पर्यटकों के लिये चलेगी भाप के इंजन वाली रेलगाड़ी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

पर्यटकों के लिये चलेगी भाप के इंजन वाली रेलगाड़ी

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नयी दिल्ली 26 जनवरी, भारतीय रेल दुनिया के सबसे पुराने भाप के इंजनों से पर्यटकों के लिये दिल्ली के रिंग रेलवे और दिल्ली से  रेवाड़ी तक विशेष रेलगाड़ी चलाएगी  रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी ने आज यहां यूनीवार्ता से कहा कि उनका प्रयास होगा कि भाप के इंजन वाली पर्यटन गाड़ी का परिचालन पूर्वनिर्धारित समय सारणी के आधार पर हो ताकि पर्यटक उसमें सैर की पहले से ही योजना बना सकें1 उन्होंने कहा कि यह सेवा रोज़ाना नहीं होगी बल्कि सप्ताह में एक बार या महीने में दो बार चलाने के बारे में सोचा जा सकता हैउन्होंने कहा कि दिल्ली की रिंग रेल पर भी भाप के इंजन वाली गाड़ी चलाने के बारे में सोचा जा रहा है1 उन्होंने कहा कि इस गाड़ी में सैलानी अपने परिवार के साथ एक डेढ़ घंटे की सवारी करें और उसमें खाने पीने का सामान भी उपलब्ध रहे1 पर इसका टिकट स्टेशन पर पहुंचने के बाद आसानी से उपलब्ध हो, यह हमारी प्राथमिकता होगी भाप के इंजन को लेकर उनके प्रेम के बारे में पूछे जाने पर श्री लोहानी अपने बचपन की यादों में खो गये, उन्होंने कहा कि वर्ष 1963-64 के दौर में जब वह चार-पांच साल के थे, उनके पिता कानपुर में उन्हें रेलवे स्टेशन ले जाते थे और वह लोहे की प्लेट पर खड़े होकर जब इंजन की सीटी बजाते थे तो असीम आनंद आता था। इस तरह से उन्हें बचपन से ही भाप के इंजन से प्यार हो गया श्री लोहानी ने कहा कि आज भी भाप के इंजन को लोग बहुत चाहते हैं1 उन्होंने कहा कि इस इंजन का हर पुर्ज़ा बाहर से दिखता है और केवल यह एक ऐसी मशीन है जिसमें कोई भी आग को देख सकता है1 शायद इसीलिए भाप के इंजन को एक नारी के रूप में निरूपित किया जाता है1 अंग्रेज़ी में इसे ‘शी’ सर्वनाम से पुकारा जाता है जबकि डीज़ल और बिजली के इंजन को ‘इट’ कहा जाता है1 उन्होंने कहा कि आज भी लोग भाप के इंजन को उसकी खूबसूरती के लिये ‘निहारते’ हैं और उसकी सीटी की आवाज़ के दीवाने हैं उन्होंने कहा कि देश में इस समय भाप के करीब 50 इंजन हैं और रेलवे अपनी इस विरासत को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है1 उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि अगले 50 साल बाद भी लोग भाप के इंजन को देखें क्योंकि 1852 में जब पहली बार रेल चली थी जो भाप का इंजन पहले बना था, रेल बाद में1 भाप का इंजन उस युग में औद्याेगिक क्रांति काे तेज़ करने वाली बहुत बड़ी ताकत बना। इसलिए भाप के इंजन हमारी विकास यात्रा के बहुत अहम गवाह हैं देश के 69वें गणतंत्र दिवस को रेल विरासत दिवस के रूप में मनाते हुए भारतीय रेल ने राजधानी की पटरियों पर 162 साल पहले निर्मित विश्व के सबसे पुराने भाप के रेल इंजन ‘फेयरी क्वीन’ से भारतीय रेलवे के आकाओं को नयी दिल्ली से पुरानी दिल्ली के बीच सैर करायी1 रेल राज्य मंत्री राजेन गोहाईं, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी, उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विश्वेश चौबे और दिल्ली के मंडल रेल प्रबंधक आर एन सिंह ने फेयरी क्वीन इंजन से चलने वाले दो कोच की गाड़ी से दिल्ली के दोनों स्टेशनों के बीच यात्रा की फेयरी क्वीन इंजन 1855 में लंदन में बना था और उसे ईआर-22 के नाम से जाना जाता था1 करीब 54 साल की सेवा के बाद उसे राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में रख दिया गया था जिसे 1997 में पुन: कुछ जुनूनी रेल अधिकारियों एवं कर्मचारियों की टीम ने काफी मशक्कत के बाद संचालन के लिए तैयार किया था1 इस इंजन को 18 जुलाई 1997 को पुन: चलाया गया और जनवरी 1998 में इसे गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में विश्व के सबसे पुराने कार्यशील भाप के इंजन के रूप में मान्यता दी गयी, जनवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फेयरी क्वीन को सर्वाधिक नवान्वेषी और अनूठी पर्यटन परियोजना के रूप में राष्ट्रीय पर्यटन पुरुस्कार प्रदान किया था1 दिल्ली के समीप रेवाड़ी में भाप के इंजनों की एक कार्यशाला है जिसमें करीब दस भाप के इंजन चालू हालत में हैं जिनमें तीन मीटरगेज पर चलने वाले इंजन हैं

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