जीत की इच्छा शक्ति से नार्थ ईस्ट में भाजपा का झंडा बुलंद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 11 मार्च 2018

जीत की इच्छा शक्ति से नार्थ ईस्ट में भाजपा का झंडा बुलंद

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मेरी जानकारी में आज तक कभी भी उत्तर पूर्वी राज्यों में विधानसभा या संसदीय चुनावों को इतना महत्व नहीं दिया गया जितना २०१८ के  विधानसभा चुनाव में मिला.पूरे देश की निगाहें नार्थ ईस्ट के त्रिपुरा ,मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनावों पर थी. मामला बिलकुल स्पष्ट था ,लेफ्ट बनाम राइट. वाम पंथ बनाम दक्षिण पंथ ने मतदाताओं का ऐसा ध्रुवीकरण किया कि वह पंथों से आगे निकल कर कुशासन बनाम सुशासन के नारों में परिवर्तित होता दीख पड़ा. तभी तो त्रिपुरा जैसे राज्य जहाँ पिछले २५ वर्षों से वाम झंडा लहरा रहा था ,जहाँ देश के सबसे ईमानदार राजनीतिज्ञ कहे जाने वाले २० वर्षों से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे माणिक सरकार की सादगी पर भी भाजपा की रणनीति भारी पड़ी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी के जीतने की इच्छा शक्ति ने २५ साल पुराने वाम शासन को झटके में उखाड़ फेंका.विगत चुनाव में ४९ विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की जमानत जब्त कराने कराने वाली भाजपा की यह जीत कोई अप्रत्याशित नहीं है बल्कि सोची समझी रणनीति और मजबूत इरादों की विजय है. मेरी जानकारी में २०१४ में प्रधानमंत्री की कुर्सी सँभालने और भाजपा को आम चुनाव में बेहतरीन जीत दिलाने वाले नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर सँभालने के साथ ही विपक्ष विहीन सत्ता की परिकल्पना की पटकथा लिखनी शुरू कर दी थी ,जिसमे पूर्वोत्तर राज्य भी पहली प्राथमिकता में थे. विशेषकर त्रिपुरा में तो सत्तारूढ़ वाम दल और पूरा विपक्ष भाजपा की तरफ से निश्चिंत थे क्योंकि २५ वर्षों का निर्वाध शासन और लगातार भाजपा की पटखनी का इतिहास सामने था.यही अतिविश्वास वाम और अन्य विपक्ष के लिए हार का कारण बना.क्षेत्रीय पार्टियों की वैशाखी पर चल रही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को वर्तमान अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गुजरात चुनाव में जरूर अपने जुझारू पराक्रम से सम्मानजनक स्थिति में पहुंचाया परन्तु त्रिपुरा और नागालैंड में पार्टी खाता भी नहीं खोल पायी. राहुल गाँधी यह भूल गए कि जीत का वरण करने के लिए पराक्रम एक नितांत प्रक्रिया है,सामयिक नहीं. कांग्रेस और वाम नेताओं को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि विगत दो- ढाई वर्षों में भाजपा ने धीरे धीरे अपना संगठन त्रिपुरा में खड़ा कर वाम के पारम्परिक वोटों में सेंध लगा ली थी और जीत का मार्ग बहुत पहले ही सुगम कर रखा था. कांग्रेस ने तो भाजपा की धुंआधार चुनाव प्रचार की बैटिंग से घबराकर पहले ही मैदान खाली कर दिया थ नागालैंड में भी भाजपा की आक्रामक रणनीति ने स्थानीय राजनीतिक दलों के चुनाव बहिष्कार की हवा के बीच क्षेत्रीय दलों को चुनावी मैदान तक दौड़ाने में सफल रही. यह भाजपा के सफल रणनीति का परिणाम ही था कि बहिष्कार का मुद्दा ही चुनाव से गायब हो गया .पहले से नागालैंड में स्थापित एन.डी.ए. की सरकार में भाजपा ने १२ सीटें प्राप्त कर अपनी स्थिति को मजबूत किया है. मेघालय जहाँ भाजपा को मात्र २ सीटों से संतोष करना पड़ा लेकिन २१ सीटें प्राप्त कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस फिर रणनीति बनाने में पिछड़ गयी,यहाँ तक कि पूर्व कांग्रेसी नेता संगमा की नेशनल पीपल्स पार्टी को साथ लाने में भी असफल रही और सिर्फ २ सीटें प्राप्त कर बाकी पार्टियों को मिला कर मेघालय की सत्ता पर कब्ज़ा कर भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा चरितार्थ किया है. पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के बुलंद इरादे आने वाले राज्यों के चुनाव में भी असरकारक होंगे,इससे इंकार नहीं किया जा सकता .कांग्रेस को एक बार फिर जमीनी स्तर पर सोचना होगा वरना रास्ता आसान नहीं होगा.विशेषकर कर्णाटक में साख बचाने के लिए कांग्रेस को जी तोड़ मेहनत करनी होगी.

 -विजय सिंह- 

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