कैशलोच करने वाले जैन मुनियों को लुच्चा कहा लेखक ने : डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 15 मई 2017

कैशलोच करने वाले जैन मुनियों को लुच्चा कहा लेखक ने : डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि

  • अहा जिन्दगी पत्रिका में प्रकाशित आलेख 

worng-word-for-jain-muni
उदयपुर 14 मई 2017। श्रमण संघीय जैन मुनि पुष्पेन्द्र ने दैनिक भास्कर की मासिक पत्रिका ‘अहा! जिंदगी’ के अप्रैल 2017 के अंक में पृष्ठांक 78 पर शब्द सामर्थ्य  के अंतर्गत शरदकुमार दास ने कैशलोच करने वाले जैन मुिनयों को ‘लुच्चा’ कह कर समस्त जैन समाज एंव जैन मुनियेां का आनमान किया है।  उन्होनें कहा कि शब्द के अर्थ में जैन साधु के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया गया है। इस शब्दार्थ के उपयोग से प्रतीत होता है कि लेखक कभी जैन संत मुनियों के सानिध्य में कभी नहीं रहा, उसने सिर्फ अपनी कल्पनाषक्ति का उपयोग किया है। इसमें लेखक की सोच साथ संपादक की मानसिकता की भी वहीं मनोस्थिति को दर्षाता है क्योंकि लेखक के शब्दार्थ को अपनी मूक सहमति देते हुए संपादक ने जैन मुनि का फोटो भी प्रकाषित किया है। ऐसे में मेरा यह मानना है कि इस शब्दार्थ के साथ-साथ जैन मुनि का फोटो प्रकाषित करना भी घोर आपत्तिजनक है। 



मुनि पुष्पेन्द्र ने कहा कि लेखक ने लिखा कि कैशलोच से जैन मुनियों का चेहरा सिर लहूलुहान हो जाता है। लगता है लेखक ने कभी जैन मुनियों को कैषलोच करते हुए नहीं देखा है। यदि देखा होता तो अपनी इस मानसिकता को शब्दार्थ में प्रयोग नहीं करता। जैन मुनियों की लोच-विधि इस प्रकार की होती है कि उससे चेहरा सिर लहू लुहान नहीं होता है वरन जैन मुनि हजारों भक्तों के सामनें हंसते हुए कैषलोच कर अपनी त्याग तपस्या का उदाहरण प्रस्तुत करते है। ऐसा लिखकर लेखक ने जैन मुनि आचार की अवमानना की है। पिछले 17 वर्षो से जैन मुनि एवं जैन विद्या पर पीएचडी करने वाले डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि लेखक ने आगे लिखा कि ‘‘लुंचन कराने वाले साधु को लुच्चा कहा जाता है।’’ यह कह कर लेखक ने सर्वस्व जैन समाज एवं जैन मुनियों का अपमान किया है। मुनि मार्ग अपना कर उस पर चलना कितना कठिन है यह लेखक की सोच से बहुत दूर है। किस शास्त्र या शब्दकोष से लेखक ने ऐसा आपत्तिजनक अर्थ लिया गया है। इस मनमाने अर्थ और ऐसे अर्थ के साथ जैन मुनि के फोटो प्रकाशन से जैन मुनि परम्परा और संस्कृति का न केवल लेखक वरन् दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्र की पत्रिका ने भी अपमान किया है। 

लेखक को इस आधारहीन व आपत्तिजनक अर्थ के लिए तथा ‘अहा! जिंदगी’ को बिना सोचे-विचार ऐसे आक्षेपजनक प्रकाषन के लिए अगले अंक में क्षमायाचना के साथ भूलसुधार कर समसत जैन मुनि एवं जैन समाज से माफी मांगनी चाहिये। 

कोई टिप्पणी नहीं: