विशेष : पानी की कमी ने सारसों को अशियाना बदलने के लिये किया मजबूर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 9 जून 2017

विशेष : पानी की कमी ने सारसों को अशियाना बदलने के लिये किया मजबूर

scarcity-of-water-has-compelled-cranes-to-change-their-habitat
इटावा 08 जून, अमर प्रेम का प्रतीक सारस पानी के अभाव में अपना आशियाना बदलने को मजबूर हो रहे हैं। सारस का प्रेम अटूट होता है जो एक बार जोड़ा बनने के बाद कभी बिछड़ता नहीं है । एशिया में सबसे ज्यादा सारस इटावा, मैनपुरी (समान पक्षी विहार) और सरसईनावर वेटलैंड (आ‌र्द्रस्थल) इलाके में पाये जाते हैं। जहां कभी 2000 और 2500 की तादाद में सारस दिखाई देते थे अब वहां पानी की कमी के चलते सिर्फ 250-300 सारस ही नजर आ रहे हैं। इटावा के प्रभागीय वन निदेशक कन्हैया पटेल सारस के प्रजनन को प्रभावित होने का अनुमान लगा रहे है । उनका कहना है कि पानी की कमी ने सारस पक्षी की दिशा को बदल दिया है। पानी की तलाश मे सारस पक्षी इधर उधर भटक रहे हैं लेकिन वे बाद मे अपने पूर्ववर्ती क्षेत्र मे ही आ जायेंगे । सारस को बचाने की मुहिम को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने काफी वरीयता दी थी और फरवरी 2015 में सारस सरंक्षण के लिए सैफई में अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मलेन भी आयोजित कराया गया था, जिसमे कई विदेशी विशेषज्ञों ने हिस्सेदारी करके सारस पर लगातार हो रहे खतरों से आगाह किया था। इटावा और मैनपुरी का इलाका वर्षाे से सारसों के लिए मुफीद रहा है, लेकिन पानी का अभाव और प्राकृतिक आवासों पर लोगो का अतिक्रमण इन्हे अन्यत्र जाने को मजबूर कर दिया है। इस कांफ्रेंस मे राज्य के पूर्व मुख्य वन्य जीव संरक्षक मोहम्मद अहसान ने स्पष्ट किया था कि सूबे में वेटलैंड क्षेत्र में काफी तेजी से गिरावट आई है । यहां पर दो तिहाई वेटलैंड क्षेत्र घट गया है ।


उन्होंने बताया कि वेटलैंड क्षेत्र का उपयोग कृषि एवं विकास के कार्यों में किया जा रहा है। हालांकि सारसों को लेकर इटावा व मैनपुरी का क्षेत्र सारस कैपिटल के रूप में जाना जाता है । छोटे-छोटे वेटलैंड समाप्त हो रहे हैं जो सारस संरक्षण के लिए ठीक नहीं हैं । प्रदेश में सूखे की स्थिति ने भी वेटलैंड पर प्रभाव डाला है, परंतु वेटलैंड केवल नहरों के ऊपर ही निर्भर हो गये । वर्ष 2001 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1242530 हेक्टेयर में वेटलैंड था, जो अब घटकर 328690 हेक्टेयर ही रह गया है। सरसईनावर के रामलखन का कहना है कि सैकड़ो की तादाद में दिखने वाला सारस पानी के अभाव में अब 100 के आसपास रह गये हैं। उन्होंने बताया कि अब बरसात भी कम होती है और नदी तथा नहरों में भी पानी समय-समय पर नजर आते है जिससे इन्हें अपना बसेरा छोडना पड रहा है। अगर पानी की पूर्ति हो जाए तो वे यहाँ सुरक्षित रह सकते हैं। पर्यावरणीय दिशा मे काम करने वाली संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव संजीव चौहान का कहना है कि इस बार सारस की प्रजाति पर पानी न होने के कारण गम्भीर संकट आ गया है ।

पहली बार ऐसा हुआ है जब बडी संख्या में दिखने वाले सारस आज सिर्फ उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में स्वच्छंद रूप से ताल तलैयों के किनारे तथा धान के खेतों में वास करते हुये करीब पांच हजार सारस देखे जाते रहे हैं,लेकिन सूखे की वजह से ना तो ताल तलैया और न ही खेतों में देखे जा रहे हैं। दुनिया में सबसे उंचा सारस उडने वाला पक्षी किसानों का मित्र हैं। करीब 12 किलो वजन वाले सारस की लम्बाई 1.6 मीटर तक होता है। उन्होंने बताया कि देश में सारस की छह प्रजातियां है। इनमें से तीन प्रजातियां भारतीय सारस , डिमोसिल क्रेन व कामन क्रेन है। दुनिया भर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या आठ हजार आंकी जाती रही है,इनमें अकेले इटावा में 2500 और मैनपुरी में करीब 1000 सारस नजर आते थे अब घटकर 250-300 रह गये हैं। गौरतलब है कि अग्रेंज कलक्टर ए.ओ.हृयूम के समय में इस क्षेत्र में साइबेरियन क्रेन भी आते थे, जिसको देखने के लिये अब भरतपुर पक्षी बिहार जाना पडता था। वर्ष 2002 में आखिरी बार साईबेरियन क्रेन का एक जोडा देखा गया था।

कोई टिप्पणी नहीं: