ जब ओखला विधायक अमानतुल्ला खान ने आप के बड़े नेता कुमार विश्वास को भाजपा और संघ का एजेंट बता दिया था। कुमार विश्वास इससे खासे नाराज हुए थे और अरविंद केजरीवाल ने उन्हें खुश करने के लिए अमानतुल्ला खान को पार्टी से निलंबित कर दिया था लेकिन बाद में कुमार विश्वास को पार्टी में अपनी औकात बताने में भी केजरीवाल पीछे नहीं रहे। उन्होंने निलंबित विधायक अमानतुल्ला खान को विधानसभा की समितियों में अहम जिम्मेदारी सौंप दी। विश्वास और केजरीवाल के बीच दूरियां बढ़ाने में यह प्रयोग विशेष सहायक साबित हुआ। गत वर्ष दिल्ली सरकार द्वारा बुलाए विधानसभा के विशेष सत्र में सदन की कार्रवाही देख रहे दो लोगों ने सदस्यों पर कागज फेंक दिए। विधायकों ने उनकी पिटाई भी की। युवकों ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाए। विवाद तो तब बढ़ा जब यह पता चला कि दोनों युवक ‘आप’ के ही कार्यकर्ता हैं। दिल्ली नगर निगम चुनावों में आप की करारी हार के बाद ईवीएम को वैरिन घोषित किया गया। यह और बात है कि इस ईवीएम विवाद में आम आदमी पार्टी दो खेमों में बंट गई। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जहां दिल्ली में ईवीएम की लहर देखी, वहीं कुमार विश्वास और कपिल मिश्रा ने दिल्ली नगर निगम में हार के लिए केजरीवाल सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया था। दिल्ली में हाई कोर्ट की ‘गैस चैंबर बनी राजधानी’ वाली टिप्पणी से केजरीवाल सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। तिलमिलाई सरकार ने दिल्ली में ऑड-ईवन योजना लागू की लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। आप सरकार चाहती थी कि सम-विषम फार्मूले से वीआईपी, महिलाओं और बाइक को अलग रखा जाए लेकिन एनजीटी इससे सहमत नहीं हुई। प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद भी सम-विषम फार्मूले को लागू कर पाना सरकार के लिए मुमकिन नहीं हो सका। 

आम आदमी पार्टी ने हाल ही में राज्यसभा के तीन उम्मीदवार तय किए। आप नेता संजय सिंह के अलावा एनडी गुप्ता व सुशील गुप्ता का नाम सामने आने के बाद एक बार फिर सियासी बवाल तेज हो गया। कुमार विश्वास को धता बता दिया गया। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने सुशील गुप्ता के खिलाफ पार्टी कार्यकर्ता कलावती कोली को मैदान में उतारने की कोशिश की। पार्टी ने दो बाहरी व्यक्तियों को राज्यसभा भेजने का फैसला लिया जिससे कार्यकर्ता आज भी निराश हैं और इसका सियासी असर विधायकों की सदस्यता भंग होने के बाद के हालात पर पड़ना स्वाभाविक है।  आप के पूर्व नेता कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर करारा प्रहार करते हुए ट्वीट किया है कि एक आदमी के लोभ के कारण 20 विधायकों की सदस्यता खत्म हुई है। केजरीवाल पैसों के लोभ में अंधे हो चुके थे। अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल, प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के विरुद्ध एकतरफा मोर्चा खोल रखा था। अपनी पार्टी में भी लोग उनसे बहुत खुश नहीं हैं। केजरीवाल दरअसल किसी को भी खुश नहीं कर पाए। यही वजह है कि उनकी पार्टी दिल्ली के बाहर न तो पंजाब और गोवा में बेहतर प्रदर्शन कर पाई और न ही अब किसी राज्य में उसे 2015 जैसा राजनीतिक माइलेज मिलने की उम्मीद है।   अन्ना लहर पर सवार होकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन अन्ना जैसे समाजसेवी की नजरों से वे गिर गए। ऐसे में दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी अगर उनसे नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र मांग रहे हैं तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है। आम आदमी का भविष्य क्या होगा, यह तो अब जनता को ही सही मायने में तय करना है लेकिन सत्ता मद में राजनीतिक पराभव की शुरुआत तो हो ही चुकी है। ?




सियाराम पांडेय ‘शांत’ 
 संपर्क- एल-3/480, विनीतखंड, 
गोमतीनगर, लखनउ, उत्तर प्रदेश।  

कोई टिप्पणी नहीं: