पटना. न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी में रहते हैं पैट्रिक जौन.जो कुर्जी पल्ली में है.वास्तव में उनका पैतृक स्थान बरबीघा में है.जो बरबीघा पल्ली में है.इनका विवाह बेतिया धर्मप्रांत में हुई थी. उनका निधन 84 वर्ष की अवस्था में बुधवार को 1:00 बजे रात में सहयोग हॉस्पिटल में हो गया. आईजीआईएमएस में सेवारत जौन एब्रोस ने बताया कि सिरोसिस ऑफ लीवर से पीड़ित थे.इस बीच डायरिया की चपेट में पड़ गये.एक दिन गिर गये तो सहयोग हॉस्पिटल में बेहोशी की हालात में भर्ती हुए. बेहोशी हालात से नहीं निकले.कभी फिर से उठे ही नहीं. पार्थिव शरीर को उक्त कॉलोनी में लाया गया. इसके बाद पार्थिव शरीर को कफन बॉक्स में डालकर उर्सुलाइन चर्च में लाया गया.पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विलियम डिसूजा ने अंतिम मिस्सा पूजा शव के साथ किये.मौके पर कई दर्जन लोग उपस्थित रहे.मिस्सा पूजा समाप्त होने के बाद पार्थिव शरीर शव वाहन रथ पर रखकर कुर्जी कब्रिस्तान लाया गया.कुर्जी पल्ली के प्रधान पुरोहित फादर जोनसन ने पार्थिव शव का दफन किया.
पैट्रिक जौन के बारे जाने
पैट्रिक जौन का मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है गव्य विकास.वे लगभग 15 वर्षों तक बिहार सरकार के गव्य विभाग में एवं 1971 से 1986 तक जाम्बिया ( सेंट्रल अफ्रीका) सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय में 'प्रोजेक्ट डिविजन' के अंतर्गत कई उच्च पदों पर कार्यरत रहे.जाम्बिया में महत्वपूर्ण परियोजनाओं को बड़ी कुशलता एवं गरिमा के साथ सफल बनाया. इनके द्वारा लिखित टेक्नोलोजी, डेरी फार्मिंग और डेरी इकोनोमिक्स की पुस्तके 1970 के दशक में काफी लोकप्रिय हुई जिनके लिए बिहार के भूतपूर्व राज्यपाल नित्यानन्द कानूनगों ने 1970 में इन्हें एक प्रशंसा पत्र दिया.इन पुस्तकों के अतिरिक्त इन्होंने महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी और अंग्रेजी में दर्जनों लेख प्रकाशित किये है. देश लौटने के बाद बिहार सरकार,यूनिसेफ एवं ई.ई.सी.प्रोजेक्ट सेल के सहयोग से राज्य की ग्रामीण महिलाओं के विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रमों से जुड़े है. इसके अलावे पटना धर्मप्रांत के लिये बहुत कार्य किये हैं.मासिक पत्रिका 'संदेश' में लेखक की हैसियत से लिखते थे. गैर सरकारी संस्था भी संचालित करते थे.आज हमलोगों के बीच में पैट्रिक जौन नहीं हैं.मगर व्यक्तित्व व कृतित्व मौजूद है.उससे प्रेरणा लेने की जरूरत है.
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