मोतिहारी। भारत ने हमेशा विश्व को एक नयी राह दिखायी है। चाहे वह चिकित्सा का क्षेत्र हो या गणित का। शिल्पकला हो या मूर्तिकला। भाषा हो या दुनिया का कोई भी क्षेत्र। भारतीय संस्कृति का प्राचीन ज्ञान हर क्षेत्र में अग्रणी रहा है, और शायद यही कारण है कि भारत को विश्वगुरु कहा जाता था। जिन चीजों की खोज विश्व आज कर रहा है, भारत में आज से हजारों वर्ष पहले उन चीजों का आविष्कार हो चुका था। आज भी भारत की इस धरती पर ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जिनके अंदर विश्व को नया नजरिया देने की ताकत है। जी हां, जिस भूकंप के पूर्वानुमान के बारे में विश्व के छोटे-बड़े तमाम वैज्ञानिक यह कहते थे कि भूकंप का पूर्वानुमान असंभव है, उस भूकंप के बारे में एकदम सटीक जानकारी देने की तकनीक का ईजाद कर उमेश कुमार वर्मा ने बिहार सहित इस देश का नाम विज्ञान के क्षेत्र में एक बार फिर से ऊंचा किया है।
*प्राध्यापकों की बात से मिली प्रेरणा*
व्यक्ति यदि ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है। सच्ची लगन से हर असंभव चीज संभव हो सकती है। दरअसल इन बातों को उमेश ने बखूबी साबित किया है।पटना निवासी उमेश संप्रति मोतिहारी के महारानी जानकी कुंवर बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापन कार्य करते हैं। वे बताते हैं कि भूगर्भ शास्त्र में पटना विश्वविद्यालय 1984 में ऑनर्स करते समय प्रोफेसरों ने यह कहा कि भूकंप का पूर्वानुमान असंभव है, उसी समय मन में यह ठान लिया कि असंभव को संभव कर दिखाउंगा और लगातार इसमें लगा रहा। रोजी रोटी की तलाश में अरुणाचल प्रदेश गये और वहां लगभग एक साल तक काम किया, फिर डीएवी संस्थान में 12 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी।हालांकि इस दौरान काम का बोझ अधिक होने से शोध कार्य कुछ धीमा हो गया था। 2007 में बिहार सरकार की नौकरी में आने के बाद शोध कार्य में फिर गति आई और इसे एक मिशन बना लिया। इस दौरान भूकंप के पूर्वानुमान से संबंधित दिन रात एक कर जो कुछ ढूंढ़ा उसकी एक प्रति आईआईटी खड़गपुर को भेजा।वहां के माइनिंग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट को यह आईडिया बहुत पसंद आया और उन्होंने तुरंत बुला भेजा। उन्होंने सारी सुविधाएं देने का वायदा किया और अपना शोध जारी रखने का आग्रह किया, लेकिन नौकरी छोड़कर जाना संभव नहीं था, लिहाजा कभी कभार छुट्टियों में वहां जाकर शोध कार्य करते रहे। 2007 से 2008 के बीच वहां कई बार जाने का मौका मिला और इस बीच शोध से संबंधित कई पुस्तकों का गहन अध्ययन किया सिस्मोलॉजी से संबंधित लगभग सारी किताबें पढ़ डाली। इस दौरान करीब एक हजार से अधिक शोध-पत्र का अध्ययन किया तब जाकर अपने शोध को फॉरम्यूलेट करने का काम शुरू हुआ।
*टोक्यो यूनिवर्सिटी के शोध पत्र से मिला क्लू*
इस दौरान टोक्यो यूनिवर्सिटी के एक शोध पत्र को पढ़ते ही मन में उठ रहे संकेतों को बल मिला और जो कुछ पहले से खोजा था उसके तार इस शोध से कहीं ना कहीं जुड़ते दिखाई दिए। दरअसल उस शोध पत्र में यह बात जाहिर की गई थी कि सूर्य ग्रहण के समय भूकंप आने की संभावना बढ़ जाती है। टोक्यो यूनिवर्सिटी के इस शोधपत्र में 2001 से लेकर 2004 तक के बीच हुए सूर्यग्रहण और उसके प्रभाव से आए भूकंप का विवरण भी अंकित था।इसको आधार मानते हुए अपने शोध को और आगे बढ़ाया। इस दौरान कई विषयों का सहारा लेना पड़ा। भौतिकी, रॉक मैकेनिक्स, गणित, भूगर्भशास्त्र जैसे अन्य कई विषयों के सहयोग से यह संभव हुआ। लिहाजा जब भी कहीं शोध पत्र प्रस्तुत किया,उस समय कठिनाई का सामना करना पड़ता था क्योंकि शोध पत्र की संपुष्टि के लिए एक साथ सारे विषयों के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती। इस क्रम में 2010 में जब शोध पत्र जमा किया, उस समय साल भर के भीतर आने वाले सारे भूकंप की जानकारी उसमें दे दी थी। इसकी सौ प्रतिशत प्रामाणिकता को देखने के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय में दिसंबर 2010 में शोध पत्र प्रकाशित करवाया।उनका यह शोध आईजेईई हैदराबाद, कैफ़ेट इनोवा दिसंबर,2010 के वॉल्यूम नंबर-4 में, इसु नंबर-6 के पेज नंबर 945 से 955 तक लिखित है।
पूर्व में भूकंप की जानकारी देकर सबको सकते में डाला। इसके बाद नेपाल में आने वाले भूकंप के पहले ही सटीक जगह और समय के बारे में भी बता चुके थे। पहले तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब भूकंप आया तो लोग सकते में आ गए। 2014 में अमेरिका भी गए थे जहां 4 शोध पत्र प्रकाशित हुआ। श्री वर्मा बताते हैं कि भूकंप का पूर्वानुमान लगाने के लिए उन्होंने 15 तकनीकों का इजाद किया है, जिससे बिल्कुल सही समय और एकदम सही स्थान पता लगाया जा सकता है। दरअसल सेटेलाइट से आने वाली तरंगों का अलग अलग अर्थ होता है। उन तरंगों का गहनता से अध्ययन करने पर भूकंप से जुड़ी जानकारी भी मिलती है। सिर्फ कुछ घंटों की निगरानी के बाद यह पता चल जाता है कि धरती के विभिन्न हिस्सों में क्या चल रहा है। सेटेलाइट से मिली तरंगों के आधार पर धरती के भीतर होने वाली हलचल भी स्पष्ट होती है, और इससे ठीक-ठीक पूर्वानुमान भी लग जाता है।
सरकारी व्यवस्था का रोना,चंदा इकट्ठा कर जाते हैं विदेश
श्री वर्मा इन तमाम बातों के बावजूद अब तक सरकारी सहायता से दूर हैं। कई बार विश्व के अनेक जगहों से बुलावा आया लेकिन पैसे के अभाव में वहां नहीं जा सके। 26 जनवरी को सेन फ्रांसिस्को जाने वाले हैं, जहां यह तकनीक प्रदर्शित होगी। इस आश्चर्यजनक शोध के प्रति सरकारी उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इससे जुड़ी बातों को लेकर जब भी श्री वर्मा विदेश जाते हैं तो इसके लिए उन्हें चंदे का सहारा होता है और उस राशि से विदेश जा पाते हैं। सरकारी वेतन का रोना यहां भी है। वे नियोजित शिक्षक है और कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली। बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने उनको भूकंप के पूर्वानुमान की तकनीक वाली मशीन बनाने की अनुशंसा कर दी थी इतना ही नहीं इसके लिए राशि भी निर्धारित की जा चुकी थी लेकिन योजना विभाग के प्रधान सचिव की उदासीनता के चलते मामला लटक गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्हें एनोवेटिव कॉउंसिल का सदस्य भी बनाया है। देशभक्ति का जज्बा कहिए कि श्री वर्मा अपनी तकनीक को अन्य देशों के साथ साझा नहीं करना चाहते, लेकिन दुख के साथ बताते हैं कि सरकारी सहायता के अभाव में यह विशिष्ट तकनीक मर रही है, और अब अमेरिका से बुलावा आया है।भारत के किसी व्यक्ति द्वारा इजाद की गई तकनीक को अमेरिका के नाम पर याद किया जाए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। बिल्कुल साधारण रहन-सहन और मिलनसार स्वभाव के शिक्षक उमेश प्रसाद वर्मा की ख्याति उनके इलाके में है। बताते हैं कि नेपाल में आए भूकंप के दौरान उनके कहने पर पूरे मोहल्ले वासी घर से बाहर आ गए थे और तय समय पर भूकंप भी आया।
*प्रधानमंत्री से है उम्मीदें*
फिलहाल श्री वर्मा को इस बात की प्रतीक्षा है कि सरकार की आंखें खुल जाए और इस बड़े आविष्कार को मूर्त रुप दिया जाए, ताकि भूकंप का पूर्वानुमान लगाने संबंधी चर्चा जहां भी हो वहां भारत अगले पायदान पर रहे। श्री उमेश बताते हैं कि उनकी तकनीक भले ही सरकारी व्यवस्था की मारी हो, लेकिन देशभक्ति का जो जज्बा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंदर है उन तक यदि इस शोध की जानकारी किसी प्रकार पहुंचे तो वे अवश्य इसपर संज्ञान लेंगे और उन्हें उम्मीद है कि ऐसा हो सकता है।
अभिजीत कुमार
पत्रकार, मधुबनी
मेल : mr.reporter25@gmail.com
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